पूर्वोत्तरव्यतिरेकस्पर्शिना चेतनत्वेन स्थितिर्यावुत्तरपूर्वव्यतिरेकत्वेन चेतनस्योत्पादव्ययौ
तत्त्रयात्मकं च स्वरूपास्तित्वं यस्य नु स्वभावोऽहं स खल्वयमन्यः । यच्चाचेतनत्वान्वयलक्षणं
पूर्वोत्तरव्यतिरेकस्पर्शिनाचेतनत्वेन स्थितिर्यावुत्तरपूर्वव्यतिरेकत्वेनाचेतनस्योत्पादव्ययौ तत्त्रयात्मकं
च स्वरूपास्तित्वं यस्य तु स्वभावः पुद्गलस्य स खल्वयमन्यः । नास्ति मे मोहोऽस्ति
शुद्धोत्पादव्ययध्रौव्यत्रयात्मकं च यत्पूर्वोक्तं स्वरूपास्तित्वं तेन कृत्वा त्रिधा सम्यगाख्यातं कथितं
प्रतिपादितम् । पुनरपि कथंभूतं आत्मस्वभावम् । सवियप्पं सविकल्पं पूर्वोक्तद्रव्यगुणपर्यायरूपेण
(१) चेतनत्वका अन्वय जिसका लक्षण है ऐसा जो द्रव्य, (२) चेतनाविशेषत्व (चेतनाका विशेषपना) जिसका लक्षण है ऐसा जो गुण और (३) चेतनत्वका व्यतिरेक जिसका लक्षण है ऐसी जो पर्याय — यह त्रयात्मक (ऐसा स्वरूप – अस्तित्व), तथा (१) पूर्व और उत्तर व्यतिरेकको स्पर्शकरनेवाले चेतनत्वरूपसे जो ध्रौव्य और (२ – ३) चेतनके उत्तर तथा पूर्व व्यतिरेकरूपसे जो उत्पाद और व्यय — यह त्रयात्मक (ऐसा) स्वरूप – अस्तित्व जिसका स्वभाव है ऐसा मैं वास्तवमें यह अन्य हूँ, (अर्थात् मैं पुद्गलसे ये भिन्न रहा) । और (१) अचेतनत्वका अन्वय जिसका लक्षण है ऐसा जो द्रव्य, (२) अचेतना विशेषत्व जिसका लक्षण है ऐसा जो गुण और (३) अचेतनत्वका व्यतिरेक जिसका लक्षण है ऐसी जो पर्याय — यह त्रयात्मक (ऐसा स्वरूपअस्तित्व) तथा (१) पूर्व और उत्तर व्यतिरेकको स्पर्शकरनेवाले अचेतनत्वरूपसे जो ध्रौव्य और (२ – ३) अचेतनके उत्तर तथा पूर्व व्यतिरेकरूपसे जो उत्पाद और व्यय — यह त्रयात्मक ऐसा स्वरूप – अस्तित्व जिस पुद्गलका स्वभाव है वह वास्तवमें (मुझसे) अन्य है । (इसलिये) मुझे मोह नहीं है; स्व -परका विभाग है । १. पूर्व अर्थात् पहलेका; और उत्तर अर्थात् बादका । (चेतन पूर्व और उत्तरकी दोनों पर्यायोंको स्पर्श करता
अपेक्षासे व्यय है ।)