यश्चेतनोऽयमित्यन्वयस्तद्द्रव्यं, यच्चान्वयाश्रितं चैतन्यमिति विशेषणं स गुणः, ये चैकसमय-
मात्रावधृतकालपरिमाणतया परस्परपरावृत्ता अन्वयव्यतिरेकास्ते पर्यायाश्चिद्विवर्तनग्रन्थय इति
यावत् । अथैवमस्य त्रिकालमप्येककालमाकलयतो मुक्ताफलानीव प्रलम्बे प्रालम्बे
चिद्विवर्तांश्चेतन एव संक्षिप्य विशेषणविशेष्यत्ववासनान्तर्धानाद्धवलिमानमिव प्रालम्बे चेतन
एव चैतन्यमन्तर्हितं विधाय केवलं प्रालम्बमिव केवलमात्मानं परिच्छिन्दतस्त-
विनाशाभावे शुद्धात्मलाभो न भवति, तदर्थमेवेदानीमुपायं समालोचयति — जो जाणदि अरहंतं यः कर्ता
जानाति । कम् । अर्हन्तम् । कैः कृत्वा । दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं द्रव्यत्वगुणत्वपर्यायत्वैः । सो जाणदि अप्पाणं
स पुरुषोऽर्हत्परिज्ञानात्पश्चादात्मानं जानाति, मोहो खलु जादि तस्स लयं तत आत्मपरिज्ञानात्तस्य मोहो
दर्शनमोहो लयं विनाशं क्षयं यातीति । तद्यथा — केवलज्ञानादयो विशेषगुणा, अस्तित्वादयः
सामान्यगुणाः, परमौदारिकशरीराकारेण यदात्मप्रदेशानामवस्थानं स व्यञ्जनपर्यायः, अगुरुलघुक गुण-
षड्वृद्धिहानिरूपेण प्रतिक्षणं प्रवर्तमाना अर्थपर्यायाः, एवंलक्षणगुणपर्यायाधारभूतममूर्तमसंख्यातप्रदेशं
१चेतन है’ इसप्रकारका अन्वय वह द्रव्य है, अन्वयके आश्रित रहनेवाला ‘चैतन्य’ विशेषण वह
गुण है, और एक समय मात्रकी मर्यादावाला कालपरिमाण होनेसे परस्पर अप्रवृत्त
२अन्वयव्यतिरेक वे पर्यायें हैं — जो कि चिद्विवर्तनकी [-आत्माके परिणमनकी ] ग्रन्थियाँ
[गांठें ] हैं ।
अब, इसप्रकार त्रैकालिकको भी [-त्रैकालिक आत्माको भी ] एक कालमें समझ
लेनेवाला वह जीव, जैसै मोतियोंको झूलते हुए हारमें अन्तर्गत माना जाता है, उसी प्रकार
चिद्विवर्तोंका चेतनमें ही संक्षेपण [-अंतर्गत ] करके, तथा ३विशेषणविशेष्यताकी वासनाका
४अन्तर्धान होनेसे — जैसे सफे दीको हारमें ५अन्तर्हित किया जाता है, उसी प्रकार — चैतन्यको
चेतनमें ही अन्तर्हित करके, जैसे मात्र ६हारको जाना जाता है, उसीप्रकार केवल आत्माको
१. चेतन = आत्मा ।
२. अन्वयव्यतिरेक = एक दूसरेमें नहीं प्रवर्तते ऐसे जो अन्वयके व्यतिरेक ।
३. विशेषण गुण है और विशेष्य वो द्रव्य है ।
४. अंतर्धान = अदृश्य हो जाना ।
५. अंतर्हित = गुप्त; अदृश्य ।
६. हारको खरीदनेवाला मनुष्य हारको खरीदते समय हार, उसकी सफे दी और उनके मोतियों इत्यादिकी परीक्षा
करता है, किन्तु बादमें सफे दी और मोतियोंको हारमें ही समाविष्ट करके उनका लक्ष छोड़कर वह मात्र
हारको ही जानता है । यदि ऐसा न करे तो हारके पहिनने पर भी उसकी सफे दी आदिके विकल्प बने
रहनेसे हारको पहननेके सुखका वेदन नहीं कर सकेगा ।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
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