Pravachansar (Hindi). Gatha: 58.

< Previous Page   Next Page >


Page 100 of 513
PDF/HTML Page 133 of 546

 

background image
अथ परोक्षप्रत्यक्षलक्षणमुपलक्षयति
जं परदो विण्णाणं तं तु परोक्खं ति भणिदमट्ठेसु
जदि केवलेण णादं हवदि हि जीवेण पच्चक्खं ।।५८।।
यत्परतो विज्ञानं तत्तु परोक्षमिति भणितमर्थेषु
यदि केवलेन ज्ञातं भवति हि जीवेन प्रत्यक्षम् ।।५८।।
यत्तु खलु परद्रव्यभूतादन्तःकरणादिन्द्रियात्परोपदेशादुपलब्धेः संस्कारादालोकादेर्वा
प्रतिभासमयपरमज्योतिःकारणभूते स्वशुद्धात्मस्वरूपभावनासमुत्पन्नपरमाह्लादैकलक्षणसुखसंवित्त्याकार-
परिणतिरूपे रागादिविकल्पोपाधिरहिते स्वसंवेदनज्ञाने भावना कर्तव्या इत्यभिप्रायः ।।५७।। अथ पुनरपि
प्रकारान्तरेण प्रत्यक्षपरोक्षलक्षणं कथयतिजं परदो विण्णाणं तं तु परोक्खं ति भणिदं यत्परतः
सकाशाद्विज्ञानं परिज्ञानं भवति तत्पुनः परोक्षमिति भणितम् केषु विषयेषु अट्ठेसु ज्ञेयपदार्थेषु जदि
१. परोपदेश = अन्यका उपदेश।
२. उपलब्धि = ज्ञानावरणीय कर्मके क्षयोपशमके निमित्तसे उत्पन्न पदार्थोंको जाननेकी शक्ति
(यह ‘लब्ध’
शक्ति जब ‘उपर्युक्त’ होती है, तभी पदार्थ ज्ञात होता है )
३. संस्कार = पूर्व ज्ञात पदार्थकी धारणा।
४. चक्षुइन्द्रिय द्वारा रूपी पदार्थको देखनेमें प्रकाश भी निमित्तरूप होता है।
१००प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
परद्रव्यरूप इन्द्रियोंके द्वारा जानता है इसलिये वह प्रत्यक्ष नहीं है ।।५७।।
अब, परोक्ष और प्रत्यक्षके लक्षण बतलाते हैं :
अन्वयार्थ :[परतः ] परके द्वारा होनेवाला [यत् ] जो [अर्थेषु विज्ञानं ] पदार्थ
सम्बन्धी विज्ञान है [तत् तु ] वह तो [परोक्षं इति भणितं ] परोक्ष कहा गया है, [यदि ] यदि
[केवलेन जीवेण ] मात्र जीवके द्वारा ही [ज्ञातं भवति हि ] जाना जाये तो [प्रत्यक्षं ] वह ज्ञान
प्रत्यक्ष है
।।५८।।
टीका :निमित्तताको प्राप्त (निमित्तरूप बने हुए) ऐसे जो परद्रव्यभूत अंतःकरण
(मन), इन्द्रिय, परोपदेश, उपलब्धि, संस्कार या प्रकाशादिक हैं उनके द्वारा होनेवाला
अर्थो तणुं जे ज्ञान परतः थाय तेह परोक्ष छे;
जीवमात्रथी ज जणाय जो , तो ज्ञान ते प्रत्यक्ष छे. ५८.