Pravachansar (Hindi).

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तत्कालकलितवृत्तिकमतीतोदर्ककालकलितवृत्तिकं चाप्येकपद एव समन्ततोऽपि
सकलमप्यर्थजातं, पृथक्त्ववृत्तस्वलक्षणलक्ष्मीकटाक्षितानेकप्रकारव्यंजितवैचित्र्यमितरेतरविरोध-
धापितासमानजातीयत्वोद्दामितवैषम्यं क्षायिकं ज्ञानं किल जानीयात
्; तस्य हि क्रम-
प्रवृत्तिहेतुभूतानां क्षयोपशमावस्थावस्थितज्ञानावरणीयकर्मपुद्गलानामत्यन्ताभावात्तात्कालि-
कमतात्कालिकं वाप्यर्थजातं तुल्यकालमेव प्रकाशेत; सर्वतो विशुद्धस्य प्रतिनियत-
देशविशुद्धेरन्तःप्लवनात
् समन्ततोऽपि प्रकाशेत; सर्वावरणक्षयाद्देशावरणक्षयोपशमस्यान-
वस्थानात्सर्वमपि प्रकाशेत; सर्वप्रकारज्ञानावरणीयक्षयादसर्वप्रकारज्ञानावरणीयक्षयोपशमस्य
विलयनाद्विचित्रमपि प्रकाशेत; असमानजातीयज्ञानावरणक्षयात्समानजातीयज्ञानावरणीय-
तदनन्तरं सर्वपरिज्ञाने सति एकपरिज्ञानं, एकपरिज्ञाने सति सर्वपरिज्ञानमित्यादिकथनरूपेण
गाथापञ्चकपर्यन्तं व्याख्यानं करोति
तद्यथा --अत्र ज्ञानप्रपञ्चव्याख्यानं प्रकृतं तावत्तत्प्रस्तुतमनुसृत्य
पुनरपि केवलज्ञानं सर्वज्ञत्वेन निरूपयति --जं यज्ज्ञानं कर्तृ जाणदि जानाति कम् अत्थं अर्थं
१. द्रव्योंके भिन्न -भिन्न वर्तनेवाले निज -निज लक्षण उन द्रव्योंकी लक्ष्मी -सम्पत्ति -शोभा हैं
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
७९
विचित्र (-अनेक प्रकारके) और विषम (मूर्त, अमूर्त आदि असमान जातिके) [सर्वं अर्थं ]
समस्त पदार्थोंको [जानाति ] जानता है [तत् ज्ञानं ] उस ज्ञानको [क्षायिकं भणितम् ] क्षायिक
कहा है
।।४७।।
टीका :क्षायिक ज्ञान वास्तवमें एक समयमें ही सर्वतः (सर्व आत्मप्रदेशोंसे),
वतर्मानमें वर्तते तथा भूत -भविष्यत कालमें वर्तते उन समस्त पदार्थोंको जानता है जिनमें
पृथकरूपसे वर्तते स्वलक्षणरूप लक्ष्मीसे आलोकित अनेक प्रकारोंके कारण वैचित्र्य प्रगट
हुआ है और जिनमें परस्पर विरोधसे उत्पन्न होनेवाली असमानजातीयताके कारण वैषम्य प्रगट
हुआ है
(इसी बातको युक्तिपूर्वक समझाते हैं :) क्रम -प्रवृत्तिके हेतुभूत, क्षयोपशम-
अवस्थामें रहनेवाले ज्ञानावरणीय कर्मपुद्गलोंका उसके (क्षायिक ज्ञानके) अत्यन्त अभाव
होनेसे वह तात्कालिक या अतात्कालिक पदार्थ -मात्रको समकालमें ही प्रकाशित करता है;
(क्षायिक ज्ञान) सर्वतः विशुद्ध होनेके कारण प्रतिनियत प्रदेशोंकी विशुद्धि (सर्वतः विशुद्धि)
के भीतर डूब जानेसे वह सर्वतः (सर्व आत्मप्रदेशोंसे) भी प्रकाशित करता है; सर्व आवरणोंका
क्षय होनेसे, देश -आवरणका क्षयोपशम न रहनेसे वह सबको भी प्रकाशित करता है, सर्वप्रकार
ज्ञानावरणके क्षयके कारण (-सर्व प्रकारके पदार्थोंको जाननेवाले ज्ञानके आवरणमें निमित्तभूत
कर्मके क्षय होनेसे) असर्वप्रकारके ज्ञानावरणका क्षयोपशम (-अमुक ही प्रकारके पदार्थोंको
जाननेवाले ज्ञानके आवरणमें निमित्तभूत कर्मोंका क्षयोपशम) विलयको प्राप्त होनेसे वह विचित्र
को भी (-अनेक प्रकारके पदार्थों को भी) प्रकाशित करता है; असमानजातीय -ज्ञानावरणके