Pravachansar (Hindi).

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२२०प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
जीवो भवन् भविष्यति नरोऽमरो वा परो भूत्वा पुनः
किं द्रव्यत्वं प्रजहाति न जहदन्यः कथं भवति ।।११२।।

द्रव्यं हि तावद् द्रव्यत्वभूतामन्वयशक्तिं नित्यमप्यपरित्यजद्भवति सदेव यस्तु द्रव्यस्य पर्यायभूताया व्यतिरेकव्यक्तेः प्रादुर्भावः तस्मिन्नपि द्रव्यत्वभूताया अन्वयशक्तेरप्रच्यवनाद् द्रव्यमनन्यदेव ततोऽनन्यत्वेन निश्चीयते द्रव्यस्य सदुत्पादः तथा हिजीवो द्रव्यं भवन्नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवसिद्धत्वानामन्यतमेन पर्यायेण द्रव्यस्य पर्यायदुर्ललितवृत्तित्वाद- वश्यमेव भविष्यति स हि भूत्वा च तेन किं द्रव्यत्वभूतामन्वयशक्तिमुज्झति, नोज्झति किं किं भविष्यति निर्विकारशुद्धोपयोगविलक्षणाभ्यां शुभाशुभोपयोगाभ्यां परिणम्य णरोऽमरो वा परो नरो देवः परस्तिर्यङ्नारकरूपो वा निर्विकारशुद्धोपयोगेन सिद्धो वा भविष्यति भवीय पुणो एवं पूर्वोक्तप्रकारेण पुनर्भूत्वापि अथवा द्वितीयव्याख्यानम् भवन् वर्तमानकालापेक्षया भविष्यति भाविकालापेक्षया भूत्वा भूतकालापेक्षया चेति कालत्रये चैवं भूत्वापि किं दव्वत्तं पजहदि किं द्रव्यत्वं परित्यजति ण चयदि द्रव्यार्थिकनयेन द्रव्यत्वं न त्यजति, द्रव्याद्भिन्नो न भवति अण्णो कहं हवदि

अन्वयार्थ :[जीवः ] जीव [भवन् ] परिणमित होता हुआ [नरः ] मनुष्य, [अमरः ] देव [वा ] अथवा [परः ] अन्य (-तिर्यंच, नारकी या सिद्ध) [भविष्यति ] होगा, [पुनः ] परन्तु [भूत्वा ] मनुष्य देवादि होकर [किं ] क्या वह [द्रव्यत्वं प्रजहाति ] द्रव्यत्वको छोड़ देता है ? [न जहत् ] नहीं छोड़ता हुआ वह [अन्यः कथं भवति ] अन्य कैसे हो सकता है ? (अर्थात् वह अन्य नहीं, वहका वही है )।।११२।।

टीका :प्रथम तो द्रव्य द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिको कभी भी न छोड़ता हुआ सत् (विद्यमान) ही है और द्रव्यके जो पर्यायभूत व्यतिरेकव्यक्तिका उत्पाद होता है उसमें भी द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिका अच्युतपना होनेसे द्रव्य अनन्य ही है, (अर्थात् उस उत्पादमें भी अन्वयशक्ति तो अपतित -अविनष्ट -निश्चल होनेसे द्रव्य वहका वही है, अन्य नहीं ) इसलिये अनन्यपनेके द्वारा द्रव्यका सत् -उत्पाद निश्चित होता है, (अर्थात् उपरोक्त कथनानुसार द्रव्यका द्रव्यापेक्षासे अनन्यपना होनेसे, उसके सत् -उत्पाद है,ऐसा अनन्यपने द्वारा सिद्ध होता है )

इसी बातको (उदाहरण से) स्पष्ट किया जाता है :
जीव द्रव्य होनेसे और द्रव्य पर्यायोंमें वर्तनेसे जीव नारकत्व, तिर्यंचत्व, मनुष्यत्व,

देवत्व और सिद्धत्वमेंसे किसी एक पर्यायमें अवश्यमेव (परिणमित) होगा परन्तु वह जीव उस पर्यायरूप होकर क्या द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिको छोड़ता है ? नहीं छोड़ता