Pravachansar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 258 of 513
PDF/HTML Page 291 of 546

 

background image
द्रव्यमाश्रित्य परानाश्रयत्वेन वर्तमानैलिंग्यते गम्यते द्रव्यमेतैरिति लिंगानि गुणाः ते
च यद्द्रव्यं भवति न तद् गुणा भवन्ति, ये गुणा भवन्ति ते न द्रव्यं भवतीति द्रव्यादतद्भावेन
विशिष्टाः सन्तो लिंगलिंगिप्रसिद्धौ तलिंगत्वमुपढौकन्ते
अथ ते द्रव्यस्य जीवोऽयम-
जीवोऽयमित्यादिविशेषमुत्पादयन्ति, स्वयमपि तद्भावविशिष्टत्वेनोपात्तविशेषत्वात यतो हि
यस्य यस्य द्रव्यस्य यो यः स्वभावस्तस्य तस्य तेन तेन विशिष्टत्वात्तेषामस्ति विशेषः अत
एव च मूर्तानाममूर्तानां च द्रव्याणां मूर्तत्वेनामूर्तत्वेन च तद्भावेन विशिष्टत्वादिमे मूर्ता गुणा
इमे अमूर्ता इति तेषां विशेषो निश्चेयः
।।१३०।।
अथ मूर्तामूर्तगुणानां लक्षणसंबन्धमाख्याति
ज्ञातव्याः ते च कथंभूताः अतब्भावविसिट्ठा अतद्भावविशिष्टाः तद्यथाशुद्धजीवद्रव्ये ये
केवलज्ञानादिगुणास्तेषां शुद्धजीवप्रदेशैः सह यदेकत्वमभिन्नत्वं तन्मयत्वं स तद्भावो भण्यते, तेषामेव
गुणानां तैः प्रदेशैः सह यदा संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदः क्रियते तदा पुनरतद्भावो भण्यते, तेनातद्भावेन

संज्ञादिभेदरूपेण स्वकीयस्वकीयद्रव्येण सह विशिष्टा भिन्ना इति, द्वितीयव्याख्यानेन पुनः स्वकीय-

द्रव्येण सह तद्भावेन तन्मयत्वेनान्यद्रव्याद्विशिष्टा भिन्ना इत्यभिप्रायः
एवं गुणभेदेन द्रव्यभेदो
१. अतद्भाव = (कथंचित्) उसरूप नहीं होना वह;
२. लिंगी = लिंगवाला, (विशेषगुण वह लिंग
चिह्नलक्षण है और लिंगी वह द्रव्य है )
३. तद्भाव = उसरूप, उसपना; उसपनेसे होना; स्वरूप
४. विशिष्ट = विशेषतावाला; खास; भिन्न
२५प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
टीका :द्रव्यका आश्रय लेकर और परके आश्रयके बिना प्रवर्तमान होनेसे जिनके
द्वारा द्रव्य ‘लिंगित’ (-प्राप्त) होता हैपहिचाना जा सकता है, ऐसे लिंग गुण हैं वे (गुण),
‘जो द्रव्य हैं वे गुण नहीं हैं, जो गुण हैं वे द्रव्य नहीं हैं’इस अपेक्षासे द्रव्यसे अतद्भावके
द्वारा विशिष्ट (-भिन्न) वर्तते हुए, लिंग और लिंगीके रूपमें प्रसिद्धि (ख्याति) के समय
द्रव्यके लिंगत्वको प्राप्त होते हैं अब, वे द्रव्यमें ‘यह जीव है, यह अजीव है’ ऐसा विशेष
(-भेद) उत्पन्न करते हैं, क्योंकि स्वयं भी तद्भावके द्वारा विशिष्ट होनेसे विशेषको प्राप्त हैं
जिस -जिस द्रव्यका जो -जो स्वभाव हो उस -उसका उस -उसके द्वारा विशिष्टत्व होनेसे उनमें
विशेष (-भेद) हैं; और इसीलिये मूर्त तथा अमूर्त द्रव्योंका मूर्तत्व -अमूर्तत्वरूप तद्भावके द्वारा
विशिष्टत्व होनेसे उनमें इस प्रकारके भेद निश्चित करना चाहिये कि ‘यह मूर्त गुण हैं और यह
अमूर्तगुण हैं’
।।१३०।।
अब, मूर्त और अमूर्त गुणोंके लक्षण तथा संबंध (अर्थात् उनका किन द्रव्योंके साथ
संबंध है यह) कहते हैं :