चेत्किमभिन्नांशाविभागैकद्रव्यत्वेन किं वा भिन्नांशाविभागैकद्रव्यत्वेन । अभिन्नांशा-
विभागैकद्रव्यत्वेन चेत् येनांशेनैकस्या अंगुलेः क्षेत्रं तेनांशेनेतरस्या इत्यन्यतरांशाभावः । एवं
द्वयाद्यंशानामभावादाकाशस्य परमाणोरिव प्रदेशमात्रत्वम् । भिन्नांशाविभागैकद्रव्यत्वेन चेत्
अविभागैकद्रव्यस्यांशकल्पनमायातम् । अनेकं चेत् किं सविभागानेकद्रव्यत्वेन किं वाऽविभागै-
कद्रव्यत्वेन । सविभागानेकद्रव्यत्वेन चेत् एकद्रव्यस्याकाशस्यानन्तद्रव्यत्वं, अविभागैकद्रव्यत्वेन
चेत् अविभागैकद्रव्यस्यांशकल्पनमायातम् ।।१४०।।
सर्वेषामणूनां चकारात्सूक्ष्मस्कन्धानां च सक्कदि तं देदुमवगासं शक्नोति स आकाशप्रदेशो दातुम-
वकाशम् । तस्याकाशप्रदेशस्य यदीत्थंभूतमवकाशदानसामर्थ्यं न भवति तदानन्तानन्तो जीवराशिस्त-
स्मादप्यनन्तगुणपुद्गलराशिश्चासंख्येयप्रदेशलोके कथमवकाशं लभते । तच्च विस्तरेण पूर्वं भणितमेव ।
अथ मतम् – अखण्डाकाशद्रव्यस्य प्रदेशविभागः कथं घटते । परिहारमाह – चिदानन्दैकस्वभावनिजात्म-
तत्त्वपरमैकाग्रयलक्षणसमाधिसंजातनिर्विकाराह्लादैकरूपसुखसुधारसास्वादतृप्तमुनियुगलस्यावस्थितक्षेत्रं
किमेकमनेकं वा । यद्येकं तर्हि द्वयोरप्येकत्वं प्राप्नोति । न च तथा । भिन्नं चेत्तदा अखण्डस्या-
प्याकाशद्रव्यस्य प्रदेशविभागो न विरुध्यत इत्यर्थः ।।१४०।। अथ तिर्यक्प्रचयोर्ध्वप्रचयौ
२७८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
एक क्षेत्र है या अनेक ?’ यदि एक है तो (प्रश्न होता है कि : — ), (१) आकाश अभिन्न
अंशोवाला अविभाग एक द्रव्य है, इसलिये दो अंगुलियोंका एक क्षेत्र है या (२) भिन्न
अंशोंवाला अविभाग एक द्रव्य है, इसलिये ? (१) यदि ‘आकाश अभिन्न अंशवाला अविभाग
एक द्रव्य है इसलिये दो अंगुलियोंका एक क्षेत्र है’ ऐसा कहा जाय तो, जो अंश एक अंगुलिका
क्षेत्र है वही अंश दूसरी अंगुलिका भी क्षेत्र है, इसलिये दोमेंसे एक अंशका अभाव हो गया ।
इस प्रकार दो इत्यादि (एकसे अधिक) अंशोंका अभाव होनेसे आकाश परमाणुकी भाँति
प्रदेशमात्र सिद्ध हुआ ! (इसलिये यह तो घटित नहीं होता); (२) यदि यह कहा जाय कि
‘आकाश भिन्न अंशोंवाला अविभाग एक द्रव्य है’ (इसलिये दो अंगुलियोंका एक क्षेत्र है) तो
(यह योग्य ही है, क्योंकि) अविभाग एक द्रव्यमें अंश – कल्पना फलित हुई ।
यदि ऐसा कहा जाय कि (दो अंगुलियोंके) ‘अनेक क्षेत्र हैं ’ (अर्थात् एकसे अधिक
क्षेत्र हैं, एक नहीं) तो (प्रश्न होता है कि – ), (१) ‘आकाश सविभाग (खंडखंडरूप) अनेक
द्रव्य है इसलिये दो अंगुलियोंके अनेक क्षेत्र हैं या (२) ‘आकाश अविभाग एक द्रव्य’ होनेपर
भी दो अंगुलियोंके अनेक (एक से अधिक) क्षेत्र हैं ? (१) ‘आकाश सविभाग अनेक द्रव्य
होनेसे दो अंगलियोंके अनेक क्षेत्र हैं’ ऐसा माना जाय तो, आकाश जो कि एक द्रव्य है उसे
अनन्तद्रव्यत्व आजायगा’; (इसलिये यह तो घटित नहीं होता) (२) ‘आकाश अविभाग एक
द्रव्य होनेसे दो अंगुलियोंका अनेक क्षेत्र है’ ऐसा माना जाय तो (यह योग्य ही है क्योंकि)
अविभाग एक द्रव्यमें अंशकल्पना फलित हुई ।।१४०।।