Pravachansar (Hindi).

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मेवोत्पादादयः, कुतः क्षणभेदः तथा हियथा कुलालदण्डचक्रचीवरारोप्यमाणसंस्कार-
सन्निधौ य एव वर्धमानस्य जन्मक्षणः, स एव मृत्पिण्डस्य नाशक्षणः, स एव च कोटिद्वयाधि-
रूढस्य मृत्तिकात्वस्य स्थितिक्षणः, तथा अन्तरंगबहिरंगसाधनारोप्यमाणसंस्कारसन्निधौ य
एवोत्तरपर्यायस्य जन्मक्षणः, स एव प्राक्तनपर्यायस्य नाशक्षणः, स एव च कोटिद्वयाधिरूढस्य
द्रव्यत्वस्य स्थितिक्षणः
यथा च वर्धमानमृत्पिण्डमृत्तिकात्वेषु प्रत्येकवर्तीन्युत्पादव्ययध्रौव्याणि
त्रिस्वभावस्पर्शिन्यां मृत्तिकायां सामस्त्येनैकसमय एवावलोक्यन्ते, तथा उत्तरप्राक्तन-
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१९७
रूपपर्यायेण स्थितिरित्युक्तलक्षणसंज्ञित्वोत्पादव्ययध्रौव्यैः सह तर्हि किं बौद्धमतवद्भिन्नभिन्नसमये त्रयं
भविष्यति नैवम् एक्कम्मि चेव समये अङ्गुलिद्रव्यस्य वक्रपर्यायवत्संसारिजीवस्य मरणकाले ऋजुगतिवत्
क्षीणकषायचरमसमये केवलज्ञानोत्पत्तिवदयोगिचरमसमये मोक्षवच्चेत्येकस्मिन्समय एव तम्हा दव्वं खु
तत्तिदयं यस्मात्पूर्वोक्तप्रकारेणैकसमये भङ्गत्रयेण परिणमति तस्मात्संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेऽपि प्रदेशा-
नामभेदात्त्रयमपि खु स्फु टं द्रव्यं भवति यथेदं चारित्राचारित्रपर्यायद्वये भङ्गत्रयमभेदेन दर्शितं तथा
१. कोटि = प्रकार (मिट्टीपन तो पिण्डरूप तथा रामपात्ररूपदोनों प्रकारोंमें विद्यमान है )
भिन्न -भिन्न होता है, एक नहीं होता,ऐसी बात हृदयमें जमती है )
(यहाँ उपरोक्त शंकाका समाधान किया जाता है :इसप्रकार उत्पादादिका
क्षणभेद हृदयभूमिमें तभी उतर सकता है जब यह माना जाय कि ‘द्रव्य स्वयं ही उत्पन्न
होता है, स्वयं ही ध्रुव रहता है और स्वयं ही नाशको प्राप्त होता है !’ किन्तु ऐसा तो
माना नहीं गया है; (क्योंकि यह स्वीकार और सिद्ध किया गया है कि) पर्यायोंके ही
उत्पादादि हैं; (तब फि र) वहाँ क्षणभेद -कहाँसे हो सकता है ? यह समझते हैं :
जैसे कुम्हार, दण्ड, चक्र और डोरी द्वारा आरोपित किये जानेवाले संस्कारकी
उपस्थितिमें जो रामपात्रका जन्मक्षण होता है वही मृत्तिकापिण्डका नाशक्षण होता है, और
वही दोनों
कोटियोंमें रहनेवाला मिट्टीपनका स्थितिक्षण होता है; इसीप्रकार अन्तरंग और
बहिरंग साधनों द्वारा किये जानेवाले संस्कारोंकी उपस्थितिमें, जो उत्तर पर्यायका जन्मक्षण
होता है वही पूर्व पर्यायका नाश क्षण होता है, और वही दोनों कोटियोंमें रहनेवाले
द्रव्यत्वका स्थितिक्षण होता है
और जैसे रामपात्रमें, मृत्तिकापिण्डमें और मिट्टीपनमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य प्रत्येक
रूपमें (प्रत्येक पृथक् पृथक्) वर्तते होने पर भी त्रिस्वभावस्पर्शी मृत्तिकामें वे सम्पूर्णतया
(सभी एक साथ) एक समयमें ही देखे जाते हैं; इसीप्रकार उत्तर पर्यायमें, पूर्व पर्यायमें
और द्रव्यत्वमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य प्रत्येकतया (एक -एक) प्रवर्तमान होने पर भी