Pravachansar (Hindi). Dravya vishesh adhikAr Gatha: 127.

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२५प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अथ द्रव्यविशेषप्रज्ञापनम् तत्र द्रव्यस्य जीवाजीवत्वविशेषं निश्चिनोति
दव्वं जीवमजीवं जीवो पुण चेदणोवओगमओ
पोग्गलदव्वप्पमुहं अचेदणं हवदि य अजीवं ।।१२७।।
द्रव्यं जीवोऽजीवो जीवः पुनश्चेतनोपयोगमयः
पुद्गलद्रव्यप्रमुखोऽचेतनो भवति चाजीवः ।।१२७।।

इह हि द्रव्यमेकत्वनिबन्धनभूतं द्रव्यत्वसामान्यमनुज्झदेव तदधिरूढविशेषलक्षण- सद्भावादन्योन्यव्यवच्छेदेन जीवाजीवत्वविशेषमुपढौकते तत्र जीवस्यात्मद्रव्यमेवैका व्यक्तिः अजीवस्य पुनः पुद्गलद्रव्यं धर्मद्रव्यमधर्मद्रव्यं कालद्रव्यमाकाशद्रव्यं चेति पंच व्यक्तयः कथनेन द्वितीया चेति ‘आगासमणुणिविट्ठं’ इत्यादिसूत्रद्वयेन सप्तमस्थलम् तदनन्तरं कालाणुरूपद्रव्यकाल- स्थापनरूपेण ‘उप्पादो पद्धंसो’ इत्यादिगाथात्रयेणाष्टमस्थलमिति विशेषज्ञेयाधिकारे समुदायपातनिका तद्यथाअथ जीवाजीवलक्षणमावेदयतिदव्वं जीवमजीवं द्रव्यं जीवाजीवलक्षणं भवति जीवो पुण चेदणो जीवः पुनश्चेतनः स्वतःसिद्धया बहिरङ्गकारणनिरपेक्षया बहिरन्तश्च प्रकाशमानया नित्यरूपया निश्चयेन परमशुद्धचेतनया, व्यवहारेण पुनरशुद्धचेतनया च युक्तत्वाच्चेतनो भवति पुनरपि किंविशिष्टः

अब, द्रव्यविशेषका प्रज्ञापन करते हैं (अर्थात् द्रव्यविशेषोंकोद्रव्यको भेदोंकोबतलाते हैं ) उसमें (प्रथम), द्रव्यके जीव -अजीवपनेरूप विशेषको निश्चित करते हैं, (अर्थात् द्रव्यके जीव और अजीवऐसे दो भेद बतलाते हैं ) :

अन्वयार्थ :[द्रव्यं ] द्रव्य [जीवः अजीवः ] जीव और अजीव है [पुनः ] उसमें [चेतनोपयोगमयः ] चेतनामय तथा उपयोगमय सो [जीवः ] जीव है, [च ] और [पुद्गलद्रव्यप्रमुखः अचेतनः ] पुद्गलद्रव्यादिक अचेतन द्रव्य वे [अजीवः भवति ] अजीव हैं ।।१२७।।

टीका :यहाँ (इस विश्वमें) द्रव्य, एकत्वके कारणभूत द्रव्यत्वसामान्यको छोड़े बिना ही, उसमें रहे हुए विशेषलक्षणोंके सद्भावके कारण एक -दूसरेसे पृथक् किये जानेपर जीवत्वरूप और अजीवत्वरूप विशेषको प्राप्त होता है उसमें, जीवका आत्मद्रव्य ही एक भेद है; और अजीवके पुद्गल द्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, कालद्रव्य तथा आकाशद्रव्ययह पाँच भेद हैं जीवका विशेषलक्षण चेतना -उपयोगमयत्व (चेतनामयपना और उपयोगमयपना) है;

छे द्रव्य जीव, अजीव; चित -उपयोगमय ते जीव छे; पुद्गलप्रमुख जे छे अचेतन द्रव्य, तेह अजीव छे. १२७.