अन्योन्यबोध्यबोधकभावमात्रेण कथंचित्परिचिते श्रमणे, शब्दपुद्गलोल्लाससंवलनकश्मलित-
चिद्भित्तिभागायां शुद्धात्मद्रव्यविरुद्धायां कथायां चैतेष्वपि तद्विकल्पाचित्रितचित्तभित्तितया
प्रतिषेध्यः प्रतिबन्धः ।।२१५।।
गाथात्रयं गतम् । अथ शुद्धोपयोगभावनाप्रतिबन्धकच्छेदं कथयति — मदा मता सम्मता । का । हिंसा शुद्धोपयोगलक्षणश्रामण्यछेदकारणभूता हिंसा । कथंभूता । संतत्रिय त्ति संतता निरन्तरेति । का किये जानेवाले विहारकार्यमें, (५) श्रामण्यपर्यायका सहकारी कारण होनेसे जिसका निषेध नहीं है ऐसे केवल देहमात्र परिग्रहमें, (६) मात्र अन्योन्य १बोध्यबोधकरूपसे जिनका कथंचित् परिचय वर्तता है ऐसे श्रमण (अन्य मुनि) में, और (७) शब्दरूप पुद्गलोल्लास (पुद्गलपर्याय) के साथ संबंधसे जिसमें चैतन्यरूपी भित्तिका भाग मलिन होता है, ऐसी शुद्धात्मद्रव्यसे विरुद्ध कथामें भी प्रतिबंध निषेध्य – त्यागने योग्य है अर्थात् उनके विकल्पोंसे भी चित्तभूमिको चित्रित होने देना योग्य नहीं है ।
भावार्थ : — आगमविरुद्ध आहारविहारादि तो मुनिने पहले ही छोड़ दिये हैं । अब संयमके निमित्तपनेकी बुद्धिसे मुनिके जो आगमोक्त आहार, अनशन, गुफादिमें निवास, विहार, देहमात्र परिग्रह, अन्य मुनियोंका परिचय और धार्मिक चर्चा – वार्ता पाये जाते हैं, उनके प्रति भी रागादि करना योग्य नहीं है, — उनके विकल्पोंसे भी मनको रँगने देना योग्य नहीं है; इसप्रकार आगमोक्त आहार – विहारादिमें भी प्रतिबंध प्राप्त करना योग्य नहीं है, क्योंकि उससे संयममें छेद होता है ।।२१५।।
अब छेद क्या है, (अर्थात् छेद किसे कहते हैं ) उसका उपदेश करते हैं : — १. बोध्य वह है जिसे समझाया है अथवा जिसे उपदेश दिया जाता है । और बोधक वह है जो समझाता