पर्यायैरालम्बितमेव प्रतिभाति । पर्यायास्तूत्पादव्ययध्रौव्यैरालम्ब्यन्ते, उत्पादव्ययध्रौव्याणामंश-
द्रव्यस्योच्छिद्यमानोत्पद्यमानावतिष्ठमानभावलक्षणास्त्रयोंऽशा भंगोत्पादध्रौव्यलक्षणैरात्मधर्मैरा-
लम्बिताः सममेव प्रतिभान्ति । यदि पुनभंगोत्पादध्रौव्याणि द्रव्यस्यैवेष्यन्ते तदा समग्रमेव
भङ्गस्तदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपपर्यायेण ध्रौव्यं चेत्युक्तलक्षणस्वकीयस्वकीयपर्यायेषु । पज्जाया
देता है, इसीप्रकार समुदायी द्रव्य पर्यायोंका समुदायस्वरूप होनेसे पर्यायोंके द्वारा आलम्बित
ही भासित होता है । (अर्थात् जैसे स्कंध, मूल शाखायें वृक्षाश्रित ही हैं — वृक्षसे भिन्न पदार्थरूप
और पर्यायें उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यके द्वारा आलम्बित हैं (अर्थात् उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य पर्यायाश्रित हैं ) क्योंकि उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य अंशोंके धर्म हैं (-१अंशीके नहीं); बीज, अंकुर और वृक्षत्वकी भाँति । जैसे अंशी -वृक्षके बीज अंकुर -वृक्षत्वस्वरूप तीन अंश, व्यय -उत्पाद- ध्रौव्यस्वरूप निज धर्मोंसे आलम्बित एक साथ ही भासित होते हैं, उसीप्रकार अंशी -द्रव्यके, नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव, और अवस्थित रहनेवाला भाव; — यह तीनों अंश व्यय -उत्पाद -ध्रौव्यस्वरूप निजधर्मोंके द्वारा आलम्बित एक साथ ही भासित होते हैं । किन्तु यदि (१) भंग, (२) उत्पाद और (३) ध्रौव्यको (अंशीका न मानकर) द्रव्यका ही माना जाय तो सारा २विप्लव को प्राप्त होगा । यथा – (१) पहले, यदि द्रव्यका ही भंग माना जाय तो ३क्षणभंगसे लक्षित समस्त द्रव्योंका एक क्षणमें ही संहार हो जानेसे द्रव्यशून्यता आ जायगी, अथवा सत्का उच्छेद हो जायगा । (२) यदि द्रव्यका उत्पाद माना जाय तो समय -समय पर होनेवाले उत्पादके द्वारा चिह्नित ऐसे द्रव्योंको प्रत्येकको अनन्तता आ जायगी । (अर्थात् समय- १. अंशी = अंशोंवाला; अंशोंंका बना हुआ । (द्रव्य अंशी है ।) २. विप्लव = अंधाधुंधी = उथलपुथल; घोटाला; विरोध । ३. क्षण = विनाश जिनका लक्षण हो ऐसे ।