Pravachansar (Hindi).

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मुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते, तथा तदेव द्रव्यमप्युत्तरावस्थयोत्पद्यमानं
प्राक्तनावस्थया व्ययमानं तेन व्ययेन लक्ष्यते, न च तेन सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव
तथाविधत्वमवलम्बते
यथैव च तदेवोत्तरीयमेककालममलावस्थयोत्पद्यमानं मलिनावस्थया
व्ययमानमवस्थायिन्योत्तरीयत्वावस्थया ध्रौव्यमालम्बमानं ध्रौव्येण लक्ष्यते, न च तेन सह
स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते, तथैव तदेव द्रव्यमप्येककाल-
मुत्तरावस्थयोत्पद्यमानं प्राक्तनावस्थया व्ययमानमवस्थायिन्या द्रव्यत्वावस्थया ध्रौव्यमालम्बमानं
ध्रौव्येण लक्ष्यते, न च तेन सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते
यथैव च तदेवोत्तरीयं विस्तारविशेषात्मकैर्गुणैर्लक्ष्यते, न च तैः सह स्वरूपभेदमुपव्रजति,
स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते, तथैव तदेव द्रव्यमपि विस्तारविशेषात्मकैर्गुणैर्लक्ष्यते, न च
तैः सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वम -वलम्बते
यथैव च
तदेवोत्तरीयमायतविशेषात्मकैः पर्यायवर्तिभिस्तन्तुभिर्लक्ष्यते, न च तैः सह स्वरूप -भेदमुपव्रजति,
स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते; तथैव तदेव द्रव्यमप्यायतविशेषात्मकैः पर्यायैर्लक्ष्यते, न च
तैः सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते
।।९५।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१७३
साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूपसे ही वैसा है और जैसे वही वस्त्र एक ही समयमें
निर्मल अवस्थासे उत्पन्न होता हुआ, मलिन अवस्थासे व्ययको प्राप्त होता हुआ और
टिकनेवाली ऐसी वस्त्रत्व -अवस्थासे ध्रुव रहता हुआ ध्रौव्यसे लक्षित होता है; परन्तु उसका
उस ध्रौव्यके साथ स्वरूपभेद नहीं है, स्वरूपसे ही वैसा है; इसीप्रकार वही द्रव्य भी एक
ही समय उत्तर अवस्थासे उत्पन्न होता हुआ, पूर्व अवस्थासे व्यय होता हुआ, और टिकनेवाली
ऐसी द्रव्यत्वअवस्थासे ध्रुव रहता हुआ ध्रौव्यसे लक्षित होता है
किन्तु उसका उस ध्रौव्यके
साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूपसे ही वैसा है
और जैसे वही वस्त्र विस्तारविशेषस्वरूप (शुक्लत्वादि) गुणोंसे लक्षित होता है; किन्तु
उसका उन गुणोंके साथ स्वरूपभेद नहीं है, स्वरूपसे ही वह वैसा है; इसीप्रकार वही द्रव्य
भी विस्तारविशेषस्वरूप गुणोंसे लक्षित होता है; किन्तु उसका उन गुणोंके साथ स्वरूपभेद नहीं
है, वह स्वरूपसे ही वैसा है
और जैसे वही वस्त्र आयतविशेषस्वरूप पर्यायवर्ती
(-पर्यायस्थानीय) तंतुओंसे लक्षित होता है; किन्तु उसका उन तंतुओंके साथ स्वरूपभेद नहीं
है, वह स्वरूपसे ही वैसा है
उसीप्रकार वही द्रव्य भी आयतविशेषस्वरूप पर्यायोंसे लक्षित
होता है, परन्तु उसका उन पर्यायोंके साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूपसे ही वैसा है ।।९५।।
निर्मलपर्यायेणोत्पन्नं मलिनपर्यायेण विनष्टं तदुभयाधारभूतवस्त्ररूपेण ध्रुवमविनश्वरं, तथैव शुक्ल-
वर्णादिगुणनवजीर्णादिपर्यायसहितं च सत् तैरुत्पादव्ययध्रौव्यैस्तथैव च स्वकीयगुणपर्यायैः सह

संज्ञादिभेदेऽपि सति सत्तारूपेण भेदं न करोति
तर्हि किं करोति स्वरूपत एवोत्पादादिरूपेण