Pravachansar (Hindi).

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यतः खल्वतीतकालानुभूतक्रमप्रवृत्तयः समस्ता अपि भगवन्तस्तीर्थकराः, प्रकारान्तर-
स्यासंभवादसंभावितद्वैतेनामुनैवैकेन प्रकारेण क्षपणं कर्मांशानां स्वयमनुभूय, परमाप्ततया
परेषामप्यायत्यामिदानींत्वे वा मुमुक्षूणां तथैव तदुपदिश्य, निःश्रेयसमध्याश्रिताः
ततो
नान्यद्वर्त्म निर्वाणस्येत्यवधार्यते अलमथवा प्रलपितेन व्यवस्थिता मतिर्मम नमो
भगवद्भयः ।।८२।।
इत्येतावान् विशेषः ।।८१।। अथ पूर्वं द्रव्यगुणपर्यायैराप्तस्वरूपं विज्ञाय पश्चात्तथाभूते स्वात्मनि स्थित्वा
सर्वेऽप्यर्हन्तो मोक्षं गता इति स्वमनसि निश्चयं करोतिसव्वे वि य अरहंता सर्वेऽपि चार्हन्तः तेण
विधाणेण द्रव्यगुणपर्यायैः पूर्वमर्हत्परिज्ञानात्पश्चात्तथाभूतस्वात्मावस्थानरूपेण तेन पूर्वोक्तप्रकारेण
खविदकम्मंसा क्षपितकर्मांशा विनाशितकर्मभेदा भूत्वा, किच्चा तधोवदेसं अहो भव्या अयमेव निश्चय-
रत्नत्रयात्मकशुद्धात्मोपलम्भलक्षणो मोक्षमार्गो नान्य इत्युपदेशं कृत्वा णिव्वादा निर्वृता अक्षयानन्तसुखेन
तृप्ता जाताः, ते ते भगवन्तः णमो तेसिं एवं मोक्षमार्गनिश्चयं कृत्वा श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवास्तस्मै
निजशुद्धात्मानुभूतिस्वरूपमोक्षमार्गाय तदुपदेशकेभ्योऽर्हद्भयश्च तदुभयस्वरूपाभिलाषिण; सन्तो ‘नमोस्तु
तेभ्य’ इत्यनेन पदेन नमस्कारं कुर्वन्तीत्यभिप्रायः
।।८२।। अथ रत्नत्रयाराधका एव पुरुषा दानपूजा-
गुणप्रशंसानमस्कारार्हा भवन्ति नान्या इति कथयति
कृत्वा ] उपदेश करके [निर्वृताः ते ] मोक्षको प्राप्त हुए हैं [ नमः तेभ्यः ] उन्हें
नमस्कार हो
।।८२।।
टीका :अतीत कालमें क्रमशः हुए समस्त तीर्थर्ंकर भगवान, प्रकारान्तरका असंभव
होनेसे जिसमें द्वैत संभव नहीं है; ऐसे इसी एकप्रकारसे कर्मांशों (ज्ञानावरणादि कर्म भेदों)का
क्षय स्वयं अनुभव करके (तथा)
परमाप्तताके कारण भविष्यकालमें अथवा इस (वर्तमान)
कालमें अन्य मुमुक्षुओंको भी इसीप्रकारसे उसका (-कर्म क्षयका) उपदेश देकर निःश्रेयस
(मोक्ष)को प्राप्त हुए हैं; इसलिये निर्वाणका अन्य (कोई) मार्ग नहीं है ऐसा निश्चित होता है
अथवा अधिक प्रलापसे बस होओ ! मेरी मति व्यवस्थित हो गई है भगवन्तोंको नमस्कार हो
भावार्थ :८० और ८१ वीं गाथाके कथनानुसार सम्यक्दर्शन प्राप्त करके
वीतरागचारित्रके विरोधी राग -द्वेषको दूर करना अर्थात् निश्चयरत्नत्रयात्मक शुद्धानुभूतिमें लीन
होना ही एक मात्र मोक्षमार्ग है; त्रिकालमें भी कोई दूसरा मोक्षका मार्ग नहीं है
समस्त
१. प्रकारान्तर = अन्य प्रकार (कर्मक्षय एक ही प्रकारसे होता है, अन्य -प्रकारसे नहीं होता, इसलिये उस
कर्मक्षयके प्रकारमें द्वैत अर्थात् दो -रूपपना नहीं है)
२. परमाप्त = परम आप्त; परम विश्वासपात्र (तीर्थंकर भगवान सर्वज्ञ और वीतराग होनेसे परम आप्त है, अर्थात्
उपदेष्टा हैं )
कहानजैनशास्त्रमाला ]
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