न पर्यायो यच्च द्रव्यमन्यो गुणः पर्यायो वा स न सत्तागुण इतीतरेतरस्य यस्तस्याभावः
स तदभावलक्षणोऽतद्भावोऽन्यत्वनिबन्धनभूतः ।।१०७।।
इति भण्यते । यश्च परमात्मपदार्थः केवलज्ञानादिगुणः सिद्धत्वपर्याय इति तैश्च त्रिभिः (प्रदेशाभेदेन ?)
शुद्धसत्तागुणो भण्यत इति तद्भावस्य लक्षणमिदम् । तद्भावस्येति कोऽर्थः । परमात्मपदार्थ-
केवलज्ञानादिगुणसिद्धत्वपर्यायाणां शुद्धसत्तागुणेन सह संज्ञादिभेदेऽपि प्रदेशैस्तन्मयत्वमिति । जो खलु
तस्स अभावो यस्तस्य पूर्वोक्तलक्षणतद्भावस्य खलु स्फु टं संज्ञादिभेदविवक्षायामभावः सो तदभावो स
पूर्वोक्तलक्षणस्तदभावो भण्यते । स च तदभावः किं भण्यते । अतब्भावो न तद्भावस्तन्मयत्वम् किंच
अतद्भावः संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदः इत्यर्थः । तद्यथा — यथा मुक्ताफलहारे योऽसौ शुक्लगुणस्तद्वाचके न
शुक्लमित्यक्षरद्वयेन हारो वाच्यो न भवति सूत्रं वा मुक्ताफलं वा, हारसूत्रमुक्ताफलशब्दैश्च शुक्लगुणो
वाच्यो न भवति । एवं परस्परं प्रदेशाभेदेऽपि योऽसौ संज्ञादिभेदः स तस्य पूर्वोक्त लक्षण-
तद्भावस्याभावस्तदभावो भण्यते । स च तदभावः पुनरपि किं भण्यते । अतद्भावः संज्ञा-
लक्षणप्रयोजनादिभेद इति । तथा मुक्तजीवे योऽसौ शुद्धसत्तागुणस्तद्वाचकेन सत्ताशब्देन मुक्तजीवो
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२०९
प्र. २७
एक -दूसरेमें जो ‘उसका अभाव’ अर्थात् ‘तद्रूप होनेका अभाव’ है वह ‘तद् -अभाव’ लक्षण
‘अतद्भाव’ है, जो कि अन्यत्वका कारण है । इसीप्रकार एक द्रव्यमें जो सत्तागुण है वह द्रव्य
नहीं है, १अन्यगुण नहीं है, या पर्याय नहीं है; और जो द्रव्य अन्य गुण या पर्याय है वह सत्तागुण
— इसप्रकार एक -दूसरेमें जो ‘उसका अभाव’ अर्थात् ‘तद्रूप होनेका अभाव’ है वह
२‘तद् -अभाव’ लक्षण ‘अतद्भाव’ है जो कि अन्यत्वका कारण है ।
भावार्थ : — एक आत्माका विस्तारकथनमें ‘आत्मद्रव्य’के रूपमें ‘ज्ञानादिगुण’ के
रूपमें और ‘सिद्धत्वादि पर्याय’ के रूपमें — तीन प्रकारसे वर्णन किया जाता है । इसीप्रकार
सर्व द्रव्योंके सम्बन्धमें समझना चाहिये ।
और एक आत्माके अस्तित्व गुणको ‘सत् आत्मद्रव्य’, सत् ज्ञानादिगुण’ और ‘सत्
सिद्धत्वादि पर्याय’ — ऐसे तीन प्रकारसे विस्तारित किया जाता है; इसीप्रकार सभी द्रव्योंके
सम्बन्धमें समझना चाहिये ।
और एक आत्माका जो अस्तित्व गुण है वह आत्मद्रव्य नहीं है, (सत्ता गुणके बिना)
ज्ञानादिगुण नहीं है, या सिद्धत्वादि पर्याय नहीं है; और जो आत्मद्रव्य है, (अस्तित्वके सिवाय)
ज्ञानादिगुण है या सिद्धत्वादि पर्याय है वह अस्तित्व गुण नहीं है — इसप्रकार उनमें परस्पर अतद्भाव
है, जिसके कारण उनमें अन्यत्व है । इसीप्रकार सभी द्रव्योंके सम्बन्धमें समझना चाहिये ।
१. अन्यगुण = सत्ता के अतिरिक्त दूसरा कोई भी गुण ।
२. तद् -अभाव = उसका अभाव; (तद् -अभाव = तस्य अभावः) तद्भाव अतद्भावका लक्षण (स्वरूप) है;
अतद्भाव अन्यत्वका कारण है ।