अभाव होनेसे जो अचल है ऐसे आत्माको ज्ञेयपर्यायस्वरूप परद्रव्यसे विभाग है और
१तन्निमित्तक ज्ञानस्वरूप स्वधर्मसे अविभाग है, इसलिये उसके एकत्व है; (५) और
नित्यरूपसे प्रवर्तमान (शाश्वत ऐसा) ज्ञेयद्रव्योंके आलम्बनका अभाव होनेसे जो निरालम्ब है ऐसे आत्माका ज्ञेय परद्रव्योंसे विभाग है और तन्निमित्तक ज्ञानस्वरूप स्वधर्मसे अविभाग है, इसलिये उसके एकत्व है ।
इसप्रकार आत्मा शुद्ध है क्योंकि चिन्मात्र शुद्धनय उतना ही मात्र निरूपणस्वरूप है(अर्थात् चैतन्यमात्र शुद्धनय आत्माको मात्र शुद्ध ही निरूपित करता है ) । और यह एक ही(यह शुद्धात्मा एक ही) ध्रुवत्वके कारण उपलब्ध करने योग्य है । किसी पथिकके शरीरकेअंगोंके साथ संसर्गमें आनेवाली मार्गके वृक्षोंकी अनेक छायाके समान अन्य जो अध्रुव (-अन्य जो अध्रुव पदार्थ) उनसे क्या प्रयोजन है ?
भावार्थ : — आत्मा (१) ज्ञानात्मक, (२) दर्शनरूप, (३) इन्द्रियोंके विना हीसबको जाननेवाला महा पदार्थ, (४) ज्ञेय – परपर्यायोंका ग्रहण – त्याग न करनेसे अचल और(५) ज्ञेय – परद्रव्योंका आलम्बन न लेनेसे निरालम्ब है; इसलिये वह एक है ।
इसप्रकार एक होनेसे वह शुद्ध है । ऐसा शुद्धात्मा ध्रुव होनेसे, वही एक उपलब्ध करनेयोग्य है ।।१९२।।१. ज्ञेय पर्यायें जिसकी निमित्त हैं ऐसा जो ज्ञान, उस – स्वरूप स्वधर्मसे (ज्ञानस्वरूप निजधर्मसे) आत्माकी