प्रमाणभूत, साद्यन्त, शान्तरसनिर्झरता चरणानुयोगका प्रतिपादन अन्य किसी शास्त्रमें नहीं है ।
हृदयमें भरे हुए अनुभवामृतमें ओतप्रोत होकर निकलती हुई दोनों आचार्यदेवोंकी वाणीमें कोई
ऐसा चमत्कार है कि वह जिस जिस विषयको स्पर्श करती है उस उस विषयको परम रसमय,
शीतल – शीतल और सुधास्यंदी बना देती है ।
इस प्रकार तीन श्रुतस्कन्धोंमें विभाजित यह परम पवित्र परमागम मुमुक्षुओंको यथार्थ
वस्तुस्वरूपके समझनेमें महानिमित्तभूत है । इस शास्त्रमें जिनशासनके अनेक मुख्य मुख्य
सिद्धान्तोंके बीज विद्यमान हैं । इस शास्त्रमें प्रत्येक पदार्थकी स्वतन्त्रताकी घोषणा की गई
है तथा दिव्यध्वनिके द्वारा विनिर्गत अनेक प्रयोजनभूत सिद्धान्तोंका दोहन है । परमपूज्य गुरुदेव
श्री कानजीस्वामी अनेक बार कहते है कि — ‘श्री समयसार, प्रवचनसार, नियमसार आदि
शास्त्रोंकी गाथा – गाथामें दिव्यध्वनिका संदेश है । इन गाथाओंमें इतनी अपार गहराई है कि
उसका माप करनेमें अपनी ही शक्तिका माप होजाता है । यह सागरगम्भीर शास्त्रोंके रचयिता
परमकृपालु आचार्यभगवानका कोई परम अलौकिक सामर्थ्य है । परम अद्भुत सातिशय
अन्तर्बाह्य योगोंके बिना इन शास्त्रोंका रचा जाना शक्य नहीं है । इन शास्त्रोंकी वाणी तैरते
हुए पुरुषकी वाणी है यह स्पष्ट प्रतीत होता है । इनकी प्रत्येक गाथा छठवें – सातवें गुणस्थानमें
झूलनेवाले महामुनिके आत्मानुभवसे निकली हुई है । इन शास्त्रोंके कर्ता भगवान
कुन्दकुन्दाचार्यदेव महाविदेहक्षेत्रमें सर्वज्ञ वीतराग भी सीमंधर भगवानके समवसरणमें गये थे,
और वहाँ वे आठ दिन रहे थे यह बात यथातथ्य है, अक्षरशः सत्य है, प्रमाणसिद्ध है । उन
परमोपकारी आचार्यदेवके द्वारा रचित समयसार, प्रवचनसार आदि शास्त्रोंमें तीर्थंकरदेवकी
ॐकारध्वनिमेंसे ही निकला हुआ उपदेश है ।’
भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेवकृत इस शास्त्रकी प्राकृत गाथाओंकी ‘तत्त्वदीपिका’
नामक संस्कृत टीका श्री अमृतचन्द्राचार्य (जो कि लगभग विक्रम संवत्की १०वीं शताब्दीमें
हो गये हैं)ने रची है । जैसे इस शास्त्रके मूल कर्ता अलौकिक पुरुष हैं वैसे ही इसके
टीकाकार भी महासमर्थ आचार्य हैं । उन्होंने समयसार तथा पंचास्तिकायकी टीका भी लिखी
है और तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि स्वतन्त्र ग्रन्थोंकी भी रचना की है । उन जैसी
टीकायें अभी तक अन्य जैनशास्त्रकी नहीं हुई है । उनकी टीकाओंके पाठकोंको उनकी
अध्यात्मरसिकता, आत्मानुभव, प्रखर विद्वत्ता, वस्तुस्वरूपको न्यायपूर्वक सिद्ध करनेकी
असाधारण शक्ति, जिनशासनका अत्यन्त गम्भीर ज्ञान, निश्चय – व्यवहारका संधिबद्ध निरूपण
करनेकी विरल शक्ति और उत्तम काव्यशक्तिका पूरा पता लग जाता है । गम्भीर रहस्योंको
अत्यन्त संक्षेपमें भर देनेकी उनकी शक्ति विद्वानोंको आश्चर्यचकित कर देती है । उनकी दैवी
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