Pravachansar (Hindi).

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गमयति तथा अशेषशेषद्रव्याणां प्रतिपर्यायं समयवृत्तिहेतुत्वं कारणान्तरसाध्यत्वात्समय-
विशिष्टाया वृत्तेः स्वतस्तेषामसंभवत्कालमधिगमयति तथा चैतन्यपरिणामोऽचेतनत्वादेव शेष-
द्रव्याणामसंभवन् जीवमधिगमयति एवं गुणविशेषाद् द्रव्यविशेषोऽधिगन्तव्यः ।।१३३ १३४।।
अथ द्रव्याणां प्रदेशवत्त्वाप्रदेशवत्त्वविशेषं प्रज्ञापयति
तृतीयस्थले गाथात्रयं गतम् अथ कालद्रव्यं विहाय जीवादिपञ्चद्रव्याणामस्तिकायत्वं व्याख्याति
२६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
विरुद्ध कार्यका हेतु होनेसे धर्मको वह संभव नहीं है
इसीप्रकार (कालके अतिरिक्त) शेष समस्त द्रव्योंके प्रत्येक पर्यायमें समयवृत्तिका
हेतुपना कालको बतलाता है, क्योंकि उनके समयविशिष्ट वृत्ति कारणान्तरसे सधती होनेसे
(अर्थात् उनके समयसे विशिष्ट ऐसी परिणति अन्य कारणसे होती है,) इसलिये स्वतः उनके
वह (समयवृत्तिहेतुपना) संभवित नहीं है
इसीप्रकार चैतन्यपरिणाम जीवको बतलाता है, क्योंकि वह चेतन होनेसे शेष द्रव्योंके
संभव नहीं है
इसप्रकार गुणविशेषसे द्रव्यविशेष जानना चाहिये
भावार्थ :जैसा कि पहले बताया गया है,स्पर्श, रस, गंध, वर्णसे पुद्गल द्रव्योंका
अस्तित्व ज्ञात होता है यहाँ अमूर्त द्रव्योंका अस्तित्व उनके विशेष लक्षणोंसे प्रगट किया गया है
चैतन्यपरिणामरूप लक्षण अनुभवमें आता है इसलिये अनन्त जीवद्रव्योंका अस्तित्व
ज्ञात होता है जीवादि समस्त द्रव्य जिसके निमित्तसे अवगाह (अवकाश) को प्राप्त करते हैं
ऐसा कोई द्रव्य होना चाहिये; वह द्रव्य लोकालोकव्यापी आकाश है जीव और पुद्गल गति
करते हुए मालूम होते हैं, इसलिये जैसे मछलीको गति करनेमें निमित्तभूत जल है उसी प्रकार
जीव और पुद्गलोंको गति करनेमें निमित्तभूत कोई द्रव्य होना चाहिये; वह द्रव्य लोकव्यापी
धर्मद्रव्य है
जैसे मनुष्यको स्थितिमें निमित्तभूत पृथ्वी है उसीप्रकार जीव और पुद्गलोंकी
स्थितिमें निमित्तभूत कोई द्रव्य होना चाहिये वह द्रव्य लोकव्यापी अधर्मद्रव्य है जैसे
कुम्हारके चक्रके चलनेमें कील निमित्तभूत है उसीप्रकार (कालके अतिरिक्त) सर्व द्रव्योंके
परिणमनमें निमित्तभूत कोई द्रव्य होना चाहिये; वह द्रव्य असंख्यात कालाणु हैं
, जिनकी पर्यायें
समय, घड़ी, दिन, वर्ष इत्यादिरूपसे व्यक्त होती हैं
इसप्रकार गुणभेदसे द्रव्यभेद निश्चित हुआ ।।१३३ -१३४।।
अब, द्रव्यका प्रदेशवत्व और अप्रदेशवत्वरूप विशेष (-भेद) बतलाते हैं :
१. कालके अतिरिक्त द्रव्योंकी परिणति ‘एक समयमें यह परिणति हुई है’ इसप्रकार समयसे विशिष्ट है अर्थात्
व्यवहारसे उसमें समयकी अपेक्षा आती है, इसलिये उसमें कोई द्रव्यकालद्रव्यनिमित्त होना चाहिये
२. प्रदेशवत्व = प्रदेशवानपना