सूक्ष्मांशाः परिणामाः । यथा च प्रदेशानां परस्परव्यतिरेकनिबन्धनो विष्कम्भक्रमः, तथा
संहारध्रौव्यात्मकमात्मानं धारयन्ति, तथैव ते परिणामाः स्वावसरे स्वरूपपूर्वरूपाभ्या-
मुत्पन्नोच्छन्नत्वात्सर्वत्र परस्परानुस्यूतिसूत्रितैकप्रवाहतयानुत्पन्नप्रलीनत्वाच्च संभूतिसंहारध्रौव्या-
त्मकमात्मानं धारयन्ति । यथैव च य एव हि पूर्वप्रदेशोच्छेदनात्मको वास्तुसीमान्तः स एव
जैसे वे प्रदेश अपने स्थानमें स्व -रूपसे उत्पन्न और पूर्व -रूपसे विनष्ट होनेसे तथा सर्वत्र परस्पर ३अनुस्यूतिसे रचित एकवास्तुपने द्वारा अनुत्पन्न -अविनष्ट होनेसे उत्पत्ति -संहार- ध्रौव्यात्मक हैं, उसीप्रकार वे परिणाम अपने अवसरमें स्व -रूपसे उत्पन्न और पूर्वरूपसे विनष्ट होनेसे तथा सर्वत्र परस्पर अनुस्यूतिसे रचित एक प्रवाहपने द्वारा अनुत्पन्न -अविनष्ट होनेसे उत्पत्ति -संहार -ध्रौव्यात्मक हैं । और जैसे वास्तुका जो छोटेसे छोटा अंश पूर्वप्रदेशके विनाशस्वरूप है वही (अंश) उसके बादके प्रदेशका उत्पादस्वरूप है तथा वही परस्पर अनुस्यूतिसे रचित एक वास्तुपने द्वारा अनुभय स्वरूप है (अर्थात् दोमेंसे एक भी स्वरूप नहीं है), इसीप्रकार प्रवाहका जो छोटेसे छोटा अंश पूर्वपरिणामके विनाशस्वरूप है वही उसके १. वृत्ति = वर्तना वह; होना वह; अस्तित्व । २. व्यतिरेक = भेद; (एकका दूसरेमें) अभाव, (एक परिणाम दूसरे परिणामरूप नहीं है, इसलिये द्रव्यके
प्रवाहमें क्रम है) । ३. अनुस्यूति = अन्वयपूर्वक जुड़ान । [सर्व परिणाम परस्पर अन्वयपूर्वक (सादृश्य सहित) गुंथित (जुड़े)