Pravachansar (Hindi). Gatha: 130.

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नूतनकर्मनोकर्मपुद्गलेभ्यो भिन्नास्तैः सह संघातेन, संहताः पुनर्भेदेनोत्पद्यमानाव-
तिष्ठमानभज्यमानाः क्रियावन्तश्च भवन्ति
।।१२९।।
अथ द्रव्यविशेषो गुणविशेषादिति प्रज्ञापयति
लिंगेहिं जेहिं दव्वं जीवमजीवं च हवदि विण्णादं
तेऽतब्भावविसिट्ठा मुत्तामुत्ता गुणा णेया ।।१३०।।
लिङ्गैर्यैर्द्रव्यं जीवोऽजीवश्च भवति विज्ञातम्
तेऽतद्भावविशिष्टा मूर्तामूर्ता गुणा ज्ञेयाः ।।१३०।।
संबन्धाभावादिति भावार्थः ।।१२९।। एवं जीवाजीवत्वलोकालोकत्वसक्रियनिःक्रियत्वकथनक्रमेण
प्रथमस्थले गाथात्रयं गतम् अथ ज्ञानादिविशेषगुणभेदेन द्रव्यभेदमावेदयतिलिंगेहिं जेहिं लिङ्गैर्यैः
सहजशुद्धपरमचैतन्यविलासरूपैस्तथैवाचेतनैर्जडरूपैर्वा लिङ्गैश्चिह्नैर्विशेषगुणैर्यैः करणभूतैर्जीवेन कर्तृ-
भूतेन
हवदि विण्णादं विशेषेण ज्ञातं भवति किं कर्मतापन्नम् दव्वं द्रव्यम् कथंभूतम् जीवमजीवं च
जीवद्रव्यमजीवद्रव्यं च ते मुत्तामुत्ता गुणा णेया ते तानि पूर्वोक्तचेतनाचेतनलिङ्गानि मूर्तामूर्तगुणा ज्ञेया
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२५७
प्र. ३३
परिस्पन्दनस्वभाववाले होनेसे परिस्पंदके द्वारा नवीन कर्मनोकर्मरूप पुद्गलोंसे भिन्न जीव
उनके साथ एकत्रित होनेसे और कर्म -नोकर्मरूप पुद्गलोंके साथ एकत्रित हुए जीव बादमें
पृथक् होनेसे (इस अपेक्षासे) वे उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं ।।१२९।।
अब, यह बतलाते हैं किगुण विशेषसे (गुणोंके भेदसे) द्रव्य विशेष (द्रव्योंका भेद)
होता है :
अन्वयार्थ :[यैः लिंगैः ] जिन लिंगोंसे [द्रव्यं ] द्रव्य [जीवः अजीवः च ] जीव
और अजीवके रूपमें [विज्ञातं भवति ] ज्ञात होता है, [ते ] वे [अतद्भावविशिष्टाः ] अतद्भाव
विशिष्ट (-द्रव्यसे अतद्भावके द्वारा भिन्न ऐसे) [मूर्तामूर्ताः ] मूर्त -अमूर्त [गुणाः ] गुण
[ज्ञेयाः ] जानने चाहिये
।।१३०।।
१. ज्ञानावरणादि कर्मरूप और शरीरादि नोकर्मरूप पुद्गलोंके साथ मिला हुआ जीव कंपनसे पुनः पृथक् हो
जाता है वहाँ (उन पुद्गलोंके साथ) एकत्ररूपसे वह नष्ट हुआ, जीवरूपसे स्थिर हुआ और (उनसे)
पृथक्रूपसे उत्पन्न हुआ
जे लिंगथी द्रव्यो महीं ‘जीव’ ‘अजीव’ एम जणाय छे,
ते जाण मूर्त -अमूर्त गुण, अतत्पणाथी विशिष्ट जे. १३०.