लोकनमेकदेशावलोकनं, द्विचक्षुरवलोकनं सर्वावलोकनम् । ततः सर्वावलोकने द्रव्यस्या-
न्यत्वानन्यत्वं च न विप्रतिषिध्यते ।।११४।।
अथ सर्वविप्रतिषेधनिषेधिकां सप्तभंगीमवतारयति —
अत्थि त्ति य णत्थि त्ति य हवदि अवत्तव्वमिदि पुणो दव्वं ।
पज्जाएण दु केण वि तदुभयमादिट्ठमण्णं वा ।।११५।।
सर्वद्रव्येषु यथासंभवं ज्ञातव्यमित्यर्थः ।।११४।। एवं सदुत्पादासदुत्पादकथनेन प्रथमा, सदुत्पाद-
विशेषविवरणरूपेण द्वितीया, तथैवासदुत्पादविशेषविवरणरूपेण तृतीया, द्रव्यपर्याययोरेकत्वानेकत्व-
प्रतिपादनेन चतुर्थीति सदुत्पादासदुत्पादव्याख्यानमुख्यतया गाथाचतुष्टयेन सप्तमस्थलं गतम् । अथ
समस्तदुर्नयैकान्तरूपविवादनिषेधिकां नयसप्तभङ्गीं विस्तारयति — अत्थि त्ति य स्यादस्त्येव । स्यादिति
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२२५
प्र. २९
वहाँ, एक आँखसे देखा जाना वह एकदेश अवलोकन है और दोनों आँखोंसे
देखना वह सर्वावलोकन (-सम्पूर्ण अवलोकन) है । इसलिये सर्वावलोकनमें द्रव्यके
अन्यत्व और अनन्यत्व विरोधको प्राप्त नहीं होते ।
भावार्थ : — प्रत्येक द्रव्य सामान्य – विशेषात्मक है, इसलिये प्रत्येक द्रव्य वहका
वही रहता है और बदलता भी है । द्रव्यका स्वरूप ही ऐसा उभयात्मक होनेसे द्रव्यके
अनन्यत्वमें और अन्यत्वमें विरोध नहीं है । जैसे – मरीचि और भगवान महावीरका
जीवसामान्यकी अपेक्षासे अनन्यत्व और जीव विशेषोंकी अपेक्षासे अन्यत्व होनेमें किसी
प्रकारका विरोध नहीं है ।
द्रव्यार्थिकनयरूपी एक चक्षुसे देखने पर द्रव्यसामान्य ही ज्ञात होता है, इसलिये
द्रव्य अनन्य अर्थात् वहका वही भासित होता है और पर्यायार्थिकनयरूपी दूसरी एक
चक्षुसे देखने पर द्रव्यके पर्यायरूप विशेष ज्ञात होते हैं, इसलिये द्रव्य अन्य -अन्य भासित
होता है । दोनों नयरूपी दोनों चक्षुओंसे देखने पर द्रव्यसामान्य और द्रव्यके विशेष दोनों
ज्ञात होते हैं, इसलिये द्रव्य अनन्य तथा अन्य -अन्य दोनों भासित होता है ।।११४।।
अब, समस्त विरोधोंको दूर करनेवाली सप्तभंगी प्रगट करते हैं : —
अस्ति, तथा छे नास्ति, तेम ज द्रव्य अणवक्तव्य छे,
वळी उभय को पर्यायथी, वा अन्यरूप कथाय छे. ११५.