नानात्वाभ्याम् । यदा खलु भंगोत्पादयोरेकत्वं तदा पूर्वपक्षः, यदा तु नानात्वं तदोत्तरः । तथा
हि — यथा य एव घटस्तदेव कुण्डमित्युक्ते घटकुण्डस्वरूपयोरेकत्वासंभवात्तदुभयाधारभूता
मृत्तिका संभवति, तथा य एव संभवः स एव विलय इत्युक्ते संभवविलय-
स्वरूपयोरेकत्वासंभवात्तदुभयाधारभूतं ध्रौव्यं संभवति; ततो देवादिपर्याये संभवति मनुष्यादि-
पर्याये विलीयमाने च य एव संभवः स एव विलय इति कृत्वा तदुभयाधारभूतं
ध्रौव्यवज्जीवद्रव्यं संभाव्यत एव । ततः सर्वदा द्रव्यत्वेन जीवष्टंकोत्कीर्णोऽवतिष्ठते । अपि च
यथाऽन्यो घटोऽन्यत्कुण्डमित्युक्ते तदुभयाधारभूताया मृत्तिकाया अन्यत्वासंभवात् घटकुण्ड-
स्वरूपे संभवतः, तथान्यः संभवोऽन्यो विलय इत्युक्ते तदुभयाधारभूतस्य ध्रौव्यस्यान्यत्वा-
भङ्गसमुद्भवो यत्र संभवति क्षणभङ्गसमुद्भवस्तस्मिन्क्षणभङ्गसमुद्भवे विनश्वरे पर्यायार्थिकनयेन जने लोके
जगति कश्चिदपि, तस्मान्नैव जायते न चोत्पद्यत इति हेतुं वदति । जो हि भवो सो विलओ द्रव्यार्थिकनयेन
यो हि भवस्स एव विलयो यतः कारणात् । तथाहि – मुक्तात्मनां य एव सकलविमलकेवलज्ञानादिरूपेण
मोक्षपर्यायेण भव उत्पादः स एव निश्चयरत्त्त्त्त्नत्रयात्मकनिश्चयमोक्षमार्गपर्यायेण विलयो विनाशस्तौ च
मोक्षपर्यायमोक्षमार्गपर्यायौ कार्यकारणरूपेण भिन्नौ, तदुभयाधारभूतं यत्परमात्मद्रव्यं तदेव, मृत्पिण्ड-
२३६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
उत्पादके साथ (भी) जुड़ा हुआ है । और यह विरोधको प्राप्त नहीं होता; क्योंकि उद्भव और
विलयका एकपना और अनेकपना है । जब उद्भव और विलयका एकपना है तब पूर्वपक्ष है,
और जब अनेकपना है तब उत्तरपक्ष है । (अर्थात् – जब उत्पाद और विनाशके एकपनेकी अपेक्षा
ली जाय तब यह पक्ष फलित होता है कि – ‘न तो कोई उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है;
और जब उत्पाद तथा विनाशके अनेकपनेकी अपेक्षा ली जाय तब प्रतिक्षण होनेवाले विनाश
और उत्पादका पक्ष फलित होता है ।) वह इसप्रकार है : —
जैसे : — ‘जो घड़ा है वही कूँडा है’ ऐसा कहा जाने पर, घड़े और कूँडेके स्वरूपका
एकपना असम्भव होनेसे, उन दोनोंकी आधारभूत मिट्टी प्रगट होती है, उसीप्रकार ‘जो उत्पाद
है वही विनाश है’ ऐसा कहा जाने पर उत्पाद और विनाशके स्वरूपका एकपना असम्भव होनेसे
उन दोनोंका आधारभूत ध्रौव्य प्रगट होता है; इसलिये देवादिपर्यायके उत्पन्न होने और
मनुष्यादिपर्यायके नष्ट होने पर, ‘जो उत्पाद है वही विलय है’ ऐसा माननेसे (इस अपेक्षासे)
उन दोनोंका आधारभूत ध्रौव्यवान् जीवद्रव्य प्रगट होता है (-लक्षमें आता है ) इसलिये सर्वदा
द्रव्यपनेसे जीव टंकोत्कीर्ण रहता है
।
और फि र, जैसे ‘अन्य घड़ा है और अन्य कूँडा है’ ऐसा कहा जाने पर उन दोनोंकी
आधारभूत मिट्टीका अन्यपना (-भिन्न -भिन्नपना) असंभवित होनेसे घड़ेका और कूँडेका
(-दोनोंका भिन्न -भिन्न) स्वरूप प्रगट होता है, उसीप्रकार ‘अन्य उत्पाद है और अन्य व्यय