१५२प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
दुःखपरिमोक्षं क्षिप्रमेवाप्नोति, नापरो व्यापारः करवालपाणिरिव । अत एव सर्वारम्भेण मोह-
क्षपणाय पुरुषकारे निषीदामि ।।८८।।
अथ स्वपरविवेकसिद्धेरेव मोहक्षपणं भवतीति स्वपरविभागसिद्धये प्रयतते —
णाणप्पगमप्पाणं परं च दव्वत्तणाहिसंबद्धं ।
जाणदि जदि णिच्छयदो जो सो मोहक्खयं कुणदि ।।८९।।
ज्ञानात्मकमात्मानं परं च द्रव्यत्वेनाभिसंबद्धम् ।
जानाति यदि निश्चयतो यः स मोहक्षयं करोति ।।८९।।
निश्चयसम्यक्त्वज्ञानद्वयाविनाभूतं वीतरागचारित्रसंज्ञं निशितखङ्गं य एव मोहरागद्वेषशत्रूणामुपरि दृढतरं
पातयति स एव पारमार्थिकानाकुलत्वलक्षणसुखविलक्षणानां दुःखानां क्षयं करोतीत्यर्थः ।।८८।। एवं
पातयति स एव पारमार्थिकानाकुलत्वलक्षणसुखविलक्षणानां दुःखानां क्षयं करोतीत्यर्थः ।।८८।। एवं
द्रव्यगुणपर्यायविषये मूढत्वनिराकरणार्थं गाथाषट्केन तृतीयज्ञानकण्डिका गता । अथ स्वपरात्मनोर्भेद-
ज्ञानात् मोहक्षयो भवतीति प्रज्ञापयति — णाणप्पगमप्पाणं परं च दव्वत्तणाहिसंबद्धं जाणदि जदि ज्ञानात्मक-
परिमुक्त नहीं करता । (जैसे मनुष्यके हाथमें तीक्ष्ण तलवार होने पर भी वह शत्रुओं पर अत्यन्त
वेगसे उसका प्रहार करे तभी वह शत्रु सम्बन्धी दुःखसे मुक्त होता है अन्यथा नहीं, उसीप्रकार
इस अनादि संसारमें महाभाग्यसे जिनेश्वरदेवके उपदेशरूपी तीक्ष्ण तलवारको प्राप्त करके भी जो
जीव मोह -राग -द्वेषरूपी शत्रुओं पर अतिदृढ़ता पूर्वक उसका प्रहार करता है वही सर्व दुःखोंसे
मुक्त होता है अन्यथा नहीं) इसीलिये सम्पूर्ण आरम्भसे (-प्रयत्नपूर्वक) मोहका क्षय करनेके
लिये मैं पुरुषार्थका आश्रय ग्रहण करता हूँ ।।८८।।
इस अनादि संसारमें महाभाग्यसे जिनेश्वरदेवके उपदेशरूपी तीक्ष्ण तलवारको प्राप्त करके भी जो
जीव मोह -राग -द्वेषरूपी शत्रुओं पर अतिदृढ़ता पूर्वक उसका प्रहार करता है वही सर्व दुःखोंसे
मुक्त होता है अन्यथा नहीं) इसीलिये सम्पूर्ण आरम्भसे (-प्रयत्नपूर्वक) मोहका क्षय करनेके
लिये मैं पुरुषार्थका आश्रय ग्रहण करता हूँ ।।८८।।
अब, स्व -परके विवेककी (-भेदज्ञानकी) सिद्धिसे ही मोहका क्षय हो सकता है, इसलिये स्व -परके विभागकी सिद्धिके लिये प्रयत्न करते हैं : —
अन्वयार्थ : — [यः ] जो [निश्चयतः ] निश्चयसे [ज्ञानात्मकं आत्मानं ] ज्ञानात्मक ऐसे अपनेको [च ] और [परं ] परको [द्रव्यत्वेन अभिसंबद्धम् ] निज निज द्रव्यत्वसे संबद्ध (-संयुक्त) [यदि जानाति ] जानता है, [सः ] वह [मोह क्षयं करोति ] मोहका क्षय करता है ।।८९।।
जे ज्ञानरूप निज आत्मने, परने वळी निश्चय वडे द्रव्यत्वथी संबद्ध जाणे, मोहनो क्षय ते करे. ८९.