Pravachansar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 74 of 513
PDF/HTML Page 107 of 546

 

background image
स्थाननिषद्याविहारा धर्मोपदेशश्च नियतयस्तेषाम्
अर्हतां काले मायाचार इव स्त्रीणाम् ।।४४।।
यथा हि महिलानां प्रयत्नमन्तरेणापि तथाविधयोग्यतासद्भावात् स्वभावभूत एव
मायोपगुण्ठनागुण्ठितो व्यवहारः प्रवर्तते, तथा हि केवलिनां प्रयत्नमन्तरेणापि तथाविध-
योग्यतासद्भावात
् स्थानमासनं विहरणं धर्मदेशना च स्वभावभूता एव प्रवर्तन्ते अपि
चाविरुद्धमेतदम्भोधरदृष्टान्तात यथा खल्वम्भोधराकारपरिणतानां पुद्गलानां गमनमवस्थानं
गर्जनमम्बुवर्षं च पुरुषप्रयत्नमन्तरेणापि दृश्यन्ते, तथा केवलिनां स्थानादयोऽबुद्धिपूर्वका एव
दृश्यन्ते
अतोऽमी स्थानादयो मोहोदयपूर्वकत्वाभावात् क्रियाविशेषा अपि केवलिनां
क्रियाफलभूतबन्धसाधनानि न भवन्ति ।।४४।।
अनीहिताः केषाम् तेसिं अरहंताणं तेषामर्हतां निर्दोषिपरमात्मनाम् क्व काले अर्हदवस्थायाम्
इव मायाचारो व्व इत्थीणं मायाचार इव स्त्रीणामिति तथा हियथा स्त्रीणां स्त्रीवेदोदय-
सद्भावात्प्रयत्नाभावेऽपि मायाचारः प्रवर्तते, तथा भगवतां शुद्धात्मतत्त्वप्रतिपक्षभूतमोहोदयकार्येहापूर्व-
७४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अन्वयार्थ :[तेषाम् अर्हतां ] उन अरहन्त भगवन्तोंके [काले ] उस समय
[स्थाननिषद्याविहाराः ] खड़े रहना, बैठना, विहार [धर्मोपदेशः च ] और धर्मोपदेश-[स्त्रीणां
मायाचारः इव ]
स्त्रियोंके मायाचारकी भाँति, [नियतयः ] स्वाभाविक ही
प्रयत्न बिना ही
होता है ।।४४।।
टीका :जैसे स्त्रियोंके, प्रयत्नके बिना भी, उस प्रकार योग्यताका सद्भाव होनेसे
स्वभावभूत ही मायाके ढक्कनसे ढँका हुआ व्यवहार प्रवर्तता है, उसीप्रकार केवलीभगवानके,
प्रयत्नके बिना ही (
प्रयत्न न होनेपर भी) उस प्रकारकी योग्यताका सद्भाव होनेसे खड़े रहना,
बैठना, विहार और धर्मदेशना स्वभावभूत ही प्रवर्तते हैं और यह (प्रयत्नके बिना ही विहारादिका
होना), बादलके दृष्टान्तसे अविरुद्ध है
जैसे बादलके आकाररूप परिणमित पुद्गलोंका गमन,
स्थिरता, गर्जन और जलवृष्टि पुरुष -प्रयत्नके बिना भी देखी जाती है, उसीप्रकार केवलीभगवानके
खड़े रहना इत्यादि अबुद्धिपूर्वक ही (इच्छाके बिना ही) देखा जाता है
इसलिये यह स्थानादिक
(खड़े रहने -बैठने इत्यादिका व्यापार), मोहोदयपूर्वक न होनेसे, क्रियाविशेष (क्रियाके
प्रकार) होने पर भी केवली भगवानके क्रियाफलभूत बन्धके साधन नहीं होते
भावार्थ :केवली भगवानके स्थान, आसन और विहार, यह काययोगसम्बन्धी
क्रियाएँ तथा दिव्यध्वनिसे निश्चय -व्यवहारस्वरूप धर्मका उपदेशवचनयोग सम्बन्धी क्रिया-