Pravachansar (Hindi). Gatha: 129.

< Previous Page   Next Page >


Page 255 of 513
PDF/HTML Page 288 of 546

 

background image
यस्य स लोकः यत्र यावति पुनराकाशे जीवपुद्गलयोर्गतिस्थिती न संभवतो, धर्माधर्मौ
नावस्थितौ, न कालो दुर्ललितस्तावत्केवलमाकाशमात्मत्वेन स्वलक्षणं यस्य
सोऽलोकः
।।१२८।।
अथ क्रियाभावतद्भावविशेषं निश्चिनोति
उप्पादट्ठिदिभंगा पोग्गलजीवप्पगस्स लोगस्स
परिणामा जायंते संघादादो व भेदादो ।।१२९।।
उत्पादस्थितिभङ्गाः पुद्गलजीवात्मकस्य लोकस्य
परिणामाज्जायन्ते संघाताद्वा भेदात।।१२९।।
मुख्यवृत्त्यार्थपर्याय इति व्यवस्थापयतिजायंते जायन्ते के कर्तारः उप्पादट्ठिदिभंगा उत्पाद-
स्थितिभङ्गाः कस्य संबन्धिनः लोगस्स लोकस्य किंविशिष्टस्य पोग्गलजीवप्पगस्स पुद्गल-
जीवात्मकस्य, पुद्गलजीवावित्युपलक्षणं षड्द्रव्यात्मकस्य कस्मात्सकाशात् जायन्ते परिणामादो
परिणामात् एकसमयवर्तिनोऽर्थपर्यायात् संघादादो व भेदादो न केवलमर्थपर्यायात्सकाशाज्जायन्ते जीव-
पुद्गलानामुत्पादादयः संघाताद्वा, भेदाद्वा व्यञ्जनपर्यायादित्यर्थः तथाहिधर्माधर्माकाशकालानां
मुख्यवृत्त्यैकसमयवर्तिनोऽर्थपर्याया एव, जीवपुद्गलानामर्थपर्यायव्यञ्जनपर्यायाश्च कथमिति चेत्
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२५५
द्रव्यउनका समुदाय जिसका स्वपनेसे स्वलक्षण है, वह लोक है; और जहाँ जितने
आकाशमें जीव तथा पुद्गलकी गति -स्थिति नहीं होती, धर्म तथा अधर्म नहीं रहते और काल
नहीं वर्तता, उतना केवल आकाश जिसका स्व -पनेसे स्वलक्षण है, वह अलोक है
।।१२८।।
अब, ‘क्रिया’ रूप और ‘भाव’ रूप ऐसे जो द्रव्यके भाव हैं उनकी अपेक्षासे द्रव्यका
विशेष (-भेद) निश्चित करते हैं :
अन्वयार्थ :[पुद्गलजीवात्मकस्य लोकस्य ] पुद्गल -जीवात्मक लोकके
[परिणामात् ] परिणमनसे और [संघातात् वा भेदात् ] संघात (मिलने) और भेद (पृथक् होने)
से [उत्पादस्थितिभंगाः ] उत्पाद, ध्रौव्य और व्यय [जायन्ते ] होते हैं
।।१२९।।
उत्पाद, व्यय ने ध्रुवता जीवपुद्गलात्मक लोकने
परिणाम द्वारा, भेद वा संघात द्वारा थाय छे. १२९
१. स्वपनेसे = निजरूपसे (षड्द्रव्यसमुदाय ही लोक है, अर्थात् वही लोकका स्वत्व हैस्वरूप है
इसलिये लोकके स्वपनेसे षट्द्रव्योंका समुदाय लोकका स्वलक्षण है )