Pravachansar (Hindi). Gatha: 55.

< Previous Page   Next Page >


Page 95 of 513
PDF/HTML Page 128 of 546

 

कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
९५
तिक्रमाद्यथोदितानुभावमनुभवत्तत् केन नाम निवार्येत अतस्तदुपादेयम् ।।५४।।
अथेन्द्रियसौख्यसाधनीभूतमिन्द्रियज्ञानं हेयं प्रणिन्दति
जीवो सयं अमुत्तो मुत्तिगदो तेण मुत्तिणा मुत्तं
ओगेण्हित्ता जोग्गं जाणदि वा तं ण जाणादि ।।५५।।
जीवः स्वयममूर्तो मूर्तिगतस्तेन मूर्तेन मूर्तम्
अवगृह्य योग्यं जानाति वा तन्न जानाति ।।५५।।

इन्द्रियज्ञानं हि मूर्तोपलम्भकं मूर्तोपलभ्यं च तद्वान् जीवः स्वयममूर्तोऽपि कथनमुख्यत्वेनैकगाथया द्वितीयस्थलं गतम् ।।५४।। अथ हेयभूतस्येन्द्रियसुखस्य कारणत्वादल्प- विषयत्वाच्चेन्द्रियज्ञानं हेयमित्युपदिशति ---जीवो सयं अमुत्तो जीवस्तावच्छक्तिरूपेण शुद्धद्रव्यार्थिक- सकता है ? (अर्थात् कोई नहीं रोक सकता ) इसलिये वह (अतीन्द्रिय ज्ञान) उपादेय है ।।५४।।

अब, इन्द्रियसुखका साधनभूत (-कारणरूप) इन्द्रियज्ञान हेय हैइसप्रकार उसकी निन्दा करते हैं

अन्वयार्थ :[स्वयं अमूर्तः ] स्वयं अमूर्त ऐसा [जीवः ] जीव [मूर्तिगतः ] मूर्त शरीरको प्राप्त होता हुआ [तेन मूर्तेन ] उस मूर्त शरीरके द्वारा [योग्य मूर्तं ] योग्य मूर्त पदार्थको [अवग्रह्य ] अवग्रह करके (इन्द्रियग्रहणयोग्य मूर्त पदार्थका अवग्रह करके) [तत् ] उसे [जानाति ] जानता है [वा न जानाति ] अथवा नहीं जानता (कभी जानता है और कभी नहीं जानता) ।।५५।।

टीका :इन्द्रियज्ञानको उपलम्भक भी मूर्त है और उपलभ्य भी मूर्त है वह १. अवग्रह = मतिज्ञानसे किसी पदार्थको जाननेका प्रारम्भ होने पर पहले ही अवग्रह होता है क्योंकि मतिज्ञान

अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणाइस क्रमसे जानता है २. उपलम्भक = बतानेवाला, जाननेमें निमित्तभूत (इन्द्रियज्ञानको पदार्थोंके जाननेमें निमित्तभूत मूर्त

पंचेन्द्रियात्मक शरीर है) ३. उपलभ्य = जनाने योग्य

पोते अमूर्तिक जीव मूर्तशरीरगत ए मूर्तथी,
कदी योग्य मूर्त अवग्रही जाणे, कदीक जाणे नहीं . ५५.