Pravachansar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 191 of 513
PDF/HTML Page 224 of 546

 

background image
नतिक्रमणात यैव च मृत्तिकायाः स्थितिस्तावेव कुम्भपिण्डयोः सर्गसंहारौ, व्यतिरेक -
मुखेनैवान्वयस्य प्रकाशनात यदि पुनर्नेदमेवमिष्येत तदान्यः सर्गोऽन्यः संहारः अन्या
स्थितिरित्यायाति तथा सति हि केवलं सर्गं मृगयमाणस्य कुम्भस्योत्पादनकारणाभावाद-
भवनिरेव भवेत्, असदुत्पाद एव वा तत्र कुम्भस्याभवनौ सर्वेषामेव भावानामभवनिरेव
भवेत्; असदुत्पादे वा व्योमप्रसवादीनामप्युत्पादः स्यात तथा के वलं संहारमारभमाणस्य
मृत्पिण्डस्य संहारकारणाभावादसंहरणिरेव भवेत्, सदुच्छेद एव वा तत्र मृत्पिण्डस्यासंहरणौ
परद्रव्योपादेयरुचिरूपमिथ्यात्वस्य भङ्गो नास्ति कथंभूतः पूर्वोक्तसम्यक्त्वपर्यायसंभवरहितः
कस्मादिति चेत् भङ्गकारणाभावात्, घटोत्पादाभावे मृत्पिण्डस्येव द्वितीयं च कारणं
सम्यक्त्वपर्यायोत्पादस्य मिथ्यात्वपर्यायाभावरूपेण दर्शनात् तदपि कस्मात् पर्यायस्य
पर्यायान्तराभावरूपत्वात्, घटपर्यायस्य मृत्पिण्डाभावरूपेणेव यदि पुनः सम्यक्त्वोत्पादनिरपेक्षो भवति
मिथ्यात्वपर्यायाभावस्तर्ह्यभाव एव न स्यात् कस्मात् अभावकारणाभावादिति, घटोत्पादाभावे
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१९१
व्यतिरेक अन्वयका अतिक्रमण (उल्लंघन) नहीं करते, और जो मृत्तिकाकी स्थिति है वही
कुम्भका सर्ग और पिण्डका संहार है, क्योंकि व्यतिरेकोंके द्वारा अन्वय प्रकाशित होता है
और यदि ऐसा ही (ऊ पर समझाया तदनुसार) न माना जाय तो ऐसा सिद्ध होगा कि ‘सर्ग
अन्य है, संहार अन्य है, स्थिति अन्य है
’ (अर्थात् तीनों पृथक् हैं ऐसा माननेका प्रसंग आ
जायगा ) ऐसा होने पर (क्या दोष आता है, सो समझाते हैं) :
केवल सर्ग -शोधक कुम्भकी (-व्यय और ध्रौव्यसे भिन्न मात्र उत्पाद करनेको
जानेवाले कुम्भकी) उत्पादन कारणका अभाव होनेसे उत्पत्ति ही नहीं होगी; अथवा तो
असत्का ही उत्पाद होगा और वहाँ, (१) यदि कुम्भकी उत्पत्ति न होगी तो समस्त ही
भावोंकी उत्पत्ति ही नहीं होगी (अर्थात् जैसे कुम्भकी उत्पत्ति नहीं होगी उसीप्रकार विश्वके
किसी भी द्रव्यमें किसी भी भावका उत्पाद ही नहीं होगा,यह दोष आयगा); अथवा
(२) यदि असत्का उत्पाद हो तो व्योम -पुष्प इत्यादिका भी उत्पाद होगा, (अर्थात् शून्यमेंसे
भी पदार्थ उत्पन्न होने लगेंगे,यह दोष आयगा )
और केवल व्ययारम्भक (उत्पाद और ध्रौव्यसे रहित केवल व्यय करनेको उद्यत
मृत्तिकापिण्डका) संहारकारणका अभाव होनेसे संहार ही नहीं होगा; अथवा तो सत्का ही
उच्छेद होगा
वहाँ, (१) यदि मृत्तिकापिण्डका व्यय न होगा तो समस्त ही भावोंका संहार
१. व्यतिरेक = भेद; एक दूसरेरूप न होना वह; ‘यह वह नहीं है’ ऐसे ज्ञानका निमित्तभूत भिन्नरूपत्व
२. अन्वय = एकरूपता; सादृश्यता; ‘यह वही है’ ऐसे ज्ञानका कारणभूत एकरूपत्व
३. उत्पादनकारण = उत्पत्तिका कारण ४. व्योमपुष्प = आकाशके फू ल