एकस्मिन्द्रव्ये यद् द्रव्यं गुणो न तद्भवति, यो गुणः स द्रव्यं न भवतीत्येवं यद् द्रव्यस्य
गुणरूपेण गुणस्य वा द्रव्यरूपेण तेनाभवनं सोऽतद्भावः, एतावतैवान्यत्वव्यवहारसिद्धेः । न
पुनर्द्रव्यस्याभावो गुणो गुणस्याभावो द्रव्यमित्येवंलक्षणोऽभावोऽतद्भावः । एवं सत्येकद्रव्य-
स्यानेकत्वमुभयशून्यत्वमपोहरूपत्वं वा स्यात् । तथा हि — यथा खलु चेतनद्रव्यस्याभावो-
ऽचेतनद्रव्यमचेतनद्रव्यस्याभावश्चेतनद्रव्यमिति तयोरनेकत्वं, तथा द्रव्यस्याभावो गुणो
गुणस्याभावो द्रव्यमित्येकस्यापि द्रव्यस्यानेकत्वं स्यात् । यथा सुवर्णस्याभावे सुवर्णत्वस्या-
भावः सुवर्णत्वस्याभावे सुवर्णस्याभाव इत्युभयशून्यत्वं, तथा द्रव्यस्याभावे गुणस्याभावो
योऽपि गुणः स न तत्त्वं द्रव्यमर्थतः परमार्थतः, यः शुद्धसत्तागुणः स मुक्तात्मद्रव्यं न भवति ।
शुद्धसत्ताशब्देन मुक्तात्मद्रव्यं वाच्यं न भवतीत्यर्थः । एसो हि अतब्भावो एष उक्तलक्षणो हि
स्फु टमतद्भावः । उक्तलक्षण इति कोऽर्थः । गुणगुणिनोः संज्ञादिभेदेऽपि प्रदेशभेदाभावः । णेव अभावो
त्ति णिद्दिट्ठो नैवाभाव इति निर्दिष्टः । नैव अभाव इति कोऽर्थः । यथा सत्तावाचकशब्देन मुक्तात्म-
द्रव्यं वाच्यं न भवति तथा यदि सत्ताप्रदेशैरपि सत्तागुणात्सकाशाद्भिन्नं भवति तदा यथा
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
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टीका : — एक द्रव्यमें, जो द्रव्य है वह गुण नहीं है, जो गुण है वह द्रव्य नहीं है; —
इसप्रकार जो द्रव्यका गुणरूपसे अभवन (-न होना) अथवा गुणका द्रव्यरूपसे अभवन वह
अतद्भाव है; क्योंकि इतनेसे ही अन्यत्वव्यवहार (-अन्यत्वरूप व्यवहार) सिद्ध होता है । परन्तु
द्रव्यका अभाव गुण है, गुणका अभाव द्रव्य है; — ऐसे लक्षणवाला अभाव वह अतद्भाव नहीं
है । यदि ऐसा हो तो (१) एक द्रव्यको अनेकत्व आ जायगा, (२) उभयशून्यता (दोनोंका
अभाव) हो जायगी, अथवा (३) अपोहरूपता आ जायगी । इसी को समझाते हैं : —
(द्रव्यका अभाव वह गुण है और गुणका अभाव वह द्रव्य; वह ऐसा मानने पर प्रथम
दोष इस प्रकार आयगा : — )
(१) जैसे चेतनद्रव्यका अभाव वह अचेतन द्रव्य है, अचेतनद्रव्यका अभाव वह
चेतनद्रव्य है, — इसप्रकार उनके अनेकत्व (द्वित्व) है, उसीप्रकार द्रव्यका अभाव वह गुण,
गुणका अभाव वह द्रव्य — इसप्रकार एक द्रव्यके भी अनेकत्व आ जायगा । (अर्थात् द्रव्यके
एक होनेपर भी उसके अनेकत्वका प्रसंग आ जायगा ।)
(अथवा उभयशून्यत्वरूप दूसरा दोष इस प्रकार आता है : — )
(२) जैसे सुवर्णके अभाव होने पर सुवर्णत्वका अभाव हो जाता है और
सुवर्णत्वका अभाव होने पर सुवर्णका अभाव हो जाता है, — इसप्रकार उभयशून्यत्व –
दोनोंका अभाव हो जाता है; उसीप्रकार द्रव्यका अभाव होने पर गुणका अभाव और गुणका
अभाव होने पर द्रव्यका अभाव हो जायगा; — इसप्रकार उभयशून्यता हो जायगी । (अर्थात्