पीततादयो गुणाः, यथा च सुवर्णं क्रमपरिणामेनेय्रति तेन क्रमपरिणामेनार्यमाणा वा अर्थाः
कुण्डलादयः पर्यायाः । एवमन्यत्रापि । यथा चैतेषु सुवर्णपीततादिगुणकुण्डलादिपर्यायेषु
पीततादिगुणकुण्डलादिपर्यायाणां सुवर्णादपृथग्भावात् सुवर्णमेवात्मा तथा च तेषु
द्रव्यगुणपर्यायेषु गुणपर्यायाणां द्रव्यादपृथग्भावाद्द्रव्यमेवात्मा ।।८७।।
क्रमपरिणामसे प्राप्त करती हैं — पहुँचती हैं अथवा (वे) सुवर्णके द्वारा क्रमपरिणामसे प्राप्त की
जाती हैं — पहुँची जाती हैं इसलिये कुण्डल इत्यादि पर्यायें ‘अर्थ’ हैं; इसीप्रकार १अन्यत्र भी
है, (इस दृष्टान्तकी भाँति सर्व द्रव्य -गुण -पर्यायोंमें भी समझना चाहिये) ।
और जैसे इन सुवर्ण, पीलापन इत्यादि गुण और कुण्डल इत्यादि पर्यायोंमें (-इन
तीनोंमें, पीलापन इत्यादि गुणोंका और कुण्डल पर्यायोंका) सुवर्णसे अपृथक्त्व होनेसे उनका
(-पीलापन इत्यादि गुणोंका और कुण्डल इत्यादि पर्यायोंका) सुवर्ण ही आत्मा है, उसीप्रकार
उन द्रव्य -गुण -पर्यायोंमें गुण -पर्यायोंका द्रव्यसे अपृथक्त्व होनेसे उनका द्रव्य ही आत्मा है
(अर्थात् द्रव्य ही गुण और पर्यायोंका आत्मा -स्वरूप -सर्वस्व -सत्य है) ।
भावार्थ : — ८६वीं गाथामें कहा है कि जिनशास्त्रोंका सम्यक् अभ्यास मोहक्षयका
उपाय है । यहाँ संक्षेपमें यह बताया है कि उन जिनशास्त्रोंमें पदार्थोंकी व्यवस्था किसप्रकार
कही गई है । जिनेन्द्रदेवने कहा कि — अर्थ (पदार्थ) अर्थात् द्रव्य, गुण और पर्याय । इसके
अतिरिक्त विश्वमें दूसरा कुछ नहीं है, और इन तीनोंमें गुण और पर्यायोंका आत्मा (-उसका
सर्वस्व) द्रव्य ही है । ऐसा होनेसे किसी द्रव्यके गुण और पर्याय अन्य द्रव्यके गुण और
पर्यायरूप किंचित् मात्र नहीं होते, समस्त द्रव्य अपने -अपने गुण और पर्यायोंमें रहते हैं । —
ऐसी पदार्थोंकी स्थिति मोहक्षयके निमित्तभूत पवित्र जिनशास्त्रोंमें कही है ।।८७।।
१५०प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
एव स्वभाव इति । अथ विस्तरः — अनन्तज्ञानसुखादिगुणान् तथैवामूर्तत्वातीन्द्रियत्वसिद्धत्वादिपर्यायांश्च
इयर्ति गच्छति परिणमत्याश्रयति येन कारणेन तस्मादर्थो भण्यते । किम् । शुद्धात्मद्रव्यम् ।
तच्छुद्धात्मद्रव्यमाधारभूतमिय्रति गच्छन्ति परिणमन्त्याश्रयन्ति येन कारणेन ततोऽर्था भण्यन्ते । के ते ।
ज्ञानत्वसिद्धत्वादिगुणपर्यायाः । ज्ञानत्वसिद्धत्वादिगुणपर्यायाणामात्मा स्वभावः क इति पृष्टे शुद्धात्म-
१ जैसे सुवर्ण, पीलापन आदिको और कुण्डल आदिको प्राप्त करता है अथवा पीलापन आदि और कुण्डल
आदिके द्वारा प्राप्त किया जाता है (अर्थात् पीलापन आदि और कुण्डल आदिक सुवर्णको प्राप्त करते
हैं) इसलिये सुवर्ण ‘अर्थ’ है, वैसे द्रव्य ‘अर्थ’; जैसे पीलापन आदि आश्रयभूत सुवर्णको प्राप्त करता
है अथवा आश्रयभूत सुवर्णद्वारा प्राप्त किये जाते है (अर्थात् आश्रयभूत सुवर्ण पीलापन आदिको प्राप्त करता
है) इसलिये पीलापन आदि ‘अर्थ’ हैं, वैसे गुण ‘अर्थ’ हैं; जैसे कुण्डल आदि सुवर्णको क्रमपरिणामसे
प्राप्त करते हैं अथवा सुवर्ण द्वारा क्रमपरिणामसे प्राप्त किया जाता है (अर्थात् सुवर्ण कुण्डल आदिको
क्रमपरिणामसे प्राप्त करता है) इसलिये कुण्डल आदि ‘अर्थ’ हैं, वैसे पर्यायें ‘अर्थ’ हैं
।