Pravachansar (Hindi).

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इह खल्वागमनिगदितेष्वनन्तेषु गुणेषु कैश्चिद् गुणैरन्ययोगव्यवच्छेदकतयासाधारण-
तामुपादाय विशेषणतामुपगतैरनन्तायां द्रव्यसंततौ स्वपरविवेकमुपगच्छन्तु मोहप्रहाणप्रवणबुद्धयो
लब्धवर्णाः
तथाहियदिदं सदकारणतया स्वतःसिद्धमन्तर्बहिर्मुखप्रकाशशालितया स्वपर-
परिच्छेदकं मदीयं मम नाम चैतन्यमहमनेन तेन समानजातीयमसमानजातीयं वा द्रव्यमन्यद-
पहाय ममात्मन्येव वर्तमानेनात्मीयमात्मानं सकलत्रिकालकलितध्रौव्यं द्रव्यं जानामि
एवं
भेदज्ञानमाश्रित्य जो यः कर्ता सोमोहक्खयं कुणदि निर्मोहपरमानन्दैकस्वभावशुद्धात्मनो
विपरीतस्य मोहस्य क्षयं करोतीति सूत्रार्थः ।।८९।। अथ पूर्वसूत्रे यदुक्तं स्वपरभेदविज्ञानं तदागमतः
सिद्धयतीति प्रतिपादयतितम्हा जिणमग्गादो यस्मादेवं भणितं पूर्वं स्वपरभेदविज्ञानाद् मोहक्षयो
भवति, तस्मात्कारणाज्जिनमार्गाज्जिनागमात् गुणेहिं गुणैः आदं आत्मानं, न केवलमात्मानं परं च
परद्रव्यं च केषु मध्ये दव्वेसु शुद्धात्मादिषड्द्रव्येषु अभिगच्छदु अभिगच्छतु जानातु यदि
किम् णिम्मोहं इच्छदि जदि निर्मोहभावमिच्छति यदि चेत् स कः अप्पा आत्मा कस्य संबन्धित्वेन
१५प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
टीका :मोहका क्षय करनेके प्रति प्रवण बुद्धिवाले बुधजन इस जगतमें आगममें
कथित अनन्त गुणोंमेंसे किन्हीं गुणोंके द्वाराजो गुण अन्यके साथ योग रहित होनेसे
असाधारणता धारण करके विशेषत्वको प्राप्त हुए हैं उनके द्वाराअनन्त द्रव्यपरम्परामें स्व-
परके विवेकको प्राप्त करो (अर्थात् मोहका क्षय करनेके इच्छुक पंडितजन आगम कथित
अनन्त गुणोंमेंसे असाधारण और भिन्नलक्षणभूत गुणोंके द्वारा अनन्त द्रव्य परम्परामें ‘यह स्वद्रव्य
हैं और यह परद्रव्य हैं’ ऐसा विवेक करो), जोकि इसप्रकार हैं :
सत् और अकारण होनेसे स्वतःसिद्ध, अन्तर्मुख और बहिर्मुख प्रकाशवाला होनेसे
स्व -परका ज्ञायकऐसा जो यह, मेरे साथ सम्बन्धवाला, मेरा चैतन्य है उसके द्वाराजो
(चैतन्य) समानजातीय अथवा असमानजातीय अन्य द्रव्यको छोड़कर मेरे आत्मामें ही वर्तता
है उसके द्वारा
मैं अपने आत्माको सकल -त्रिकालमें ध्रुवत्वका धारक द्रव्य जानता हूँ
इसप्रकार पृथक्रूपसे वर्तमान स्वलक्षणोंके द्वाराजो अन्य द्रव्यको छोड़कर उसी द्रव्यमें
१. प्रवण = ढलती हुई; अभिमुख; रत
२. कितने ही गुण अन्य द्रव्योंके साथ सम्बन्ध रहित होनेसे अर्थात् अन्य द्रव्योंमें न होनेसे असाधारण हैं और
इसलिये विशेषणभूतभिन्न लक्षणभूत है; उसके द्वारा द्रव्योंकी भिन्नता निश्चित की जा सकती है
३. सत् = अस्तित्ववाला; सत्रूप; सत्तावाला
४. अकारण = जिसका कोई कारण न हो ऐसा अहेतुक, (चैतन्य सत् और अहेतुक होनेसे स्वयंसे सिद्ध है )
५. सकल = पूर्ण, समस्त, निरवशेष (आत्मा कोई कालको बाकी रखे बिना संपूर्ण तीनों काल ध्रुव रहता
ऐसा द्रव्य है )