Pravachansar (Hindi). Gatha: 162.

< Previous Page   Next Page >


Page 311 of 513
PDF/HTML Page 344 of 546

 

background image
द्रव्याणामेकपिण्डपर्यायेण परिणामः, अनेकपरमाणुद्रव्यस्वलक्षणभूतस्वरूपास्तित्वानामनेकत्वेऽपि
कथंचिदेकत्वेनावभासनात
।।१६१।।
अथात्मनः परद्रव्यत्वाभावं परद्रव्यकर्तृत्वाभावं च साधयति
णाहं पोग्गलमइओ ण ते मया पोग्गला कया पिंडं
तम्हा हि ण देहोऽहं कत्ता वा तस्स देहस्स ।।१६२।।
नाहं पुद्गलमयो न ते मया पुद्गलाः कृताः पिण्डम्
तस्माद्धि न देहोऽहं कर्ता वा तस्य देहस्य ।।१६२।।
यदेतत्प्रकरणनिर्धारितं पुद्गलात्मकमन्तर्नीतवाङ्मनोद्वैतं शरीरं नाम परद्रव्यं न
तावदहमस्मि, ममापुद्गलमयस्य पुद्गलात्मकशरीरत्वविरोधात न चापि तस्य कारणद्वारेण
नाहं पुद्गलमयः ण ते मया पुग्गला कया पिंडा न च ते पुद्गला मया कृताः पिण्डाः तम्हा हि ण
देहोऽहं तस्माद्देहो न भवाम्यहं हि स्फु टं कत्ता वा तस्स देहस्स कर्ता वा न भवामि तस्य देहस्येति
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
३११
स्वरूपास्तित्वमें निश्चित (रहे हुए) हैं उस प्रकारका पुद्गलद्रव्य अनेक परमाणुद्रव्योंका
एक पिण्डपर्यायरूपसे परिणाम है, क्योंकि अनेक परमाणुद्रव्योंके स्वलक्षणभूत
स्वरूपास्तित्व अनेक होने पर भी कथंचित् (स्निग्धत्व
रूक्षत्वकृत बंधपरिणामकी
अपेक्षासे) एकत्वरूप अवभासित होते हैं ।।१६१।।
अब आत्माके परद्रव्यत्वका अभाव और परद्रव्यके कर्तृत्वका अभाव सिद्ध करते हैं :
अन्वयार्थ :[अहं पुद्गलमयः न ] मैं पुद्गलमय नहीं हूँ और [ते पुद्गलाः ] वे
पुद्गल [मया ] मेरे द्वारा [पिण्डं न कृताः ] पिण्डरूप नहीं किये गये हैं, [तस्मात् हि ]
इसलिये [अहं न देहः ] मैं देह नहीं हूँ, [वा ] तथा [तस्य देहस्य कर्ता ] उस देहका कर्ता
नहीं हूँ
।।१६२।।
टीका :प्रथम तो, जो यह प्रकरणसे निर्धारित पुद्गलात्मक शरीर नामक परद्रव्य
हैजिसके भीतर वाणी और मनका समावेश हो जाता हैवह मैं नहीं हूँ; क्योंकि
अपुद्गलमय ऐसा मैं पुद्गलात्मक शरीररूप होनेमें विरोध है और इसीप्रकार उस (शरीर)के
१. शरीरादिरूप
हुँ पौद्गलिक नथी, पुद्गलो में पिंडरूप कर्यां नथी;
तेथी नथी हुँ देह वा ते देहनो कर्ता नथी. १६२
.