यदि शुभोपयोगजन्यसमुदीर्णपुण्यसंपदस्त्रिदशादयोऽशुभोपयोगजन्यपर्यागतपातकापदो
वा नारकादयश्च, उभयेऽपि स्वाभाविकसुखाभावादविशेषेण पंचेन्द्रियात्मकशरीरप्रत्ययं दुःख-
मेवानुभवन्ति, ततः परमार्थतः शुभाशुभोपयोगयोः पृथक्त्वव्यवस्था नावतिष्ठते ।।७२।।
अथ शुभोपयोगजन्यं फलवत्पुण्यं विशेषेण दूषणार्थमभ्युपगम्योत्थापयति —
कुलिसाउहचक्कधरा सुहोवओगप्पगेहिं भोगेहिं ।
देहादीणं विद्धिं करेंति सुहिदा इवाभिरदा ।।७३।।
हस्तिना हन्यमाने सति विषयसुखस्थानीयमधुबिन्दुसुस्वादेन यथा सुखं मन्यते, तथा संसारसुखम् ।
पूर्वोक्तमोक्षसुखं तु तद्विपरीतमिति तात्पर्यम् ।।७१।। अथ पूर्वोक्तप्रकारेण शुभोपयोगसाध्यस्येन्द्रिय-
सुखस्य निश्चयेन दुःखत्वं ज्ञात्वा तत्साधकशुभोपयोगस्याप्यशुभोपयोगेन सह समानत्वं
व्यवस्थापयति — णरणारयतिरियसुरा भजंति जदि देहसंभवं दुक्खं सहजातीन्द्रियामूर्तसदानन्दैकलक्षणं
वास्तवसुखमलभमानाः सन्तो नरनारकतिर्यक्सुरा यदि चेदविशेषेण पूर्वोक्तपरमार्थसुखाद्विलक्षणं
पञ्चेन्द्रियात्मकशरीरोत्पन्नं निश्चयनयेन दुःखमेव भजन्ते सेवन्ते, किह सो सुहो व असुहो उवओगो हवदि
१२४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
टीका : — यदि शुभोपयोगजन्य उदयगत पुण्यकी सम्पत्तिवाले देवादिक (अर्थात्
शुभोपयोगजन्य पुण्यके उदयसे प्राप्त होनेवाली ऋद्धिवाले देव इत्यादि) और अशुभोपयोगजन्य
उदयगत पापकी आपदावाले नारकादिक — यह दोनों स्वाभाविक सुखके अभावके कारण
अविशेषरूपसे (-बिना अन्तरके) पंचेन्द्रियात्मक शरीर सम्बन्धी दुःखका ही अनुभव करते हैं,
तब फि र परमार्थसे शुभ और अशुभ उपयोगकी पृथक्त्वव्यवस्था नहीं रहती ।
भावार्थ : — शुभोपयोगजन्य पुण्यके फलरूपमें देवादिककी सम्पदायें मिलती हैं और
अशुभोपयोगजन्य पापके फलरूपमें नारकादिक की आपदायें मिलती हैं । किन्तु वे देवादिक
तथा नारकादिक दोनों परमार्थसे दुःखी ही हैं । इसप्रकार दोनोंका फल समान होनेसे शुभोपयोग
और अशुभोपयोग दोनों परमार्थसे समान ही हैं अर्थात् उपयोगमें — अशुद्धोपयोगमें — शुभ और
अशुभ नामक भेद परमार्थसे घटित नहीं होते ।।७२।।
(जैसे इन्द्रियसुखको दुःखरूप और शुभोपयोगको अशुभोपयोगके समान बताया है
इसीप्रकार) अब, शुभोपयोगजन्य फलवाला जो पुण्य है उसे विशेषतः दूषण देनेके लिये
(अर्थात् उसमें दोष दिखानेके लिये) उस पुण्यको (-उसके अस्तित्वको) स्वीकार करके
उसकी (पुण्यकी) बातका खंडन करते हैं : —
चक्री अने देवेंद्र शुभ -उपयोगमूलक भोगथी
पुष्टि करे देहादिनी, सुखी सम दीसे अभिरत रही. ७३.