Pravachansar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 217 of 513
PDF/HTML Page 250 of 546

 

background image
पर्यायनिष्पादिका व्यतिरेकव्यक्तीस्तास्ताः संक्रामतो द्रव्यस्य सद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः,
हेमवत
तथा हियदा हेमैवाभिधीयते नांगदादयः पर्यायास्तदा हेमसमानजीविताभिर्यौग-
पद्यप्रवृत्ताभिर्हेमनिष्पादिकाभिरन्वयशक्ति भिरंगदादिपर्यायसमानजीविताः क्रमप्रवृत्ता अंगदादि-
पर्यायनिष्पादिका व्यतिरेकव्यक्तीस्तास्ताः संक्रामतो हेम्नः सद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः
यदा
तु पर्याया एवाभिधीयन्ते न द्रव्यं, तदा प्रभवावसानलांछनाभिः क्रमप्रवृत्ताभिः
पर्यायनिष्पादिकाभिर्व्यतिरेकव्यक्तिभिस्ताभिस्ताभिः प्रभवावसानवर्जिता यौगपद्यप्रवृत्ता द्रव्य-
करोति सदा लभदि सदा सर्वकालं लभते किं कर्मतापन्नम् पादुब्भावं प्रादुर्भावमुत्पादम्
कथंभूतम् सदसब्भावणिबद्धं सद्भावनिबद्धमसद्भावनिबद्धं च काभ्यां कृत्वा दव्वत्थपज्जयत्थेहिं
द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकनयाभ्यामिति तथाहियथा यदा काले द्रव्यार्थिकनयेन विवक्षा क्रियते यदेव
कटकपर्याये सुवर्णं तदेव कङ्कणपर्याये नान्यदिति, तदा काले सद्भावनिबद्ध एवोत्पादः कस्मादिति
चेत् द्रव्यस्य द्रव्यरूपेणाविनष्टत्वात् यदा पुनः पर्यायविवक्षा क्रियते कटकपर्यायात् सकाशादन्यो यः
कङ्कणपर्यायः सुवर्णसम्बन्धी स एव न भवति, तदा पुनरसदुत्पादः कस्मादिति चेत् पूर्वपर्यायस्य
विनष्टत्वात् तथा यदा द्रव्यार्थिकनयविवक्षा क्रियते य एव पूर्वं गृहस्थावस्थायामेवमेवं गृहव्यापारं
कृतवान् पश्चाज्जिनदीक्षां गृहीत्वा स एवेदानीं रामादिकेवलिपुरुषो निश्चयरत्नत्रयात्मकपरमात्मध्याने-
*१. व्यतिरेकव्यक्ति = भेदरूप प्रगटता [व्यतिरेकव्यक्तियाँ उत्पत्ति विनाशको प्राप्त होती हैं, क्रमशः प्रवृत्त
होती हैं और पर्यायोंको उत्पन्न करती हैं श्रुतज्ञान, केवलज्ञान इत्यादि तथा स्वरूपाचरण चारित्र,
यथाख्यातचारित्र इत्यादि आत्मद्रव्यकी व्यतिरेकव्यक्तियाँ हैं व्यतिरेक और अन्वयके अर्थोंके लिये
१९९वें पृष्ठका फु टनोट (टिप्पणी) देखें ]
२. सद्भावसंबद्ध = सद्भाव -अस्तित्वके साथ संबंध रखनेवाला,संकलित [द्रव्यकी विवक्षाके समय
अन्वय शक्तियोंको मुख्य और व्यतिरेकव्यक्तियोंको गौण कर दिया जाता है, इसलिये द्रव्यके
सद्भावसंबद्ध उत्पाद (सत् -उत्पाद, विद्यमानका उत्पाद) है
]
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२१७
પ્ર. ૨૮
पर्यायोंकी उत्पादक उन -उन व्यतिरेकव्यक्तियोंको प्राप्त होनेवाले द्रव्यको सद्भावसंबद्ध ही
उत्पाद है; सुवर्णकी भाँति जैसे :जब सुवर्ण ही कहा जाता हैबाजूबंधा आदि पर्यायें
नहीं, तब सुवर्ण जितनी स्थायी, युगपत् प्रवर्तमान, सुवर्णकी उत्पादक अन्वयशक्तियोंके द्वारा
बाजूबंध इत्यादि पर्याय जितने स्थायी, क्रमशः प्रवर्तमान, बाजूबंध इत्यादि पर्यायोंकी उत्पादक
उन -उन व्यतिरेकव्यक्तियोंको प्राप्त होनेवाले सुवर्णका सद्भावसंबद्ध ही उत्पाद है
और जब पर्यायें ही कही जाती हैं,द्रव्य नहीं, तब उत्पत्तिविनाश जिनका लक्षण है
ऐसी, क्रमशः प्रवर्तमान, पर्यायोंको उत्पन्न करनेवाली उन -उन व्यतिरेकव्यक्तियोंके द्वारा,
उत्पत्तिविनाश रहित, युगपत् प्रवर्तमान, द्रव्यकी उत्पादक अन्वयशक्तियोंको प्राप्त होनेवाले