Pravachansar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१८७
प्रवृत्तिवर्तिनः सूक्ष्मांशाः प्रदेशाः, तथैव हि द्रव्यवृत्तेः सामस्त्येनैकस्यापि प्रवाहक्रमप्रवृत्तिवर्तिनः
सूक्ष्मांशाः परिणामाः
यथा च प्रदेशानां परस्परव्यतिरेकनिबन्धनो विष्कम्भक्रमः, तथा
परिणामानां परस्परव्यतिरेकनिबन्धनः प्रवाहक्रमः यथैव च ते प्रदेशाः स्वस्थाने स्वरूप-
पूर्वरूपाभ्यामुत्पन्नोच्छन्नत्वात्सर्वत्र परस्परानुस्यूतिसूत्रितैकवास्तुतयानुत्पन्नप्रलीनत्वाच्च संभूति-
संहारध्रौव्यात्मकमात्मानं धारयन्ति, तथैव ते परिणामाः स्वावसरे स्वरूपपूर्वरूपाभ्या-
मुत्पन्नोच्छन्नत्वात्सर्वत्र परस्परानुस्यूतिसूत्रितैकप्रवाहतयानुत्पन्नप्रलीनत्वाच्च संभूतिसंहारध्रौव्या-
त्मकमात्मानं धारयन्ति
यथैव च य एव हि पूर्वप्रदेशोच्छेदनात्मको वास्तुसीमान्तः स एव
हि तदुत्तरोत्पादात्मकः, स एव च परस्परानुस्यूतिसूत्रितैकवास्तुतयातदुभयात्मक इति; तथैव
परमात्मपदार्थस्य धर्मत्वादभेदनयेनार्था भण्यन्ते के ते केवलज्ञानादिगुणाः सिद्धत्वादिपर्यायाश्च,
तेष्वर्थेषु विषयेषु योऽसौ परिणामः सो सहावो केवलज्ञानादिगुणसिद्धत्वादिपर्यायरूपस्तस्य
परमात्मद्रव्यस्य स्वभावो भवति स च कथंभूतः ठिदिसंभवणाससंबद्धो स्वात्मप्राप्तिरूपमोक्षपर्यायस्य
संभवस्तस्मिन्नेव क्षणे परमागमभाषयैकत्ववितर्कावीचारद्वितीयशुक्लध्यानसंज्ञस्य शुद्धोपादानभूतस्य
प्रवर्तमान उसके जो सूक्ष्म अंश हैं वे प्रदेश हैं, इसीप्रकार द्रव्यकी वृत्ति समग्रपने द्वारा एक
होनेपर भी, प्रवाहक्रममें प्रवर्तमान उसके जो सूक्ष्म अंश हैं वे परिणाम है जैसे विस्तारक्रमका
कारण प्रदेशोंका परस्पर व्यतिरेक है, उसीप्रकार प्रवाहक्रमका कारण परिणामोंका परस्पर
व्यतिरेक है

जैसे वे प्रदेश अपने स्थानमें स्व -रूपसे उत्पन्न और पूर्व -रूपसे विनष्ट होनेसे तथा सर्वत्र परस्पर अनुस्यूतिसे रचित एकवास्तुपने द्वारा अनुत्पन्न -अविनष्ट होनेसे उत्पत्ति -संहार- ध्रौव्यात्मक हैं, उसीप्रकार वे परिणाम अपने अवसरमें स्व -रूपसे उत्पन्न और पूर्वरूपसे विनष्ट होनेसे तथा सर्वत्र परस्पर अनुस्यूतिसे रचित एक प्रवाहपने द्वारा अनुत्पन्न -अविनष्ट होनेसे उत्पत्ति -संहार -ध्रौव्यात्मक हैं और जैसे वास्तुका जो छोटेसे छोटा अंश पूर्वप्रदेशके विनाशस्वरूप है वही (अंश) उसके बादके प्रदेशका उत्पादस्वरूप है तथा वही परस्पर अनुस्यूतिसे रचित एक वास्तुपने द्वारा अनुभय स्वरूप है (अर्थात् दोमेंसे एक भी स्वरूप नहीं है), इसीप्रकार प्रवाहका जो छोटेसे छोटा अंश पूर्वपरिणामके विनाशस्वरूप है वही उसके १. वृत्ति = वर्तना वह; होना वह; अस्तित्व २. व्यतिरेक = भेद; (एकका दूसरेमें) अभाव, (एक परिणाम दूसरे परिणामरूप नहीं है, इसलिये द्रव्यके

प्रवाहमें क्रम है) ३. अनुस्यूति = अन्वयपूर्वक जुड़ान [सर्व परिणाम परस्पर अन्वयपूर्वक (सादृश्य सहित) गुंथित (जुड़े)

होनेसे, वे सब परिणाम एक प्रवाहरूपसे हैं, इसलिये वे उत्पन्न या विनष्ट नहीं हैं ]