Pravachansar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 84 of 513
PDF/HTML Page 117 of 546

 

८४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
निबन्धनाः अथ यः सर्वद्रव्यपर्यायनिबन्धनानंतविशेषव्यापिप्रतिभासमयमहासामान्यरूप-
मात्मानं स्वानुभवप्रत्यक्षं न करोति स क थं प्रतिभासमयमहासामान्यव्याप्यप्रतिभासमयानन्त-
विशेषनिबन्धनभूतसर्वद्रव्यपर्यायान् प्रत्यक्षीकुर्यात्
एवमेतदायाति य आत्मानं न जानाति स
सर्वं न जानाति अथ सर्वज्ञानादात्मज्ञानमात्मज्ञानात्सर्वज्ञानमित्यवतिष्ठते एवं च सति
ज्ञानमयत्वेन स्वसंचेतकत्वादात्मनो ज्ञातृज्ञेययोर्वस्तुत्वेनान्यत्वे सत्यपि प्रतिभासप्रतिभास्य-
मानयोः स्वस्यामवस्थायामन्योन्यसंवलनेनात्यन्तमशक्यविवेचनत्वात्सर्वमात्मनि निखातमिव
प्रतिभाति
यद्येवं न स्यात् तदा ज्ञानस्य परिपूर्णात्मसंचेतनाभावात् परिपूर्णस्यैकस्यात्मनोऽपि
ज्ञानं न सिद्धयेत् ।।४९।।
अनन्तद्रव्यसमूहान् किध सो सव्वाणि जाणादि कथं स सर्वान् जानाति जुगवं युगपदेकसमये, न
कथमपीति तथा हि --आत्मलक्षणं तावज्ज्ञानं तच्चाखण्डप्रतिभासमयं सर्वजीवसाधारणं महासामान्यम्
तच्च महासामान्यं ज्ञानमयानन्तविशेषव्यापि ते च ज्ञानविशेषा अनन्तद्रव्यपर्यायाणां विषयभूतानां
अनन्त विशेषोंमें व्याप्त होनेवाले प्रतिभासमय महासामान्यरूप आत्माका स्वानुभव प्रत्यक्ष नहीं
करता, वह (पुरुष) प्रतिभासमय महासामान्यके द्वारा
व्याप्य (-व्याप्य होने योग्य) जो
प्रतिभासमय अनन्त विशेष है उनकी निमित्तभूत सर्व द्रव्य पर्यायोंको कैसे प्रत्यक्ष कर
सकेगा ? (नहीं कर सकेगा) इससे ऐसा फलित हुआ कि जो आत्माको नहीं जानता वह
सबको नहीं जानता

अब, इससे ऐसा निश्चित होता है कि सर्वके ज्ञानसे आत्माका ज्ञान और आत्माके ज्ञानसे सर्वका ज्ञान (होता है); और ऐसा होनेसे, आत्मा ज्ञानमयताके कारण स्वसंचेतक होनेसे, ज्ञाता और ज्ञेयका वस्तुरूपसे अन्यत्व होने पर भी प्रतिभास और प्रतिभास्यमानकर अपनी अवस्थामें अन्योन्य मिलन होनेके कारण (ज्ञान और ज्ञेय, आत्माकीज्ञानकी अवस्थामें परस्पर मिश्रित एकमेकरूप होनेसे) उन्हें भिन्न करना अत्यन्त अशक्य होनेसे मानो सब कुछ आत्मामें निखात (प्रविष्ट) हो गया हो इसप्रकार प्रतिभासित होता हैज्ञात होता है (आत्मा ज्ञानमय होनेसे वह अपनेको अनुभव करता हैजानता है, और अपनेको जाननेपर समस्त ज्ञेय ऐसे ज्ञात होते हैंमानों वे ज्ञानमें स्थित ही हों, क्योंकि ज्ञानकी अवस्थामेंसे ज्ञेयाकारोंको भिन्न करना अशक्य है ) यदि ऐसा न हो तो (यदि आत्मा सबको न जानता हो तो) ज्ञानके परिपूर्ण आत्मसंचेतनका अभाव होनेसे परिपूर्ण एक आत्माका भी ज्ञान सिद्ध न हो १. ज्ञान सामान्य व्यापक है, और ज्ञान विशेष -भेद व्याप्य हैं उन ज्ञानविशेषोंके निमित्त ज्ञेयभूत सर्व द्रव्य

और पर्यायें हैं २. निखात = खोदक र भीतर गहरा उतर गया हुवा; भीतर प्रविष्ट हुआ