Pravachansar (Hindi). Gatha: 123.

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द्रव्यकर्मण एव कर्ता, न त्वात्मपरिणामात्मक स्य भावकर्मणः तत आत्मात्मस्वरूपेण
परिणमति, न पुद्गलस्वरूपेण परिणमति ।।१२२।।
अथ किं तत्स्वरूपं येनात्मा परिणमतीति तदावेदयति
परिणमदि चेदणाए आदा पुण चेदणा तिधाभिमदा
सा पुण णाणे कम्मे फलम्मि वा कम्मणो भणिदा ।।१२३।।
परिणमति चेतनया आत्मा पुनः चेतना त्रिधाभिमता
सा पुनः ज्ञाने कर्मणि फले वा कर्मणो भणिता ।।१२३।।
यतो हि नाम चैतन्यमात्मनः स्वधर्मव्यापकत्वं ततश्चेतनैवात्मनः स्वरूपं, तया
परिणमति तदा मोक्षं साधयति, अशुद्धोपादानकारणेन तु बन्धमिति पुद्गलोऽपि जीववन्निश्चयेन
स्वकीयपरिणामानामेव कर्ता, जीवपरिणामानां व्यवहारेणेति ।।१२२।। एवं रागादिपरिणामाः कर्मबन्ध-
कारणं, तेषामेव कर्ता जीव इतिकथनमुख्यतया गाथाद्वयेन तृतीयस्थलं गतम् अथ येन परिणामेनात्मा
परिणमति तं परिणामं कथयतिपरिणमदि चेदणाए आदा परिणमति चेतनया करणभूतया स कः
आत्मा यः कोऽप्यात्मनः शुद्धाशुद्धपरिणामः स सर्वोऽपि चेतनां न त्यजति इत्यभिप्रायः पुण चेदणा
तिधाभिमदा सा सा चेतना पुनस्त्रिधाभिमता कुत्र कुत्र णाणे ज्ञानविषये कम्मे कर्मविषये फलम्मि
२४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
आत्माके परिणामस्वरूप भावकर्मका नहीं
इससे (ऐसा समझना चाहिये कि) आत्मा आत्मस्वरूप परिणमित होता है,
पुद्गलस्वरूप परिणमित नहीं होता ।।१२२।।
अब, यह कहते हैं कि वह कौनसा स्वरूप है जिसरूप आत्मा परिणमित होता है ? :
अन्वयार्थ :[आत्मा ] आत्मा [चेतनतया ] चेतनारूपे [परिणमति ] परिणमित
होता है [पुनः ] और [चेतना ] चेतना [त्रिधा अभिमता ] तीन प्रकारसे मानी गयी है; [पुनः ]
और [सा ] वह [ज्ञाने ] ज्ञानसंबंधी, [कर्मणि ] कर्मसंबंधी [वा ] अथवा [कर्मणः फले ]
कर्मफल संबंधी
[भणिता ] ऐसी कही गयी है ।।१२३।।
टीका :जिससे चैतन्य वह आत्माका स्वधर्मव्यापकपना है, उससे चेतना ही
१. स्वधर्मव्यापकपना = निजधर्मोंमें व्यापकपना
जीव चेतनारूप परिणमे; वळी चेतना त्रिविधा गणी;
ते ज्ञानविषयक, कर्मविषयक, कर्मफ ळविषयक कही. १२३.