निष्पादिका अन्वयशक्तीः संक्रामतो द्रव्यस्यासद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः, हेमवदेव । तथा
हि — यदांगदादिपर्याया एवाभिधीयन्ते, न हेम, तदांगदादिपर्यायसमानजीविताभिः
क्रमप्रवृत्ताभिरंगदादिपर्यायनिष्पादिकाभिर्व्यतिरेकव्यक्तिभिस्ताभिस्ताभिर्हेमसमानजीविता
यौगपद्यप्रवृत्ता हेमनिष्पादिका अन्वयशक्तिः संक्रामतो हेम्नोऽसद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः ।
अथ पर्यायाभिधेयतायामप्यसदुत्पत्तौ पर्यायनिष्पादिकास्तास्ता व्यतिरेकव्यक्तयो यौगपद्यप्रवृत्ति-
मासाद्यान्वयशक्तित्वमापन्नाः पर्यायान् द्रवीकुर्युः, तथांगदादिपर्यायनिष्पादिकाभिस्ताभि-
स्ताभिर्व्यतिरेकव्यक्तिभिर्यौगपद्यप्रवृत्तिमासाद्यान्वयशक्तित्वमापन्नाभिरंगदादिपर्याया अपि हेमी-
क्रियेरन् । द्रव्याभिधेयतायामपि सदुत्पत्तौ द्रव्यनिष्पादिका अन्वयशक्तयः क्रमप्रवृत्तिमासाद्य
तत्तद्वयतिरेकव्यक्तित्वमापन्ना द्रव्यं पर्यायीकुर्युः, तथा हेमनिष्पादिकाभिरन्वयशक्तिभिः
नानन्तसुखामृततृप्तो जातः, न चान्य इति, तदा सद्भावनिबद्ध एवोत्पादः । कस्मादिति चेत् ।
पुरुषत्वेनाविनष्टत्वात् । यदा तु पर्यायनयविवक्षा क्रियते पूर्वं सरागावस्थायाः सकाशादन्योऽयं
भरतसगररामपाण्डवादिकेवलिपुरुषाणां संबन्धी निरुपरागपरमात्मपर्यायः स एव न भवति, तदा
२१८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
द्रव्यको १असद्भावसंबद्ध ही उत्पाद है; सुवर्णकी ही भाँति । वह इसप्रकार जब बाजूबंधादि
पर्यायें ही कही जाती हैं — सुवर्ण नहीं, तब बाजूबंध इत्यादि पर्याय जितनी टिकनेवाली, क्रमशः
प्रवर्तमान, बाजूबंध इत्यादि पर्यायोंकी उत्पादक उन -उन व्यतिरेक -व्यक्तियोंके द्वारा, सुवर्ण
जितनी टिकनेवाली, युगपत् प्रवर्तमान, सुवर्णकी उत्पादक अन्वयशक्तियोंको प्राप्त सुवर्णके
असद्भावयुक्त ही उत्पाद है ।
अब, पर्यायोंकी अभिधेयता (कथनी) के समय भी, असत् -उत्पादमें पर्यायोंको उत्पन्न
करनेवाली वे -वे व्यतिरेकव्यक्तियाँ युगपत् प्रवृत्ति प्राप्त करके अन्वयशक्तिपनेको प्राप्त होती हुई
पर्यायोंको द्रव्य करता है (-पर्यायोंकी विवक्षाके समय भी व्यतिरेकव्यक्तियाँ अन्वयशक्तिरूप
बनती हुई पर्यायोंको द्रव्यरूप करती हैं ); जैसे बाजूबंध आदि पर्यायोंको उत्पन्न करनेवाली वे-
वे व्यतिरेकव्यक्तियाँ युगपत् प्रवृत्ति प्राप्त करके अन्वयशक्तिपनेको प्राप्त करती हुई बाजुबंध
इत्यादि पर्यायोंको सुवर्ण करता है तद्नुसार । द्रव्यकी अभिधेयताके समय भी, सत् -उत्पादमें
द्रव्यकी उत्पादक अन्वयशक्तियाँ क्रमप्रवृत्तिको प्राप्त करके उस -उस व्यतिरेकव्यक्तित्वको प्राप्त
होती हुई, द्रव्यको पर्यायें (-पर्यायरूप) करती हैं; जैसे सुवर्णकी उत्पादक अन्वयशक्तियाँ
१. असद्भावसंबंद्ध = अनस्तित्वके साथ संबंधवाला — संकलित । [पर्यायोंकी विवक्षाके समय
व्यतिरेकव्यक्तियोंको मुख्य और अन्वयशक्तियोंको गौण किया जाता है, इसलिये द्रव्यके असद्भावसंबद्ध
उत्पाद (असत् -उत्पाद, अविद्यमानका उत्पाद) है । ]