Pravachansar (Hindi).

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क्रियाभाववत्त्वेन केवलभाववत्त्वेन च द्रव्यस्यास्ति विशेषः तत्र भाववन्तौ क्रियावन्तौ
च पुद्गलजीवौ, परिणामाद्भेदसंघाताभ्यां चोत्पद्यमानावतिष्ठमानभज्यमानत्वात शेषद्रव्याणि
तु भाववन्त्येव, परिणामादेवोत्पद्यमानावतिष्ठमानभज्यमानत्वादिति निश्चयः तत्र परिणाम-
मात्रलक्षणो भावः, परिस्पन्दनलक्षणा क्रिया तत्र सर्वाण्यपि द्रव्याणि परिणामस्वभावत्वात
परिणामेनोपात्तान्वयव्यतिरेकाण्यवतिष्ठमानोत्पद्यमानभज्यमानानि भाववन्ति भवन्ति
पुद्गलास्तु परिस्पन्दस्वभावत्वात्परिस्पन्देन भिन्नाः संघातेन, संहताः पुनर्भेदेनोत्पद्यमानाव-
तिष्ठमानभज्यमानाः क्रियावन्तश्च भवन्ति
तथा जीवा अपि परिस्पन्दस्वभावत्वात्परिस्पन्देन
प्रतिसमयपरिणतिरूपा अर्थपर्याया भण्यन्ते यदा जीवोऽनेन शरीरेण सह भेदं वियोगं त्यागं कृत्वा
भवान्तरशरीरेण सह संघातं मेलापकं करोति तदा विभावव्यञ्जनपर्यायो भवति, तस्मादेव
भवान्तरसंक्रमणात्सक्रियत्वं भण्यते
पुद्गलानां तथैव विवक्षितस्कन्धविघटनात्सक्रियत्वेन स्कन्धान्तर-
संयोगे सति विभावव्यञ्जनपर्यायो भवति मुक्तजीवानां तु निश्चयरत्नत्रयलक्षणेन परमकारणसमय-
सारसंज्ञेन निश्चयमोक्षमार्गबलेनायोगिचरमसमये नखकेशान्विहाय परमौदारिकशरीरस्य विलीयमान-
रूपेण विनाशे सति केवलज्ञानाद्यनन्तचतुष्टयव्यक्तिलक्षणेन परमकार्यसमयसाररूपेण स्वभावव्यञ्जन-

पर्यायेण कृत्वा योऽसावुत्पादः स भेदादेव भवति, न संघातात्
कस्मादिति चेत् शरीरान्तरेण सह
२५प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
टीका :कोई द्रव्य ‘भाव’ तथा ‘क्रियावाले’ होनेसे और कोई द्रव्य केवल ‘भाव’
वाले होनेसे,इस अपेक्षासे द्रव्यका विशेष (भेद) है वहाँ पुद्गल तथा जीव (१) भाववाले
तथा (२) क्रियावाले हैं, क्योंकि (१) परिणाम द्वारा तथा (२) संघात और भेदके द्वारा वे
उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं
शेष द्रव्य तो भाववाले ही हैं, क्योंकि वे परिणामके
द्वारा ही उत्पन्न होते हैं, टिकते है और नष्ट होते हैंऐसा निश्चय है
उसमें, ‘भाव’का लक्षण परिणाममात्र है; ‘क्रिया’ का लक्षण परिस्पंद (-कम्पन) है
वहाँ समस्त ही द्रव्य भाववाले हैं, क्योंकि परिणामस्वभाववाले होनेसे परिणामके द्वारा अन्वय
और व्यतिरेकोंको प्राप्त होते हुए वे उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं पुद्गल तो
(भाववाले होनेके अतिरिक्त) क्रियावाले भी होते हैं, क्योंकि परिस्पंदस्वभाववाले होनेसे
परिस्पंदके द्वारा
पृथक् पुद्गल एकत्रित हो जाते हैं, इसलिये और एकत्रितमिले हुए पुद्गल
पुनः पृथक् हो जाते हैं, इसलिये (इस अपेक्षासे) वे उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट
होते हैं
तथा जीव भी भाववाले होनेके अतिरिक्त) क्रियावाले भी होते हैं, क्योंकि
१. अन्वय, स्थायीपनेको और व्यतिरेक, उत्पाद तथा व्ययपनेको बतलाते हैं
२. पृथक् पुद्गल कंपनके द्वारा एकत्रित होते हैं वहाँ वे भिन्नपनेसे नष्ट हुए, पुद्गलपनेसे टिके और
एकत्रपनेसे उत्पन्न हुए