एकद्रव्यपर्याया हि गुणपर्यायाः, गुणपर्यायाणामेकद्रव्यत्वात् । एकद्रव्यत्वं हि तेषां सहकारफलवत् । यथा किल सहकारफलं स्वयमेव हरितभावात् पाण्डुभावं परिणम- त्पूर्वोत्तरप्रवृत्तहरितापाण्डुभावाभ्यामनुभूतात्मसत्ताकं हरितपाण्डुभावाभ्यां सममविशिष्टसत्ताक- विनाशो नास्ति, ततः कारणाद्द्रव्यपर्याया अपि द्रव्यलक्षणं भवन्तीत्यभिप्रायः ।।१०३।। अथ द्रव्यस्योत्पादव्ययध्रौव्याणि गुणपर्यायमुख्यत्वेन प्रतिपादयति — परिणमदि सयं दव्वं परिणमति स्वयं स्वयमेवोपादानकारणभूतं जीवद्रव्यं कर्तृ । कं परिणमति । गुणदो य गुणंतरं निरुपरागस्वसंवेदनज्ञान-
अन्वयार्थ : — [सदविशिष्टं ] सत्तापेक्षासे अविशिष्टरूपसे, [द्रव्यं स्वयं ] द्रव्य स्वयं ही [गुणतः च गुणान्तरं ] गुणसे गुणान्तररूप [परिणमते ] परिणमित होता है, अर्थात् द्रव्य स्वयं ही एक गुणपर्यायमेंसे अन्य गुणपर्यायरूप परिणमित होता है, और उसकी सत्ता गुणपर्यायोंकी सत्ताके साथ अविशिष्ट — अभिन्न — एक ही रहती है), [तस्मात् पुनः ] और उनसे [गुणपर्यायाः] गुणपर्यायें [द्रव्यम् एव इति भणिताः ] द्रव्य ही कही गई हैं ।।१०४।।
टीका : — गुणपर्यायें एक द्रव्यपर्यायें हैं, क्योंकि गुणपर्यायोंको एक द्रव्यपना है, (अर्थात् गुणपर्यायें एकद्रव्यकी पर्यायें हैं, क्योंकि वे एक ही द्रव्य हैं — भिन्न -भिन्न द्रव्य नहीं ।) उनका एकद्रव्यत्व आम्रफलकी भाँति है । जैसे – आम्रफल स्वयं ही हरितभावमेंसे पीतभावरूप परिणमित होता हुआ, प्रथम और पश्चात् प्रवर्तमान हरितभाव और पीतभावके द्वारा अपनी सत्ताका अनुभव करता है, इसलिये हरितभाव और पीतभावके साथ १अविशिष्ट १. अविशिष्ट सत्तावाला = अभिन्न सत्तावाला; एक सत्तावाला; (आमकी सत्ता हरे और पीले भावकी सत्तासे