Pravachansar (Hindi).

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विमोचयति तथा अहो कालविनयोपधानबहुमानानिह्नवार्थव्यंजनतदुभयसम्पन्नत्वलक्षण-
ज्ञानाचार, न शुद्धस्यात्मनस्त्वमसीति निश्चयेन जानामि, तथापि त्वां तावदासीदामि
यावत्त्वत्प्रसादात
् शुद्धमात्मानमुपलभे अहो निःशंकि तत्वनिःकांक्षितत्वनिर्विचिकित्सत्वनिर्मूढ-
दृष्टित्वोपबृंहणस्थितिकरणवात्सल्यप्रभावनालक्षणदर्शनाचार, न शुद्धस्यात्मनस्त्वमसीति निश्चयेन
जानामि, तथापि त्वां तावदासीदामि यावत
् त्वत्प्रसादात् शुद्धमात्मानमुपलभे अहो
मोक्षमार्गप्रवृत्तिकारणपंचमहाव्रतोपेतकायवाङ्मनोगुप्तीर्याभाषैषणादाननिक्षेपणप्रतिष्ठापनसमिति-
लक्षणचारित्राचार, न शुद्धस्यात्मनस्त्वमसीति निश्चयेन जानामि, तथापि त्वां तावदासीदामि
यावत्त्वत्प्रसादात
् शुद्धमात्मानमुपलभे अहो अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग-
विविक्तशय्यासनकायक्लेशप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायध्यानव्युत्सर्गलक्षणतपआचार, न
निश्चयपञ्चाचारमाचारादिचरणग्रन्थकथिततत्साधकव्यवहारपञ्चाचारं चाश्रयतीत्यर्थः अत्र यद्गोत्रादिभिः
सह क्षमितव्यव्याख्यानं कृतं तदत्रातिप्रसंगनिषेधार्थम् तत्र नियमो नास्ति कथमिति चेत् पूर्वकाले
प्रचुरेण भरतसगररामपाण्डवादयो राजान एव जिनदीक्षां गृह्णन्ति, तत्परिवारमध्ये यदा कोऽपि
मिथ्यादृष्टिर्भवति तदा धर्मस्योपसर्गं करोतीति
यदि पुनः कोऽपि मन्यते गोत्रसम्मतं कृत्वा
कहानजैनशास्त्रमाला ]
चरणानुयोगसूचक चूलिका
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પ્ર. ૪૮
हुआ जा सकेगा इसप्रकार कुटुम्बको सम्मत करके ही मुनित्वके धारण करनेका नियम न
होने पर भी, कुछ जीवोंके मुनि होनेसे पूर्व वैराग्यके कारण कुटुम्बको समझानेकी भावनासे
पूर्वोक्त प्रकारके वचन निकलते हैं
ऐसे वैराग्यके वचन सुनकर, कुटुम्बमें यदि कोई
अल्पसंसारी जीव हो तो वह भी वैराग्यको प्राप्त होता है )
(अब निम्न प्रकारसे पंचाचारको अंगीकार करता है :)
(जिसप्रकार बंधुवर्गसे विदा ली, अपनेको बड़ोंसे, स्त्री और पुत्रसे छुड़ाया)
उसीप्रकारअहो काल, विनय, उपधान, बहुमान, अनिह्नव, अर्थ, व्यंजन और तदुभयसंपन्न
ज्ञानाचार ! मैं यह निश्चयसे जानता हूँ कि ‘तू शुद्धात्माका नहीं है; तथापि मैं तुझे तब तक
अंगीकार करता हूँ जब तक कि तेरे प्रसादसे शुद्धात्माको उपलब्ध कर लूँ
अहो निःशंकितत्व,
निकांक्षितत्व, निर्विचिकित्सत्व, निर्मूढदृष्टित्व, उपबृंहण, स्थितिकरण, वात्सल्य और
प्रभावनास्वरूप दर्शनाचार
मैं यह निश्चयसे जानता हूँ कि तू शुद्धात्माका नहीं है, तथापि तुझे
तब तक अंगीकार करता हूँ जब तक कि तेरे प्रसादसे शुद्धात्माको उपलब्ध कर लूँ अहो,
मोक्षमार्गमें प्रवृत्तिके कारणभूत, पंचमहाव्रतसहित कायवचनमनगुप्ति और ईर्याभाषा
एषणआदाननिक्षेपणप्रतिष्ठापनसमितिस्वरूप चारित्राचार ! मैं यह निश्चयसे जानता हूँ कि तू
शुद्धात्माका नहीं है, तथापि तुझे तब तक अंगीकार करता हूँ जब तक कि तेरे प्रसादसे
शुद्धात्माको उपलब्ध कर लूँ
अहो अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त