Pravachansar (Hindi). Gatha: 213.

< Previous Page   Next Page >


Page 392 of 513
PDF/HTML Page 425 of 546

 

background image
अथ श्रामण्यस्य छेदायतनत्वात् परद्रव्यप्रतिबन्धाः प्रतिषेध्या इत्युपदिशति
अधिवासे व विवासे छेदविहूणो भवीय सामण्णे
समणो विहरदु णिच्चं परिहरमाणो णिबंधाणि ।।२१३।।
अधिवासे वा विवासे छेदविहीनो भूत्वा श्रामण्ये
श्रमणो विहरतु नित्यं परिहरमाणो निबन्धान् ।।२१३।।
मिति समुदायेन तृतीयस्थले गाथात्रयं गतम् अथ निर्विकारश्रामण्यच्छेदजनकान्परद्रव्यानु-
बन्धान्निषेधयतिविहरदु विहरतु विहारं करोतु स कः समणो शत्रुमित्रादिसमचित्तश्रमणः णिच्चं
नित्यं सर्वकालम् किं कुर्वन्सन् परिहरमाणो परिहरन्सन् कान् णिबंधाणि चेतनाचेतनमिश्र-
परद्रव्येष्वनुबन्धान् क्व विहरतु अधिवासे अधिकृतगुरुकुलवासे निश्चयेन स्वकीयशुद्धात्मवासे
वा, विवासे गुरुविरहितवासे वा किं कृत्वा सामण्णे निजशुद्धात्मानुभूतिलक्षणनिश्चयचारित्रे छेदविहूणो
३९२प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
भावार्थ :यदि मुनिके स्वस्थभावलक्षण प्रयत्न सहित की जानेवाली अशनशयन
गमनादिक शारीरिक चेष्टासंबंधी छेद होता है तो उस तपोधनके स्वस्थभावकी बहिरंग
सहकारीकारणभूत प्रतिक्रमणस्वरूप आलोचनापूर्वक क्रियासे ही उसका प्रतीकार
प्रायश्चित्त हो
जाता है, क्योंकि वह स्वस्थभावसे चलित नहीं हुआ है किन्तु यदि उसके निर्विकार
स्वसंवेदनभावनासे च्युतिस्वरूप छेद होता है, तो उसे जिनमतमें व्यवहारज्ञप्रायश्चित्तकुशल
आचार्यके निकट जाकर, निष्पप्रंचभावसे दोषका निवेदन करके, वे आचार्य निर्विकार
स्वसंवेदनभावनाके अनुकूल जो कुछ भी प्रायश्चित्त उपदेशें वह करना चाहिये
।।२११२१२।।
अब, श्रामण्यके छेदके आयतन होनेसे परद्रव्यप्रतिबंध निषेध करने योग्य हैं, ऐसा
उपदेश करते हैं :
अन्वयार्थ :[अधिवासे ] अधिवासमें (आत्मवासमें अथवा गुरुओंके सहवासमें)
वसते हुए [वा ] या [विवासे ] विवासमें (गुरुओंसे भिन्न वासमें) वसते हुए, [नित्यं ] सदा
[निबंधान् ] (परद्रव्यसम्बन्धी) प्रतिबंधोंको [परिहरमाणः ] परिहरण करता हुआ [श्रामण्ये ]
श्रामण्यमें [छेदविहीनः भूत्वा ] छेदविहीन होकर [श्रमणः विहरतु ] श्रमण विहरो
।।२१३।।
१. परद्रव्य -प्रतिबंध = परद्रव्योंमें रागादिपूर्वक संबंध करना; परद्रव्योंमें बँधनारुकना; लीन होना; परद्रव्योंमें
रुकावट
प्रतिबंध परित्यागी सदा अधिवास अगर विवासमां,
मुनिराज विहरो सर्वदा थई छेदहीन श्रामण्यमां. २१३
.