Pravachansar (Hindi).

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मेकान्तनिमीलितं विधाय केवलोन्मीलितेन द्रव्यार्थिकेन यदावलोक्यते तदा नारकतिर्यङ्-
मनुष्यदेवसिद्धत्वपर्यायात्मकेषु विशेषेषु व्यवस्थितं जीवसामान्यमेकमवलोकयतामनव-
लोकितविशेषाणां तत्सर्वं जीवद्रव्यमिति प्रतिभाति
यदा तु द्रव्यार्थिकमेकान्तनिमीलितं विधाय
केवलोन्मीलितेन पर्यायार्थिकेनावलोक्यते तदा जीवद्रव्ये व्यवस्थितान्नारकतिर्यङ्मनुष्यदेव-
सिद्धत्वपर्यायात्मकान् विशेषाननेकानवलोकयतामनवलोकितसामान्यानामन्यदन्यत्प्रतिभाति,
द्रव्यस्य तत्तद्विशेषकाले तत्तद्विशेषेभ्यस्तन्मयत्वेनानन्यत्वात
्, गणतृणपर्णदारुमयहव्यवाहवत
यदा तु ते उभे अपि द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिके तुल्यकालोन्मीलिते विधाय तत इतश्चावलोक्यते
तदा नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवसिद्धत्वपर्यायेषु व्यवस्थितं जीवसामान्यं जीवसामान्ये च व्यवस्थिता
नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवसिद्धत्वपर्यायात्मका विशेषाश्च तुल्यकालमेवावलोक्यन्ते
तत्रैकचक्षुरव-
पुनः अण्णं अन्यद्भिन्नमनेकं पर्यायैः सह पृथग्भवति कस्मादिति चेत् तक्काले तम्मयत्तादो तृणाग्नि-
काष्ठाग्निपत्राग्निवत् स्वकीयपर्यायैः सह तत्काले तन्मयत्वादिति एतावता किमुक्तं भवति द्रव्यार्थिक-
नयेन यदा वस्तुपरीक्षा क्रियते तदा पर्यायसन्तानरूपेण सर्वं पर्यायकदम्बकं द्रव्यमेव प्रतिभाति यदा
तु पर्यायनयविवक्षा क्रियते तदा द्रव्यमपि पर्यायरूपेण भिन्नं भिन्नं प्रतिभाति यदा च परस्परसापेक्ष-
नयद्वयेन युगपत्समीक्ष्यते, तदैकत्वमनेकत्वं च युगपत्प्रतिभातीति यथेदं जीवद्रव्ये व्याख्यानं कृतं तथा
२२प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
इनमेंसे पर्यायार्थिक चक्षुको सर्वथा बन्द करके जब मात्र खुली हुई द्रव्यार्थिक चक्षुके
द्वारा देखा जाता है तब नारकपना, तिर्यंचपना, मनुष्यपना, देवपना और सिद्धपनावह
पर्यायस्वरूप विशेषोंमें रहनेवाले एक जीवसामान्यको देखनेवाले और विशेषोंको न देखनेवाले
जीवोंको ‘वह सब जीव द्रव्य है’ ऐसा भासित होता है
और जब द्रव्यार्थिक चक्षुको सर्वथा
बन्द करके मात्र खुली हुई पर्यायार्थिक चक्षुके द्वारा देखा जाता है तब जीवद्रव्यमें रहनेवाले
नारकपना, तिर्यंचपना, मनुष्यपना, देवपना और सिद्धपना
वे पर्यायस्वरूप अनेक विशेषोंको
देखनेवाले और सामान्यको न देखनेवाले जीवोंको (वह जीव द्रव्य) अन्य -अन्य भासित होता
है, क्योंकि द्रव्य उन -उन विशेषोंके समय तन्मय होनेसे उन -उन विशेषोंसे अनन्य है
कण्डे,
घास, पत्ते और काष्ठमय अग्निकी भाँति (जैसे घास, लकड़ी इत्यादिकी अग्नि उस -उस समय
घासमय, लकडीमय इत्यादि होनेसे घास, लकड़ी इत्यादिसे अनन्य है उसीप्रकार द्रव्य उन-
उन पर्यायरूप विशेषोंके समय तन्मय होनेसे उनसे अनन्य है
पृथक् नहीं है ) और जब उन
द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों आँखोंको एक ही साथ खोलकर उनके द्वारा और इनके द्वारा
(-द्रव्यार्थिक तथा पर्यायार्थिक चक्षुओंके) देखा जाता है तब नारकपना, तिर्यंचपना, मनुष्यपना,
देवपना और सिद्धपना पर्यायोंमें रहनेवाला जीवसामान्य तथा जीवसामान्यमें रहनेवाला
नारकपना -तिर्यंचपना -मनुष्यपना -देवपना और सिद्धत्वपर्यायस्वरूप विशेष तुल्यकालमें ही
(एक ही साथ) दिखाई देते हैं