स्वयमेवोन्मग्ननिमग्नत्वात् । तथा हि — यदैव पर्यायेणार्प्यते द्रव्यं तदैव गुणवदिदं द्रव्यमय-
मस्य गुणः, शुभ्रमिदमुत्तरीयमयमस्य शुभ्रो गुण इत्यादिवदताद्भाविको भेद उन्मज्जति । यदा
तु द्रव्येणार्प्यते द्रव्यं तदास्तमितसमस्तगुणवासनोन्मेषस्य तथाविधं द्रव्यमेव शुभ्रमुत्तरीय-
मित्यादिवत्प्रपश्यतः समूल एवाताद्भाविको भेदो निमज्जति । एवं हि भेदे निमज्जति तत्प्रत्यया
प्रतीतिर्निमज्जति । तस्यां निमज्जत्यामयुतसिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वं निमज्जति । ततः समस्तमपि
द्रव्यमेवैकं भूत्वावतिष्ठते । यदा तु भेद उन्मज्जति, तस्मिन्नुन्मज्जति तत्प्रत्यया प्रतीति-
रुन्मज्जति, तस्यामुन्मज्जत्यामयुतसिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वमुन्मज्जति, तदापि तत्पर्यायत्वेनोन्मज्जज्जल-
राशेर्जलकल्लोल इव द्रव्यान्न व्यतिरिक्तं स्यात् । एवं सति स्वयमेव सद् द्रव्यं भवति । यस्त्वेवं
मिथ्यादृष्टिर्भवति । एवं यथा परमात्मद्रव्यं स्वभावतः सिद्धमवबोद्धव्यं तथा सर्वद्रव्याणीति । अत्र द्रव्यं
केनापि पुरुषेण न क्रियते । सत्तागुणोऽपि द्रव्याद्भिन्नो नास्तीत्यभिप्रायः ।।९८।। अथोत्पादव्ययध्रौव्यत्वे
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१८५
प्र २४
(अताद्भाविक भेद) स्वयमेव १उन्मग्न और २निमग्न होता है । वह इसप्रकार है : — जब द्रव्यको
पर्याय प्राप्त कराई जाय ( अर्थात् जब द्रव्यको पर्याय प्राप्त करती है — पहुँचती है इसप्रकार
पर्यायार्थिकनयसे देखा जाय) तब ही — ‘शुक्ल यह वस्त्र है, यह इसका शुक्लत्व गुण है’
इत्यादिकी भाँति — ‘गुणवाला यह द्रव्य है, यह इसका गुण है’ इसप्रकार अताद्भाविक भेद
उन्मग्न होता है; परन्तु जब द्रव्यको द्रव्य प्राप्त कराया जाय (अर्थात् द्रव्यको द्रव्य प्राप्त करता
है; — पहुँचता है इसप्रकार द्रव्यार्थिकनयसे देखा जाय), तब जिसके समस्त ३गुणवासनाके उन्मेष
अस्त हो गये हैं ऐसे उस जीवको — ‘शुक्लवस्त्र ही है’ इत्यादिकी भाँति — ‘ऐसा द्रव्य ही है’
इसप्रकार देखने पर समूल ही अताद्भाविक भेद निमग्न होता है । इसप्रकार भेदके निमग्न होने
पर उसके आश्रयसे (-कारणसे) होती हुई प्रतीति निमग्न होती है । उसके निमग्न होने पर
अयुतसिद्धत्वजनित अर्थान्तरपना निमग्न होता है, इसलिये समस्त ही एक द्रव्य ही होकर रहता
है । और जब भेद उन्मग्न होता है, वह उन्मग्न होने पर उसके आश्रय (कारण) से होती हुई
प्रतीति उन्मग्न होती है, उसके उन्मग्न होने पर अयुतसिद्धत्वजनित अर्थान्तरपना उन्मग्न होता है,
तब भी (वह) द्रव्यके पर्यायरूपसे उन्मग्न होनेसे, — जैसे जलराशिसे जलतरंगें व्यतिरिक्त नहीं
हैं (अर्थात् समुद्रसे तरंगें अलग नहीं हैं) उसीप्रकार — द्रव्यसे व्यतिरिक्त नहीं होता ।
१. उन्मग्न होना = ऊ पर आना; तैर आना; प्रगट होना (मुख्य होना) ।
२. निमग्न होना = डूब जाना (गौण होना) ।
३. गुणवासनाके उन्मेष = द्रव्यमें अनेक गुण होनेके अभिप्रायकी प्रगटता; गुणभेद होनेरूप मनोवृत्तिके
(अभिप्रायके) अंकुर ।