Pravachansar (Hindi).

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इह खलु यदनारब्धस्वभावभेदमुत्पादव्ययध्रौव्यत्रयेण गुणपर्यायद्वयेन च यल्लक्ष्यते तद्
द्रव्यम् तत्र हि द्रव्यस्य स्वभावोऽस्तित्वसामान्यान्वयः अस्तित्वं हि वक्ष्यति द्विविधं
स्वरूपास्तित्वं सादृश्यास्तित्वं चेति तत्रोत्पादः प्रादुर्भावः, व्ययः प्रच्यवनं, ध्रौव्यमवस्थितिः
गुणा विस्तारविशेषाः ते द्विविधाः सामान्यविशेषात्मकत्वात् तत्रास्तित्वं नास्तित्व-
मेकत्वमन्यत्वं द्रव्यत्वं पर्यायत्वं सर्वगतत्वमसर्वगतत्वं सप्रदेशत्वमप्रदेशत्वं मूर्तत्वममूर्तत्वं
सक्रि यत्वमक्रि यत्वं चेतनत्वमचेतनत्वं कर्तृत्वमकर्तृत्वं भोक्तृत्वमभोक्तृत्वमगुरुलघुत्वं चेत्यादयः
सामान्यगुणाः, अवगाहहेतुत्वं गतिनिमित्तता स्थितिकारणत्वं वर्तनायतनत्वं रूपादिमत्ता
चेतनत्वमित्यादयो विशेषगुणाः
पर्याया आयतविशेषाः ते पूर्वमेवोक्ताश्चतुर्विधाः
केवलज्ञानोत्पत्तिप्रस्तावे शुद्धात्मरुचिपरिच्छित्तिनिश्चलानुभूतिरूपकारणसमयसारपर्यायस्य विनाशे सति
शुद्धात्मोपलम्भव्यक्तिरूपकार्यसमयसारस्योत्पादः कारणसमयसारस्य व्ययस्तदुभयाधारभूतपरमात्मद्रव्य-

त्वेन ध्रौव्यं च
तथानन्तज्ञानादिगुणाः, गतिमार्गणाविपक्षभूतसिद्धगतिः, इन्द्रियमार्गणाविपक्ष-
भूतातीन्द्रियत्वादिलक्षणाः शुद्धपर्यायाश्च भवन्तीति यथा शुद्धसत्तया सहाभिन्नं परमात्मद्रव्यं
पूर्वोक्तोत्पादव्ययध्रौव्यैर्गुणपर्यायैश्च सह संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेऽपि सति तैः सह सत्ताभेदं न
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१७१
टीका :यहाँ (इस विश्वमें) जो, स्वभावभेद किये बिना, उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यत्रयसे
और गुणपर्यायद्वयसे लक्षित होता है, वह द्रव्य है इनमेंसे (-स्वभाव, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य,
गुण और पर्यायमेंसे) द्रव्यका स्वभाव वह अस्तित्वसामान्यरूप अन्वय है; अस्तित्व दो
प्रकारका कहेंगे :स्वरूप -अस्तित्व सादृश्य -अस्तित्व उत्पाद वह प्रादुर्भाव (प्रगट
होनाउत्पन्न होना) है; व्यय वह प्रच्युति (अर्थात् भ्रष्ट,नष्ट होना) है; ध्रौव्य वह अवस्थिति
(ठिकाना) है; गुण वह विस्तारविशेष हैं वे सामान्यविशेषात्मक होनेसे दो प्रकारके हैं इनमें,
अस्तित्व, नास्तित्व, एकत्व, अन्यत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व, सर्वगतत्व, असर्वगतत्व, सप्रदेशत्व,
अप्रदेशत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व, सक्रियत्व, अक्रियत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, कर्तृत्व, अकर्तृत्व,
भोक्तृत्व, अभोक्तृत्व, अगुरुलघुत्व, इत्यादि सामान्यगुण हैं; अवगाहहेतुत्व, गतिनिमित्तता,
स्थितिकारणत्व, वर्तनायतनत्व, रूपादिमत्त्व, चेतनत्व इत्यादि विशेष गुण हैं
पर्याय आयतविशेष
हैं वे पूर्व ही (९३ वीं गाथा की टीकामें) कथित चार प्रकारकी हैं
१. उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यत्रय = उत्पाद, व्यय और ध्रौव्ययह त्रिपुटी (तीनोंका समूह)
२. गुणपर्यायद्वय = गुण और पर्याययह युगल (दोनोंका समूह)
३. लक्षित होता है = लक्ष्यरूप होता है, पहिचाना जाता है [ (१) उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य तथा (२) गुणपर्याय
वे लक्षण हैं और द्रव्य वह लक्ष्य है ]
४. अस्तित्वसामान्यरूप अन्वय = ‘है, है, है’ ऐसा एकरूप भाव द्रव्यका स्वभाव है (अन्वय = एकरूपता
सदृशभाव )