Pravachansar (Hindi). Gatha: 119.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२३५
अथ जीवस्य द्रव्यत्वेनावस्थितत्वेऽपि पर्यायैरनवस्थितत्वं द्योतयति
जायदि णेव ण णस्सदि खणभंगसमुब्भवे जणे कोई
जो हि भवो सो विलओ संभवविलय त्ति ते णाणा ।।११९।।
जायते नैव न नश्यति क्षणभङ्गसमुद्भवे जने कश्चित्
यो हि भवः स विलयः संभवविलयाविति तौ नाना ।।११९।।

इह तावन्न कश्चिज्जायते न म्रियते च अथ च मनुष्यदेवतिर्यङ्नारकात्मको जीवलोकः प्रतिक्षणपरिणामित्वादुत्संगितक्षणभंगोत्पादः न च विप्रतिषिद्धमेतत्, संभवविलययोरेकत्व- कोमलशीतलनिर्मलादिस्वभावं न लभते, तथायं जीवोऽपि वृक्षस्थानीयकर्मोदयपरिणतः सन्परमाह्लादैक- लक्षणसुखामृतास्वादनैर्मल्यादिस्वकीयगुणसमूहं न लभत इति ।।११८।। अथ जीवस्य द्रव्येण नित्यत्वेऽपि पर्यायेण विनश्वरत्वं दर्शयतिजायदि णेव ण णस्सदि जायते नैव न नश्यति द्रव्यार्थिकनयेन क्व खणभंगसमुब्भवे जणे कोई क्षणभङ्गसमुद्भवे जने कोऽपि क्षणं क्षणं प्रति स्वभावकी अनुपलब्धि है, कर्मादिक अन्य किसी कारणसे नहीं ‘कर्म जीवके स्वभावका पराभव करता है’ ऐसा कहना तो उपचार कथन है; परमार्थसे ऐसा नहीं है ।।११८।।

अब, जीवकी द्रव्यरूपसे अवस्थितता होने पर भी पर्यायोंसे अनवस्थितता (अनित्यता -अस्थिरता) प्रकाशते हैं :

अन्वयार्थ :[क्षणभङ्गसमुद्भवे जने ] प्रतिक्षण उत्पाद और विनाशवाले जीवलोकमें [कश्चित् ] कोई [न एव जायते ] उत्पन्न नहीं होता और [न नश्यति ] न नष्ट होता है; [हि ] क्योंकि [यः भवः सः विलयः ] जो उत्पाद है वही विनाश है; [संभव -विलयौ इति तौ नाना ] और उत्पाद तथा विनाश, इसप्रकार वे अनेक (भिन्न) भी हैं ।।११९।।

टीका :प्रथम तो यहाँ न कोई जन्म लेता है और न मरता है (अर्थात् इस लोकमें कोई न तो उत्पन्न होता है और न नाशको प्राप्त होता है ) और (ऐसा होने पर भी) मनुष्य- देव -तिर्यंच -नारकात्मक जीवलोक प्रतिक्षण परिणामी होनेसे क्षण -क्षणमें होनेवाले विनाश और १. अवस्थितता = स्थिरपना; ठीक रहना

नहि कोई ऊपजे विणसे क्षणभंगसंभवमय जगे,
कारण जनम ते नाश छे; वळी जन्म नाश विभिन्न छे. ११९.