Pravachansar (Hindi). Gatha: 121.

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२३प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

यतः खलु जीवो द्रव्यत्वेनावस्थितोऽपि पर्यायैरनवस्थितः, ततः प्रतीयते न कश्चिदपि संसारे स्वभावेनावस्थित इति यच्चात्रानवस्थितत्वं तत्र संसार एव हेतुः, तस्य मनुष्यादि- पर्यायात्मकत्वात् स्वरूपेणैव तथाविधत्वात् अथ यस्तु परिणममानस्य द्रव्यस्य पूर्वोत्तर- दशापरित्यागोपादानात्मकः क्रियाख्यः परिणामस्तत्संसारस्य स्वरूपम् ।।१२०।।

अथ परिणामात्मके संसारे कुतः पुद्गलश्लेषो येन तस्य मनुष्यादिपर्यायात्मकत्व- मित्यत्र समाधानमुपवर्णयति

आदा कम्ममलिमसो परिणामं लहदि कम्मसंजुत्तं
तत्तो सिलिसदि कम्मं तम्हा कम्मं तु परिणामो ।।१२१।।

व्याख्यातमिदानीं तस्योपसंहारमाहतम्हा दु णत्थि कोई सहावसमवट्ठिदो त्ति तस्मान्नास्ति कश्चित्स्व- भावसमवस्थित इति यस्मात्पूर्वोक्तप्रकारेण मनुष्यादिपर्यायाणां विनश्वरत्वं व्याख्यातं तस्मादेव ज्ञायते परमानन्दैकलक्षणपरमचैतन्यचमत्कारपरिणतशुद्धात्मस्वभाववदवस्थितो नित्यः कोऽपि नास्ति क्व संसारे निस्संसारशुद्धात्मनो विपरीते संसारे संसारस्वरूपं कथयतिसंसारो पुण किरिया संसारः पुनः क्रिया निष्क्रियनिर्विकल्पशुद्धात्मपरिणतेर्विसदृशी मनुष्यादिविभावपर्यायपरिणतिरूपा क्रिया संसार- स्वरूपम् सा च कस्य भवति संसरमाणस्स जीवस्स विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावमुक्तात्मनो विलक्षणस्य संसरतः परिभ्रमतः संसारिजीवस्येति ततः स्थितं मनुष्यादिपर्यायात्मकः संसार एव विनश्वरत्वे कारणमिति ।।१२०।। एवं शुद्धात्मनो भिन्नानां कर्मजनितमनुष्यादिपर्यायाणां विनश्वरत्वकथनमुख्यतया

टीका :वास्तवमें जीव द्रव्यपनेसे अवस्थित होने पर भी पर्यायोंसे अनवस्थित है; इससे यह प्रतीत होता है कि संसारमें कोई भी स्वभावसे अवस्थित नहीं है (अर्थात् किसीका स्वभाव केवल अविचलएकरूप रहनेवाला नहीं है ); और यहाँ जो अनवस्थितता है उसमें संसार ही हेतु है; क्योंकि वह (-संसार) मनुष्यादिपर्यायात्मक है, कारण कि वह स्वरूपसे ही वैसा है, (अर्थात् संसारका स्वरूप ही ऐसा है ) उसमें परिणमन करते हुये द्रव्यका पूर्वोत्तरदशाका त्यागग्रहणात्मक ऐसा जो क्रिया नामका परिणाम है वह संसारका स्वरूप है ।।१२०।।

अब परिणामात्मक संसारमें किस कारणसे पुद्गलका संबंध होता है कि जिससे वह (संसार) मनुष्यादिपर्यायात्मक होता है ?इसका यहाँ समाधान करते हैं :

कर्मे मलिन जीव कर्मसंयुत पामतो परिणामने, तेथी करम बंधाय छे; परिणाम तेथी कर्म छे. १२१.