Pravachansar (Hindi). Gatha: 103.

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पर्यायद्रव्यत्वेषु प्रत्येकवर्तीन्यप्युत्पादव्ययध्रौव्याणि त्रिस्वभावस्पर्शिनि द्रव्ये सामस्त्येनैक-
समय एवावलोक्यन्ते
यथैव च वर्धमानपिण्डमृत्तिकात्ववर्तीन्युत्पादव्ययध्रौव्याणि मृत्तिकैव,
न वस्त्वन्तरं; तथैवोत्तरप्राक्तनपर्यायद्रव्यत्ववर्तीन्यप्युत्पादव्ययध्रौव्याणि द्रव्यमेव, न खल्व-
र्थान्तरम्
।।१०२।।
अथ द्रव्यस्योत्पादव्ययध्रौव्याण्यनेकद्रव्यपर्यायद्वारेण चिन्तयति
पाडुब्भवदि य अण्णो पज्जाओ पज्जओ वयदि अण्णो
दव्वस्स तं पि दव्वं णेव पणट्ठं ण उप्पण्णं ।।१०३।।
प्रादुर्भवति चान्यः पर्यायः पर्यायो व्येति अन्यः
द्रव्यस्य तदपि द्रव्यं नैव प्रणष्टं नोत्पन्नम् ।।१०३।।
१९प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
सर्वद्रव्यपर्यायेष्ववबोद्धव्यमित्यर्थः ।।१०२।। एवमुत्पादव्ययध्रौव्यरूपलक्षणव्याख्यानमुख्यतया गाथा-
त्रयेण तृतीयस्थलं गतम् अथ द्रव्यपर्यायेणोत्पादव्ययध्रौव्याणि दर्शयतिपाडुब्भवदि य प्रादुर्भवति च
जायते अण्णो अन्यः कश्चिदपूर्वानन्तज्ञानसुखादिगुणास्पदभूतः शाश्वतिकः स कः पज्जाओ
त्रिस्वभावस्पर्शी द्रव्यमें वे संपूर्णतया (तीनों एकसाथ) एक समयमें ही देखे जाते हैं
और जैसे रामपात्र, मृत्तिकापिण्ड तथा मिट्टीपनमें प्रवर्तमान उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य
मिट्टी ही हैं, अन्य वस्तु नहीं; उसीप्रकार उत्तर पर्याय, पूर्व पर्याय, और द्रव्यत्वमें प्रवर्तमान
उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य द्रव्य ही हैं, अन्य पदार्थ नहीं
।।१०२।।
अब, द्रव्यके उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यको अनेकद्रव्यपर्याय द्वारा विचारते हैं :
अन्वयार्थ :[द्रव्यस्य ] द्रव्यकी [अन्यः पर्यायः ] अन्य पर्याय [प्रादुर्भवति ]
उत्पन्न होती है [च ] और [अन्यः पर्यायः ] कोई अन्य पर्याय [व्येति ] नष्ट होती है;
[तदपि ] फि र भी [द्रव्यं ] द्रव्य [प्रणष्टं न एव ] न तो नष्ट है, [उत्पन्नं न ] न उत्पन्न है (-
वह ध्रुव है
)।।१०३।।
१. त्रिस्वभावस्पर्शी = तीनों स्वभावोंको स्पर्श करनेवाला (द्रव्य उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यइन तीनों
स्वभावोंको धारण करता है )
२. अनेकद्रव्यपर्याय = एकसे अधिक द्रव्योंके संयोगसे होनेवाली पर्याय
उपजे दरवनो अन्य पर्यय, अन्य को विणसे वळी,
पण द्रव्य तो नथी नष्ट के उत्पन्न द्रव्य नथी तहीं
. १०३.