गुणस्याभावे द्रव्यस्याभाव इत्युभयशून्यत्वं स्यात् । यथा पटाभावमात्र एव घटो घटाभावमात्र
एव पट इत्युभयोरपोहरूपत्वं, तथा द्रव्याभावमात्र एव गुणो गुणाभावमात्र एव द्रव्य-
मित्यत्राप्यपोहरूपत्वं स्यात् । ततो द्रव्यगुणयोरेकत्वमशून्यत्वमनपोहत्वं चेच्छता यथोदित
एवातद्भावोऽभ्युपगन्तव्यः ।।१०८।।
अथ सत्ताद्रव्ययोर्गुणगुणिभावं साधयति —
जो खलु दव्वसहावो परिणामो सो गुणो सदविसिट्ठो ।
सदवट्ठिदं सहावे दव्वं ति जिणोवदेसोयं ।।१०९।।
जीवप्रदेशेभ्यः पुद्गलद्रव्यं भिन्नं सद्द्रव्यान्तरं भवति तथा सत्तागुणप्रदेशेभ्यो मुक्तजीवद्रव्यं
सत्तागुणाद्भिन्नं सत्पृथग्द्रव्यान्तरं प्राप्नोति । एवं किं सिद्धम् । सत्तागुणरूपं पृथग्द्रव्यं मुक्तात्मद्रव्यं
च पृथगिति द्रव्यद्वयं जातं, न च तथा । द्वितीयं च दूषणं प्राप्नोति — यथा सुवर्णत्वगुणप्रदेशेभ्यो
२१२प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
द्रव्य तथा गुण दोनोंके अभावका प्रसंग आ जायगा ।)
(अथवा १अपोहरूपता नामक तीसरा दोष इसप्रकार आता है : – )
(३) जैसे पटाभावमात्र ही घट है, घटाभावमात्र ही पट है, (अर्थात् वस्त्रके केवल
अभाव जितना ही घट है, और घटके केवल अभाव जितना ही वस्त्र है) — इसप्रकार दोनोंके
अपोहरूपता है, उसीप्रकार द्रव्याभावमात्र ही गुण और गुणाभावमात्र ही द्रव्य होगा; — इसप्रकार
इसमें भी (द्रव्य -गुणमें भी) १अपोहरूपता आ जायगी, (अर्थात् केवल नकाररूपताका प्रसङ्ग
आ जायगा ।)
इसलिये द्रव्य और गुणका एकत्व, अशून्यत्व और २अनपोहत्व चाहनेवालेको यथोक्त
ही (जैसा कहा वैसा ही) अतद्भाव मानना चाहिये ।।१०८।।
अब, सत्ता और द्रव्यका गुण – गुणीपना सिद्ध करते हैं : —
१. अपोहरूपता = सर्वथा नकारात्मकता; सर्वथा भिन्नता । (द्रव्य और गुणमें एक -दूसरेका केवल नकार ही
हो तो ‘द्रव्य गुणवाला है’ ‘यह गुण इस द्रव्यका है’ — इत्यादि कथनसे सूचित किसी प्रकारका सम्बन्ध
ही द्रव्य और गुणके नहीं बनेगा ।)
२. अनपोहत्व = अपोहरूपताका न होना; केवल नकारात्मकताका न होना ।
परिणाम द्रव्यस्वभाव जे, ते गुण ‘सत्’-अविशिष्ट छे;
‘द्रव्यो स्वभावे स्थित सत् छे’ – ए ज आ उपदेश छे. १०९.