इह हि द्रव्यमेकत्वनिबन्धनभूतं द्रव्यत्वसामान्यमनुज्झदेव तदधिरूढविशेषलक्षण- सद्भावादन्योन्यव्यवच्छेदेन जीवाजीवत्वविशेषमुपढौकते । तत्र जीवस्यात्मद्रव्यमेवैका व्यक्तिः । अजीवस्य पुनः पुद्गलद्रव्यं धर्मद्रव्यमधर्मद्रव्यं कालद्रव्यमाकाशद्रव्यं चेति पंच व्यक्तयः । कथनेन द्वितीया चेति ‘आगासमणुणिविट्ठं’ इत्यादिसूत्रद्वयेन सप्तमस्थलम् । तदनन्तरं कालाणुरूपद्रव्यकाल- स्थापनरूपेण ‘उप्पादो पद्धंसो’ इत्यादिगाथात्रयेणाष्टमस्थलमिति विशेषज्ञेयाधिकारे समुदायपातनिका । तद्यथा — अथ जीवाजीवलक्षणमावेदयति — दव्वं जीवमजीवं द्रव्यं जीवाजीवलक्षणं भवति । जीवो पुण चेदणो जीवः पुनश्चेतनः स्वतःसिद्धया बहिरङ्गकारणनिरपेक्षया बहिरन्तश्च प्रकाशमानया नित्यरूपया निश्चयेन परमशुद्धचेतनया, व्यवहारेण पुनरशुद्धचेतनया च युक्तत्वाच्चेतनो भवति । पुनरपि किंविशिष्टः ।
अब, द्रव्यविशेषका प्रज्ञापन करते हैं (अर्थात् द्रव्यविशेषोंको – द्रव्यको भेदोंको – बतलाते हैं ) । उसमें (प्रथम), द्रव्यके जीव -अजीवपनेरूप विशेषको निश्चित करते हैं, (अर्थात् द्रव्यके जीव और अजीव – ऐसे दो भेद बतलाते हैं ) : —
अन्वयार्थ : — [द्रव्यं ] द्रव्य [जीवः अजीवः ] जीव और अजीव है । [पुनः ] उसमें [चेतनोपयोगमयः ] चेतनामय तथा उपयोगमय सो [जीवः ] जीव है, [च ] और [पुद्गलद्रव्यप्रमुखः अचेतनः ] पुद्गलद्रव्यादिक अचेतन द्रव्य वे [अजीवः भवति ] अजीव हैं ।।१२७।।
टीका : — यहाँ (इस विश्वमें) द्रव्य, एकत्वके कारणभूत द्रव्यत्वसामान्यको छोड़े बिना ही, उसमें रहे हुए विशेषलक्षणोंके सद्भावके कारण एक -दूसरेसे पृथक् किये जानेपर जीवत्वरूप और अजीवत्वरूप विशेषको प्राप्त होता है । उसमें, जीवका आत्मद्रव्य ही एक भेद है; और अजीवके पुद्गल द्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, कालद्रव्य तथा आकाशद्रव्य — यह पाँच भेद हैं । जीवका विशेषलक्षण चेतना -उपयोगमयत्व (चेतनामयपना और उपयोगमयपना) है;
छे द्रव्य जीव, अजीव; चित -उपयोगमय ते जीव छे; पुद्गलप्रमुख जे छे अचेतन द्रव्य, तेह अजीव छे. १२७.