उत्पादके साथ (भी) जुड़ा हुआ है । और यह विरोधको प्राप्त नहीं होता; क्योंकि उद्भव और
विलयका एकपना और अनेकपना है । जब उद्भव और विलयका एकपना है तब पूर्वपक्ष है,
और जब अनेकपना है तब उत्तरपक्ष है । (अर्थात् – जब उत्पाद और विनाशके एकपनेकी अपेक्षा
ली जाय तब यह पक्ष फलित होता है कि – ‘न तो कोई उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है;
और जब उत्पाद तथा विनाशके अनेकपनेकी अपेक्षा ली जाय तब प्रतिक्षण होनेवाले विनाश और उत्पादका पक्ष फलित होता है ।) वह इसप्रकार है : —
जैसे : — ‘जो घड़ा है वही कूँडा है’ ऐसा कहा जाने पर, घड़े और कूँडेके स्वरूपकाएकपना असम्भव होनेसे, उन दोनोंकी आधारभूत मिट्टी प्रगट होती है, उसीप्रकार ‘जो उत्पाद है वही विनाश है’ ऐसा कहा जाने पर उत्पाद और विनाशके स्वरूपका एकपना असम्भव होनेसे उन दोनोंका आधारभूत ध्रौव्य प्रगट होता है; इसलिये देवादिपर्यायके उत्पन्न होने और मनुष्यादिपर्यायके नष्ट होने पर, ‘जो उत्पाद है वही विलय है’ ऐसा माननेसे (इस अपेक्षासे) उन दोनोंका आधारभूत ध्रौव्यवान् जीवद्रव्य प्रगट होता है (-लक्षमें आता है ) इसलिये सर्वदा द्रव्यपनेसे जीव टंकोत्कीर्ण रहता है
।
और फि र, जैसे ‘अन्य घड़ा है और अन्य कूँडा है’ ऐसा कहा जाने पर उन दोनोंकीआधारभूत मिट्टीका अन्यपना (-भिन्न -भिन्नपना) असंभवित होनेसे घड़ेका और कूँडेका (-दोनोंका भिन्न -भिन्न) स्वरूप प्रगट होता है, उसीप्रकार ‘अन्य उत्पाद है और अन्य व्यय