Pravachansar (Hindi). Gatha: 99.

< Previous Page   Next Page >


Page 186 of 513
PDF/HTML Page 219 of 546

 

background image
नेच्छति स खलु परसमय एव द्रष्टव्यः ।।९८।।
अथोत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वेऽपि सद् द्रव्यं भवतीति विभावयति
सदवट्ठिदं सहावे दव्वं दव्वस्स जो हि परिणामो
अत्थेसु सो सहावो ठिदिसंभवणाससंबद्धो ।।९९।।
सदवस्थितं स्वभावे द्रव्यं द्रव्यस्य यो हि परिणामः
अर्थेषु स स्वभावः स्थितिसंभवनाशसंबद्धः ।।९९।।
इह हि स्वभावे नित्यमवतिष्ठमानत्वात्सदिति द्रव्यम् स्वभावस्तु द्रव्यस्य ध्रौव्यो-
त्पादोच्छेदैक्यात्मकपरिणामः यथैव हि द्रव्यवास्तुनः सामस्त्येनैकस्यापि विष्कम्भक्रम-
सति सत्तैव द्रव्यं भवतीति प्रज्ञापयतिसदवट्ठिदं सहावे दव्वं द्रव्यं मुक्तात्मद्रव्यं भवति किं कर्तृ
सदिति शुद्धचेतनान्वयरूपमस्तित्वम् किंविशिष्टम् अवस्थितम् क्व स्वभावे स्वभावं कथयति
दव्वस्स जो हि परिणामो तस्य परमात्मद्रव्यस्य संबन्धी हि स्फु टं यः परिणामः केषु विषयेषु अत्थेसु
१८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
ऐसा होनेसे (यह निश्चित हुआ कि) द्रव्य स्वयमेव सत् है जो ऐसा नहीं मानता वह
(उसे) वास्तवमें ‘परसमय’ (मिथ्यादृष्टि) ही मानना ।।९८।।
अब, यह बतलाते हैं कि उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यात्मक होने पर भी द्रव्य ‘सत्’ है :
अन्वयार्थ :[स्वभावे ] स्वभावमें [अवस्थितं ] अवस्थित (होनेसे) [द्रव्यं ] द्रव्य
[सत् ] ‘सत्’ है; [द्रव्यस्य ] द्रव्यका [यः हि ] जो [स्थितिसंभवनाशसंबद्धः ]
उत्पादव्ययध्रौव्य सहित [परिणामः ] परिणाम है [सः ] वह [अर्थेषु स्वभावः ] पदार्थोंका
स्वभाव है
।।९९।।
टीका :यहाँ (विश्वमें) स्वभावमें नित्य अवस्थित होनेसे द्रव्य ‘सत्’ है स्वभाव
द्रव्यका ध्रौव्य -उत्पाद -विनाशकी एकतास्वरूप परिणाम है
जैसे द्रव्यका वास्तु समग्रपने द्वारा (अखण्डता द्वारा) एक होनेपर भी, विस्तारक्रममें
१. द्रव्यका वास्तु = द्रव्यका स्व -विस्तार, द्रव्यका स्व -क्षेत्र, द्रव्यका स्व -आकार, द्रव्यका स्व -दल
(वास्तु = घर, निवासस्थान, आश्रय, भूमि )
द्रव्यो स्वभाव विषे अवस्थित, तेथी ‘सत्’ सौ द्रव्य छे ;
उत्पाद -ध्रौव्य -विनाशयुत परिणाम द्रव्यस्वभाव छे. ९९.