पत्तेऽपि न गृह्यन्ते, तथाविधक्षयोपशमनशक्तेरसंभवात् । इन्द्रियाणां हि क्षयोपशमसंज्ञिकायाः
परिच्छेत्र्याः शक्तेरन्तरंगायाः काकाक्षितारकवत् क्रमप्रवृत्तिवशादनेकतः प्रकाशयितुमसमर्थत्वा-
त्सत्स्वपि द्रव्येन्द्रियद्वारेषु न यौगपद्येन निखिलेन्द्रियार्थावबोधः सिद्धयेत्, परोक्षत्वात् ।।५६।।
निश्चिनोति — फासो रसो य गंधो वण्णो सद्दो य पोग्गला होंति स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दाः पुद्गला मूर्ता
भवन्ति । ते च विषयाः । केषाम् । अक्खाणं स्पर्शनादीन्द्रियाणां । ते अक्खा तान्यक्षाणीन्द्रियाणी कर्तृणि
जुगवं ते णेव गेण्हंति युगपत्तान् स्वकीयविषयानपि न गृह्णन्ति न जानन्तीति । अयमत्राभिप्रायः — यथा
सर्वप्रकारोपादेयभूतस्यानन्तसुखस्योपादानकारणभूतं के वलज्ञानं युगपत्समस्तं वस्तु जानत्सत् जीवस्य
सुखकारणं भवति, तथेदमिन्द्रियज्ञानं स्वकीयविषयेऽपि युगपत्परिज्ञानाभावात्सुखकारणं न भवति ।।।।।।५६।।।।।।
९८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण होने योग्य (-ज्ञात होने योग्य), हैं । (किन्तु) इन्द्रियोंके द्वारा वे भी
युगपद् (एक साथ) ग्रहण नहीं होते (-जाननेमें नहीं आते) क्योंकि क्षयोपशमकी
उसप्रकारकी शक्ति नहीं है । इन्द्रियोंके जो क्षयोपशम नामकी अन्तरंग ज्ञातृशक्ति है वह
कौवेकी आँखकी पुतलीकी भाँति क्रमिक प्रवृत्तिवाली होनेसे अनेकतः प्रकाशके लिये
(-एक ही साथ अनेक विषयोंको जाननेके लिये) असमर्थ है, इसलिये द्रव्येन्द्रियद्वारोंके
विद्यमान होने पर भी समस्त इन्द्रियोंके विषयोंका (-विषयभूत पदार्थोंका) ज्ञान एक ही
साथ नहीं होता, क्योंकि इन्द्रिय ज्ञान परोक्ष है ।
भावार्थ : — कौवेकी दो आँखें होती हैं किन्तु पुतली एक ही होती है । कौवेको जिस
आँखसे देखना हो उस आँखमें पुतली आ जाती है; उस समय वह दूसरी आँखसे नहीं देख
सकता । ऐसा होने पर भी वह पुतली इतनी जल्दी दोनों आँखोंमें आतीजाती है कि लोगोंको
ऐसा मालूम होता है कि दोनों आँखोंमें दो भिन्न -भिन्न पुतलियाँ हैं; किन्तु वास्तवमें वह एक
ही होती है । ऐसी ही दशा क्षायोपशमिक ज्ञानकी है । द्रव्य -इन्द्रियरूपी द्वार तो पाँच हैं, किन्तु
क्षायोपशमिक ज्ञान एक समय एक इन्द्रिय द्वारा ही जान सकता है; उस समय दूसरी इन्द्रियोंके
द्वारा कार्य नहीं होता । जब क्षायोपशमिक ज्ञान नेत्रके द्वारा वर्णको देखनेका कार्य करता है
तब वह शब्द, गंध, रस या स्पर्शको नहीं जान सकता; अर्थात् जब उस ज्ञानका उपयोग नेत्रके
द्वारा वर्णके देखनेमें लगा होता है तब कानमें कौनसे शब्द पड़ते हैं या नाकमें कैसी गन्ध आती
है इत्यादि ख्याल नहीं रहता । यद्यपि ज्ञानका उपयोग एक विषयमेंसे दूसरेमें अत्यन्त शीघ्रतासे
बदलता है, इसलिये स्थूलदृष्टिसे देखनेमें ऐसा लगता है कि मानों सभी विषय एक ही साथ
ज्ञात होते हों, तथापि सूक्ष्म दृष्टिसे देखने पर क्षायोपशमिक ज्ञान एक समयमें एक ही इन्द्रियके
द्वारा प्रवर्तमान होता हुआ स्पष्टतया भासित होता है । इसप्रकार इन्द्रियाँ अपने विषयोंमें भी
क्रमशः प्रवर्तमान होनेसे परोक्षभूत इन्द्रियज्ञान हेय है ।।५६।।