स्कन्धमूलशाखाभिरालम्बित एव प्रतिभाति, तथा समुदायि द्रव्यं पर्यायसमुदायात्मकं
पर्यायैरालम्बितमेव प्रतिभाति । पर्यायास्तूत्पादव्ययध्रौव्यैरालम्ब्यन्ते, उत्पादव्ययध्रौव्याणामंश-
धर्मत्वात्; बीजांकुरपादपत्ववत् । यथा किलांशिनः पादपस्य बीजांकुरपादपत्व-
लक्षणास्त्रयोंऽशा भंगोत्पादध्रौव्यलक्षणैरात्मधर्मैरालम्बिताः सममेव प्रतिभान्ति, तथांशिनो
द्रव्यस्योच्छिद्यमानोत्पद्यमानावतिष्ठमानभावलक्षणास्त्रयोंऽशा भंगोत्पादध्रौव्यलक्षणैरात्मधर्मैरा-
लम्बिताः सममेव प्रतिभान्ति । यदि पुनभंगोत्पादध्रौव्याणि द्रव्यस्यैवेष्यन्ते तदा समग्रमेव
विप्लवते । तथा हि — भंगे तावत् क्षणभंगकटाक्षितानामेकक्षण एव सर्वद्रव्याणां संहरणाद्
द्रव्यशून्यतावतारः सदुच्छेदो वा । उत्पादे तु प्रतिसमयोत्पादमुद्रितानां प्रत्येकं द्रव्याणा-
सम्यक्त्वपूर्वकनिर्विकारस्वसंवेदनज्ञानपर्याये तावदुत्पादस्तिष्ठति स्वसंवेदनज्ञानविलक्षणाज्ञानपर्यायरूपेण
भङ्गस्तदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपपर्यायेण ध्रौव्यं चेत्युक्तलक्षणस्वकीयस्वकीयपर्यायेषु । पज्जाया
दव्वम्हि संति ते चोक्तलक्षणज्ञानाज्ञानतदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपपर्याया हि स्फु टं द्रव्यं सन्ति । णियदं
१९४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
शाखाओंका समुदायस्वरूप होनेसे स्कंध, मूल और शाखाओंसे आलम्बित ही (भासित) दिखाई
देता है, इसीप्रकार समुदायी द्रव्य पर्यायोंका समुदायस्वरूप होनेसे पर्यायोंके द्वारा आलम्बित
ही भासित होता है । (अर्थात् जैसे स्कंध, मूल शाखायें वृक्षाश्रित ही हैं — वृक्षसे भिन्न पदार्थरूप
नहीं हैं, उसीप्रकार पर्यायें द्रव्याश्रित ही हैं, — द्रव्यसे भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं ।)
और पर्यायें उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यके द्वारा आलम्बित हैं (अर्थात् उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य
पर्यायाश्रित हैं ) क्योंकि उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य अंशोंके धर्म हैं (-१अंशीके नहीं); बीज, अंकुर
और वृक्षत्वकी भाँति । जैसे अंशी -वृक्षके बीज अंकुर -वृक्षत्वस्वरूप तीन अंश, व्यय -उत्पाद-
ध्रौव्यस्वरूप निज धर्मोंसे आलम्बित एक साथ ही भासित होते हैं, उसीप्रकार अंशी -द्रव्यके,
नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव, और अवस्थित रहनेवाला भाव; — यह तीनों अंश
व्यय -उत्पाद -ध्रौव्यस्वरूप निजधर्मोंके द्वारा आलम्बित एक साथ ही भासित होते हैं । किन्तु
यदि (१) भंग, (२) उत्पाद और (३) ध्रौव्यको (अंशीका न मानकर) द्रव्यका ही माना
जाय तो सारा २विप्लव को प्राप्त होगा । यथा – (१) पहले, यदि द्रव्यका ही भंग माना जाय
तो ३क्षणभंगसे लक्षित समस्त द्रव्योंका एक क्षणमें ही संहार हो जानेसे द्रव्यशून्यता आ जायगी,
अथवा सत्का उच्छेद हो जायगा । (२) यदि द्रव्यका उत्पाद माना जाय तो समय -समय पर
होनेवाले उत्पादके द्वारा चिह्नित ऐसे द्रव्योंको प्रत्येकको अनन्तता आ जायगी । (अर्थात् समय-
१. अंशी = अंशोंवाला; अंशोंंका बना हुआ । (द्रव्य अंशी है ।)
२. विप्लव = अंधाधुंधी = उथलपुथल; घोटाला; विरोध ।
३. क्षण = विनाश जिनका लक्षण हो ऐसे ।