Pravachansar (Hindi). Gatha: 102.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१९५
मानन्त्यमसदुत्पादो वा ध्रौव्ये तु क्रमभुवां भावानामभावाद् द्रव्यस्याभावः क्षणिकत्वं वा
अत उत्पादव्ययध्रौव्यैरालम्ब्यन्तां पर्यायाः पर्यायैश्च द्रव्यमालम्ब्यन्तां, येन समस्तमप्येतदेकमेव
द्रव्यं भवति
।।१०१।।
अथोत्पादादीनां क्षणभेदमुदस्य द्रव्यत्वं द्योतयति
समवेदं खलु दव्वं संभवठिदिणाससण्णिदट्ठेहिं
एक्कम्हि चेव समये तम्हा दव्वं खु तत्तिदयं ।।१०२।।

निश्चितं प्रदेशाभेदेऽपि स्वकीयस्वकीयसंज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेन तम्हा दव्वं हवदि सव्वं यतो निश्चयाधाराधेयभावेन तिष्ठन्त्युत्पादादयस्तस्मात्कारणादुत्पादादित्रयं स्वसंवेदनज्ञानादिपर्यायत्रयं चान्वय- समय पर होनेवाला उत्पाद जिसका चिह्न हो ऐसा प्रत्येक द्रव्य अनंत द्रव्यत्वको प्राप्त हो जायगा) अथवा असत्का उत्पाद हो जायगा; (३) यदि द्रव्यका ही ध्रौव्य माना जाय तो क्रमशः होनेवाले भावोंके अभावके कारण द्रव्यका अभाव आयगा, अथवा क्षणिकपना होगा

इसलिये उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यके द्वारा पर्यायें आलम्बित हों, और पर्यायोंके द्वारा द्रव्य आलम्बित हो, कि जिससे यह सब एक ही द्रव्य है

भावार्थ :बीज, अंकुर और वृक्षत्व, यह वृक्षके अंश हैं बीजका नाश, अंकुरका उत्पाद और वृक्षत्वका ध्रौव्यतीनों एक ही साथ होते हैं इसप्रकार नाश बीजके आश्रित है, उत्पाद अंकुरके आश्रित है, और ध्रौव्य वृक्षत्वके आश्रित है; नाश, उत्पाद और ध्रौव्य बीज अंकुर और वृक्षत्वसे भिन्न पदार्थरूप नहीं है तथा बीज, अंकुर और वृक्षत्व भी वृक्षसे भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं इसलिये यह सब एक वृक्ष ही हैं इसीप्रकार नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव और ध्रौव्य भाव सब द्रव्यके अंश हैं नष्ट होते हुये भावका नाश, उत्पन्न होते हुये भावका उत्पाद और स्थायी भावका ध्रौव्य एक ही साथ है इसप्रकार नाश नष्ट होते भावके आश्रित है, उत्पाद उत्पन्न होते भावके आश्रित है और ध्रौव्य स्थायी भावके आश्रित है नाश, उत्पाद और ध्रौव्य उन भावोंसे भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं और वे भाव भी द्रव्यसे भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं इसलिये यह सब, एक द्रव्य ही हैं ।।१०१।।

अब, उत्पादादिका क्षणभेद निरस्त करके वे द्रव्य हैं यह समझाते हैं : १. निरस्त करके = दूर करके; नष्ट करके; खण्डित करके; निराकृत करके

उत्पादध्रौव्यविनाशसंज्ञित अर्थ सह समवेत छे
एक ज समयमां द्रव्य निश्चय, तेथी ए त्रिक द्रव्य छे . १०२.