परमोपेक्षासंयमबलेन देहप्रतिकाररहितत्वादप्रतिकर्म भवति । किम् ।लिंगं एवं पञ्चविशेषणविशिष्टं लिङ्गं
अब, अनादि संसारसे अनभ्यस्त होनेसे जो अत्यन्त अप्रसिद्ध है और १अभिनवअभ्यासमें कौशल्य द्वारा जिसकी सिद्धि उपलब्ध होती है ऐसे इस यथाजातरूपधरपनेके बहिरंग और अंतरंग दो लिंगोंका उपदेश करते हैं : —
अन्वयार्थ : — [यथाजातरूपजातम् ] जन्मसमयके रूप जैसा रूपवाला,[उत्पाटितकेशश्मश्रुकं ] सिर और डाढ़ी – मूछके बालोंका लोंच किया हुआ, [शुद्धं ] शुद्ध(अकिंचन), [हिंसादितः रहितम् ] हिंसादिसे रहित और [अप्रतिकर्म ] प्रतिकर्म (शारीरिक श्रृंगार)से रहित — [लिंगं भवति ] ऐसा (श्रामण्यका बहिरंग) लिंग है ।।२०५ -२०६।।१. अभिनव = बिलकुल नया । (अनादि संसारसे अनभ्यस्त यथाजातरूपधरपना अभिनव अभ्यासमें प्रवीणताके
द्वारा सिद्ध होता है ।)
जन्म्या प्रमाणे रूप, लुंचन के शनुं, शुद्धत्व ने हिंसादिथी शून्यत्व, देह – असंस्करण — ए लिंग छे. २०५.